Monday, October 3, 2011

raam-lakshman ki van gaman ki kathayein-lakshman ko jit-padma ki praapti.

राम-लक्ष्मण  की  वन  गमन  की  कथाएँ -लक्ष्मण   को  जित -पद्मा  की  प्राप्ति .
राम लक्ष्मण अतिवीर्य राजा के मुनि बनने के बाद वापिस राजा पृथ्वी धर के यहाँ आते हैं...राजा पृथ्वी धर वनमाला को लक्ष्मण को देने की कहते हैं वह बोलते हैं अभी तोह हम वनवासी है...हम आपको दक्षिण में मलयागिरी में कोई स्थान बनाकर स्वीकार करेंगे..वनमाला विश्वाश नहीं करती तोह लक्ष्मण कहते हैं की जिस प्रकार सम्यक-दर्शन बिना जीव संसार में दुःख-भोगता है,उसी प्रकार मैं भी दुःख भोगुन,अगर तुम्हे स्वीकार नहीं करूँ..तोह वनमाला मान जाती हैं..आगे चलते हैं रात में गुप्त तौर से निकल कर..तोह नगर के लोग शोक करते हैं...देखिये पुण्य और धर्म की महिमा बिना मांगे सब मिल जाता है,दुनिया बिना कुछ किये ही सिर्फ रूप से मोहित हो-कर ही पीछे भागती है उनके..और चले जाती है तोह रोती है. राम लक्ष्मण आगे जाकर क्षेमांजलि नगर में पहुँचते हैं..लक्ष्मण राम की आगया लेकर नगर भ्रमण करने निकलते हैं तोह लोग कहते हैं की इतने सुन्दर पुरुष शायद कोई देव हैं या और कोई..लक्ष्मण बहुत से लोगों से यह बात सुनते हैं की "यहाँ का राजा शत्रुदमन,रानी कनक प्रभा की पुत्री जितपद्मा बहुत ज्ञान-वान है,हर बात में प्रवीण है...उसके लिए राजा ने शर्त रखी है की जो उनकी शक्ति को  सहन करे उसे जितपद्मा को दूँ...लक्ष्मण लोगों से जितपद्मा के बारे में पूछते हैं तोह लोग कहते हैं की क्या फायदा ऐसी राजकुमारी का,जिसकी वजह से जान चला जाए..लक्ष्मण सोचते हैं की ऐसा क्या है इसमें मैं उसका घमंड चूर-करूँगा...लक्ष्मण महल में जाते हैं तोह द्वारपाल लक्ष्मण का सन्देश अन्दर भेजता है..कहता है की एक बड़े-रूपवान पुरुष आपके दर्शन करना चाहते हैं...लक्ष्मण अन्दर प्रवेश करते हैं...ऊपर से जित-पद्मा लक्ष्मण को देखती है ..और मोहित हो जाती है,देखा धर्म और पुण्य का प्रभाव जिस रानी के लिए राजा ने इतनी बड़ी शर्त रखी...लोग उसके पीछे पागलों की तरह घूम रहे हैं...और वह विना किसी काम के मोहित हो जाती है,राजा कहते हैं तुम्हे जितपद्मा चाहिए तोह तुझे शक्ति सहन करनी पड़ेगी..लक्ष्मण बड़े हंसकर कहते हैं..और बड़ी आसानी से शक्ति का प्रहार दोनों भुजा पे सहन कर लेते हैं..लक्ष्मण से राजा अति प्रसन्न होते हैं...लक्ष्मण कुछ बात करता इससे पहले वह श्री-राम को लेने वन में जाते हैं...सीता श्री राम से वन में कहती हैं की क्या कोई शत्रु तोह नहीं जो हमसे लड़ने आ रहा है...लेकिन फिर नृत्य करने वालिओं को देख कर..शांत होती हैं..लक्ष्मण जित-पद्मा के साथ श्री राम के पास आते हैं,प्रणाम करते हैं..राजा शत्रु-दमन उन्हें प्रणाम करते हैं..उनके यहाँ भी राम-लक्ष्मण कुछ दिन निवास करते हैं..फिर चलने की बात करते हैं तोह लक्ष्मण उसी प्रकार जित-पद्मा को समझाते हैं..जिस प्रकार वन-माला को समझाया था..और आगे चलते हैं....

लिखने का आधार-शास्त्र श्री पदम्-पुराण

अल्प बुद्धि और प्रमाद के कारण हुई भूलों के लिए क्षमा. 

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