Saturday, September 24, 2011

raaja dasrath ko kaikayi raani ko vachan dena..phir uska raani dwaara upyog ka hona adi kathayein

राजा दसरथ द्वारा कैकयी रानी को वचन देना,फिर उसका कैकयी रानी द्वारा उपयोग होना अदि कथाएँ

 रानी कैकयी के पिताजी ने कैकयी के लिए स्वयंवर तैयार किया...कैकयी सारी कलाओं में निपुण थीं..गायन,वादन,सप्त स्वर..अनेकांत धर्म की ज्ञाता,जिन धर्म पर अटूट-श्रद्धा,मीमांसक,संख्या,बौद्ध अदि अनेक मतों की ज्ञाता,श्रृंगार कला में निपुण,लोक कला में निपुण,रथ चलने में निपुण...ऐसी कैकयी के लिए जब पिता जी ने स्वयंवर बनवाया,तब बड़े-बड़े राजा आये..उन में राजा अरण्य के पुत्र राजा दशरथ भी आये...कैकयी ने बड़े-बड़े राजाओं को छोड़कर राजा-दशरथ के गले में माला डाली..तब अन्य राजा बहुत क्रोधित हुए..वह कैकयी के पिताजी से लड़ने को तैयार हुए..तब दशरथ ने कैकयी के पिताजी से कहकर खुद युद्ध के लिए तैयार हुए...तब कैकयी ने राजा दशरथ की सहायता की..यहाँ तक की रानी कैकयी ने ही रथ चलाया था..और उन्हें निर्देश दिए थे..राजा दशरथ जीत गए..उस समय राजा दशरथ ने कहा की आप कुछ मांगो,तोह कैकयी ने कहा की समय आने पर मांगूंगी...इस वचन का कैकयी ने उपयोग कब और कैसे किया अब यह जानते हैं

एक बार राजा दशरथ ने वन में सर्वभूतहित मुनिराज से उपदेश सुने,उन्होंने पूर्व जन्म के विषय में सुना...उन्होंने जाना की कुछ जन्म पहले उनके नंदीघोष नाम की पिता थे..जो तप कर के मुनि हुए..और स्वर्ग में देव हुए...राजा दशरथ नन्दिवर्धन थे..उन्होंने भी श्रावक के व्रत लिए थे...अगले जन्म में वह रत्नमाली नाम की राजा हुए..जब राजा रत्नमाली अशुभ भाव के कारण शत्रु के राज्य में आग लगाने जा रहे होते हैं तोह उन्हें वोही स्वर्ग के देव आकर रोकते हैं और पूर्व भव सम्बन्धी कथा सुनाते हैं...जिससे राजा विरक्त होते हैं..और राजा रत्नमाली विरक्त होकर मुनि होते हैं..वहां से चय कर स्वर्ग जाते हैं..और वहां से राजा अरण्य के पुत्र दशरथ होते हैं..वह राजा जनक और राजा कनक से पूर्व जन्म का रिश्ता जानकार विरक्त होते हैं...और मुनि बनने को तैयार होते हैं...तब वह राम को राज्य देने वाले होते हैं...तभी भरत भी राजा दशरथ के साथ विरक्त हो ही रहे होते हैं...तभी रानी कैकयी को भरत की विरक्ति की चिंता होने लगती है..तब वह सोचती हैं की कोई ऐसी युक्ति जिससे भरत विरक्त न होने पाए..वह जल्द ही राजा दशरथ को उस वचन की याद दिलाती हैं....आधे सिंहासन पर जाकर लेट जाती हैं..और कहती हैं की आप भरत को राज्य दो...राजा दशरथ बिना किसी राग-द्वेष के उस वचन को मान जाती हैं...तब राजा दशरथ राम को बुलाते हैं...और कैकयी सम्बन्धी सारी कथाएँ कहते हैं..किस प्रकार उन्होंने मदद की थी..यह बात जानकार राम भरत को राज्य मिलने पर सहमति जताते हैं...उसके बाद राम लक्ष्मण को बनवास कैसे हुआ..कैसे वह और क्यों उन्हें वन जाना पड़ा यह हम आगे जानेंगे...

कोई गलती हो,शब्द अर्थ सम्बन्धी या प्रमाद के कारण कोई भूल हो तोह जरूर बताएं

लिखने का आधार-शास्त्र श्री पदम् पुराण.   

No comments:

Post a Comment