Tuesday, October 4, 2011

ram lakshman ki van gaman ki kathayein-kulbhoosan aur desh-bhoosan muni ki katha

राम-लक्ष्मण कि वन गमन कि कथाएँ-कुल-भूषण और देश भूषण मुनियों क़ी कथा.
विजय पुर नगर से निकल-कर राम-लक्ष्मण एक वन में पहुंचे...उस वन में बड़े सुन्दरफल लदे हुए थे,राम लखमन ने देव में ऐसे क्रीडा करते जैसे देव करते,कभी सीता को झूला झुलाते...राम-सीता को बड़ा संभाल कर दुर्गम रास्तों में ले जाते थे,सीता की वजह से ही वह बहुत कम दूरी तय कर पाए थे...अनेक -देश नगर में विहार करते हुए वंश स्थल नगर आये..उस नगर पे एक वंश-धर नाम का पर्वत देखा..उस पर्वत से दोनों भाइयों ने लोगों को भागता हुआ देखा..कोई कह रहा था की आज तीसरा दिन है,भयंकर आवाजों से कान बहरे हो गए हैं,डरावनी आवाजें  आ  रही  हैं ,कोई  देव   पहाड़  को भेद रहे हैं...या और कुछ..तब यह बात सीता ने सुनी तोह राम के निकट आ गयीं...राम ऊपर पहाड़ पे जाने का निश्चय करते हैं...सीता को बड़ी मुश्किल से ऊपर चडाते हैं...ऊपर चढ़ते हैं तोह देखते हैं दो मुनि-कुलभूषण और देश-भूषण मुनि शिला में ध्यान-मग्न..कैसे हैं मुनि शुद्दोप्योग में मग्न...कोई राग-द्वेष नहीं..तभी लक्ष्मण जी और राम जी उनकी स्तुति करते हैं हे महा-मोह के नाशक आपको प्रणाम,आप धन्य है जो विषय भोगों से विरक्त है,यह विषय भोग दुःख को देने वाले,इन विषय भोगों से विरक्त होकर ग्यानी ही मुनि होते हैं..अहो धन्य हैं आप,तभी एक असुर देव आता है,और मुनि पे सांपो,और जहरीले बिच्छुओं की वर्षा करता है,बिच्छु बहुत सूक्ष्म थे...राम-लक्ष्मण उस उपसर्ग से मुनि की रक्षा करते हैं...और फिर-से बीना उठाकर स्तुति करते हैं...सीता जी वन से फूल चढ़ाती हैं मुनियों के चरणों में...फिर से देव आता है,...भयंकर राक्षश असुर चेहरे बनाकर..मुनियों की डराने की चेष्टाएं करते हैं,भयंकर नृत्य करने वाली,नंगी भूत,हड्डियां....तरह-तरह के उपसर्ग...पूरे पहाड़ को भूकंप से हिला-दिया...सीता-राम के पीछे चिप जाती हैं,,तभी राम धनुष को चडाने की चेष्टा करते हैं,धनुष को चढाने की जोर से आवाज आती है,उस आवाज से असुर देव उनको बल-भद्र और नारायण जानकार भाग जाता है,शुक्ल ध्यान में विराजमान मुनियों को केवल ज्ञान हो जाता है,चारो-निकाय के देव पूजा करते हैं,विद्या-धर भूमि गोचर राजा आते हैं..तभी श्री राम पूछते हैं हे भगवन इस असुर ने आप-पर इतना उपसर्ग क्यों किया..और आप दोनों के बीच में इतना प्रेम कैसे?..दिव्यध्वनी खिरती है..भगवन अपने-पूर्व के विषयों में बताते हैं..और असुर देव के बारे में बताते हैं की वह अग्नि-भूति नाम का ज्योतिष देव है..जिसने हम पर उपसर्ग इसलिए किया क्योंकि उसने अनंत-वीर्य केवली के गंध कुटी में सुना था..की मुनि-सुव्रत नाथ भगवान् के बाद अनंत-वीर्य केवली हुए और उनके बाद कुल-भूषण और देश-भूषण मुनि होंगे...इस बात को असत्य करने के लिए उसने कुल-भूषण और देश-भूषण मुनि पर उपसर्ग किया... केवली भगवान् कहते हैं कि सिद्धार्थ  नगर के राजा क्षेमंकर ,रानी विमला.. राज्य-पुत्र हुए कुल-भूषण और देश-भूषण...उन्हें सागर-घोष नाम के पंडित पर पढने के लिए भेजा,उन्हें हर-कला,शास्त्र कला में प्रवीण किया..केवली-राम और लक्ष्मण से कहते हैं कि वह कुल-भूषण और देश-भूषण हम हैं,हमने किसी को भी नहीं जाना,सिर्फ गुरु और विद्याओं को छोड़ कर...सो हमने सुनी कि हमारे विवाह के लिए पिता ने नगर के बाहर राज्य कन्या मंगवाई है..सो महल के बाहर बहन कम्लोत्सावा..नगरी कि शोभा देख रही थी..सो हम विद्या के अभिलाषी बहन को भी नहीं पहचाने..और उससे विवाह कि भावना बनायीं..तभी नगरी में जय-जय कार हो रही कि महाराज कि जय हो,महाराज कि पुत्री कम्लोत्सावा कि जय हो...यह सुन-कर विरक्त हुए कि हमने बहन को बुरी नजर से देखा,धिक्कार है हमें...मुनि-व्रत धारण कर लिया...पुत्र के वियोग में पिता शोक-माय हुआ...और सर्व-आहार त्याग कर मरण को प्राप्त हुए..और गरुनेंद्र हुए...यह उपदेश केवली भगवान् ने राम-लक्ष्मण को दिए..तभी गरुनेंद्र भी वहीँ पर मौजूद होते हैनं..वह राम-लक्ष्मण से प्रसन्न होकर कहते हैं कि कुछ भी मांगो,श्री राम कहते हैं जब जरूरत आएगी,तब मांगेंगे..ऐसा कहकर राम-लक्ष्मण आगे बढ़ते हैं..और बड़े हर्ष को प्राप्त होते हैं...धन्य है ऐसे कुल-भूषण और देश-भूषण मुनि..जो केवल-ज्ञान को प्राप्त हुए....

लिखने का आधार-शास्त्र श्री पदम्-पुराण
अल्प बुद्धि और प्रमाद के कारण हुई भूलों के लिए क्षमा.

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