राम-लक्ष्मण कि वन-गमन कि कथाएँ--अतिवीर्य मुनि कि कथा..
रामलक्ष्मण सीता सहित अपने वनगमन की यात्रा दौरान राजा पृथ्वी धर के यहाँ बड़े सम्मान से बैठे थे..तभी वहां एक दूत आता है..और राजा अतिवीर्य का उपदेश राजा पृथ्वी धर को सुनाता है कि वह अयोध्या के राजा भारत पर चढ़ाई करना चाहते हैं,मगध देश के राजा,अंग देश के राजा,वत्स देश के राजा,क्रूर राजा सिन्ह्वीर अदि सब हमारे साथ हैं इसलिए विनम्र न करो...तब लक्ष्मण पूछते हैं कि भरत कि अतिवीर्य से लड़ाई क्यों हुई तोह वोह कहता है कि हमारा दूत राजा भरत के पास सन्देश लेकर गया था कि वह राजा अतिवीर्य के आगे झुक-कर प्रणाम करें..लेकिन तब शत्रुघ्न ने उस दूत का बहुत अपमान किया..उसे कुत्ते कि तरह दुत्कार कर नगर से बहार निकाल दिया...और वह राजा-अतिवीर्य से लड़ने को उद्यमी हुआ है..तब श्री राम कहते हैं ki शत्रुघ्न ने यह अच्छा नहीं किया..पृथ्वी धर उनसे लड़ने को तैयार होता इससे पहले राम-लक्ष्मण सीता सहित राजा पृथ्वी धर से कहकर अतिवीर्य से लड़ने को तैयार होते हैं..लेकिन रास्ते में विचार विमर्श करते समय सीता बीच में बोलती हैं कि अतिवीर्य अति शक्तिशाली है..इससे संभालना तब लक्ष्मण कहते हैं कि यह इतने तुच्छ लोगों से भी कोई लड़ना...तब राम कहते हैं कि राजा भरत का राज्य पास में ही है,इसलिए उन्हें पता नहीं चलना चाहिए..इसलिए वह कोई दूसरी युक्ति करते हैं..वह राजा अतिवीर्य के समक्ष न्रत्यांगना बन कर जाते हैं..राम-और लक्ष्मण अपने हाव-भाव से सबको मोहित करते हैं..और नृत्य करते हैं...तब राम लक्ष्मण देव भी मोहित हो,मनुष्यों कि तोह बात ही क्या..और फिर श्रंगार रस से वीर-रस में आकर अतिवीर्य को ललकारते हैं,एकदम से उस पर टूट पड़ते हैं..लक्ष्मण उनकी चुटिया पकड़ लेते हैं..तब सीता जो कहती हैं इन्हें क्षमा करो..यह कर्म का उदय है..तब अतिवीर्य हार-मानते हैं..तब लक्ष्मण कहते हैं कि तू राजा-भरत का आज्ञाकारी बन जा तुझे तेरा राज्य वापिस मिल जाएगा..तब राजा-अतिवीर्य कहते हैं कि न अब मुझे यह राज्य चाहिए न और कुछ...अब मैं कुछ ऐसा करूँ जो इनसे मुक्त होऊं..तब अनंत-वीर्य जिनेश्वरी दीक्षा धारण करते हैं..और अतिवीर्य मुनि के नाम से जाने जाते हैं...धन्य हैं ऐसे अतिवीर्य मुनि..जब भरत और शत्रुघ्न इस घटना के बारे में जानते हैं तोह शत्रुघ्न हस्ते हैं उनके मुनि बन्ने पर तब भरत कहते हैं "अहो" भाई हसो मत..धन्य हैं जो यह चुभने वाले विषय भोगों से विरक्त हैं..वह दोनी भाई अतिवीर्य मुनि के दर्शन करते हैं..कैसे हैं अतिवीर्य मुनि-विषम जंगले में अनेक जानवरों से युक्त..तपस्या कर रहे होते हैं..भरत-शत्रुघ्न उनसे क्षमा मांगते हैं...धन्य है ऐसी वीतराग-मुनि मुद्रा.
लिखने का आधार-श्री पदम् पुराण
अल्प बुद्धि और प्रमाद के कारण हुईं भूलों के लिए क्षमा.
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