राम लक्ष्मण के वन में जाने अदि की कथा
जब राजा दशरथ कैकयी को दिए हुए वादे के अनुसार भरत को राज्य देने की घोसना करते हैं..और राजा दशरथ के साथ ही राजा भरत मुनि होने की सोचते हैं..तब राजा दशरथ उन्हें रोकते हैं..भरत कहते हैं की यह संसार विषय सामान असार है,यह मोह आग है जो दुःख का कारण है...लेकिन राजा दशरथ कहते हैं कि कैकयी के वचनों के अनुसार तुम्हे राज्य करना पड़ेगा,नहीं तोह लोक में मेरी अपकीर्ति होगी...और पिता कि अपकीर्ति पुत्र करे यह अच्छा नहीं है,जब राम भरत का हाथ पकड़ कर समझाते हैं और माता कैकयी कि बात कहते हैं कि अगर तुम नहीं माने तोह वह बेहोश हो जायेंगी,शारीर मरण को प्राप्त होगा...इसलिए तुम राज्य करो..और मैं किसी अज्ञात स्थान पर चौदह वर्ष तक रहूँगा,किसी वन में,किसी पहाड़ पे जहाँ कोई न आने पाए..राम को देखकर सीता भी तैयार होती है.. लक्ष्मण सोचते हैं कि यह स्त्रियाँ ही दुःख का कारण हैं..इसलिए लक्ष्मण भी राम के साथ जाने को तैयार होते हैं,राम निकलते हैं तोह माताएं रोकती हैं,सुमित्रा,सुप्रभा,कौशल्या,कैकयी और सारे सामंत राम सीता को रोकते हैं,प्रजा हा-हा-कार मचाती है.....सब शोक भरी बातें करते हैं कोई कहता है कि राम नहीं रहेंगे तोह हम नहीं रहेंगे,हमें राम पसनद है,सीता तोह माता-सामान है,ऐसा नहीं होना चाहिए था...सब राम-सीता-लक्ष्मण को छोड़ते नहीं हैं..राम अरहनाथ भगवन के चैत्यालय में आते हैं...भगवन के दर्शन कर विश्राम करते हैं...और सारे लोग वहीँ पर विश्राम करते हैं...फिर सुबह चलने कि तैयारी करते हैं..उनकी माँ फिर से राम से मिलने आती हैं...लेकिन राम नहीं मानते हैं...अतः आगे बढ़ते हैं बड़े-राजा सामंत अदि सब राम के पीछे चलते हैं,बहुत से रास्ते को दुर्लभ जान पीछे हट्टे हैं,बहुत से नदी-पहाड़ अदि देखकर घबरा-जाते हैं,बहुत से भाग्यवान मुनि-महाराज बन जाते हैं ...अतः भरत नियम लेते हैं कि जैसे ही राम के अयोध्या में दर्शन होंगे वह मुनि-व्रत लेंगे....तबतक वह श्रावक के व्रत ले-लेते हैं...और भरत राज्य में रहते हुए भी राज्य से विरक्त रहते हैं...राम दक्षिण दिशा से गमन शुरुआत करते हैं,रास्ते में तरह-तरह के वन-पहाड़ पड़ते हैं,सीता को संभालते हुए आगे दोनों-भाई बढ़ते हैं,उधर अयोध्या में कैकयी अदि सब विलाप करते हैं और कहते हैं कि राम के बिना राज्य सूना-सूना लग रहा है...पुत्र भरत राम को ढूंढो......... भरत राम को पूरे रास्ते ढूंढते हैं..सब से पूछते हैं, राम-मिलते हैं,भरत राम को देख-मूर्छित हो जाते हैं..राम ठीक करते हैं.पीछे से कौशल्या,कैकयी,सुप्रभा,सुमित्रा अदि सब आ जाती हैं...राम से वापिस चलने का निवेदन करते हैं...लेकिन राम पिता के वचन पे अटल...राम भरत का राज्य-अभिषेक करते हैं...भरत अयोध्या में राज्य करते हैं.
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