Tuesday, November 29, 2011

LAKSHMAN KA KOT-SHILA UTHAANE KA DRUSHTANT

लक्ष्मण सुग्रीव को भोगों में तल्लीन देख कर नंगी तलवार लेकर सुग्रीव के पास आये...और ललकारा...सुग्रीव को गलती का एहसास हुआ...राम से भी भूल की क्षमा मांगी...सुग्रीव ने सीता को ढूँढने के लिए हर जगह दूतों को भेजा...यहाँ तक की सुग्रीव भी ढूँढने गए...ढूंढते-ढूंढते सुग्रीव उसी जगह पहुँच गए..जहाँ राजा भामंडल का दूत रत्नजटी को अंतर-द्वीप में छोड़ दिया था..रावण के द्वारा...रत्न-जटी के माध्यम से सुग्रीव को यह बात पता चल  गयी की सीता जी का हरण रावण ने किया है..अब वह श्री-राम के पास पहुंचे..सारे विद्याधरों को शंका थी (जाम्बुनाद अदि) को शंका थी की राम-लक्ष्मण इतने शक्ति-शाली नहीं है की वह तीन खंड के राजा से जीत सकें...उन्होंने सलाह दी की आप सीता को छोड़ कर बची हुई रानियों से ही संतुष्ट हो जायो..लेकिन राम-लक्ष्मण नहीं माने,दृष्टांत दिए...मंत्री कहने लगे की "हमने केवली भगवन के सम्वोशरण में सुना था की रावण प्रतिनारायण है,और नारायण होने के पहचान कोट-शिला उठाने से होती है...लक्ष्मण जी ही नारायण हैं"...इस बात को साबित करने के लिए वह सब लोग कोट-शिला के पास तक गए...लक्ष्मण ने सिद्धों को प्रणाम कर-स्तुति कर कोट-शिला को उठा लिया...जिससे सब लोग मान गए की केवली भगवान की बात अटल सत्य है..लक्ष्मण ही नारायाण हैं..और यह अवश्य जीतेंगे..इस प्रकार कोट-शिला उठाने वाला दृष्टांत पूरा हुआ..  

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