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Tuesday, May 3, 2011

pehli dhaal-motivation from guru,reason for world,proof of chehdhala and condition of nigodiya jeev

६ ढाला
पहली ढाल
.गुरु की सीख(उपदेश) और संसार में भ्रमण का कारण
ताहि सुन भवि मन थिर आन,जो चाहो अपना कल्याण,
मोह महामद पियो अनादि,भूल आपको भरमत वादी.
शब्दार्थ
१.ताहि-गुरु की उस शिक्षा को
२,भवि-हे bhavya
३.थिर-स्थिर
४.आन-करके
५.जो-अगर
६.कल्याण-अपना हित,अपना भला,आत्मा का हित.
७.मोह-पुद्गल के प्रति आसक्ति
८.महा मद - महा मदिरा,मोह रूपी शराब
९.अनादी-अनंत काल से
१०.भरमत-भ्रमण कर रहा है.
११.वादी-व्यर्थ
भावार्थ
हे भव्य(भवि) जीव,गुरु की उस शिक्षा (ताहि) को मन को स्थिर(थिर) कर के(आन),मन को वश में करके सुन ले,अगर (जो) तू अपना भला,चाहता है,अपना हित चाहता है(कल्याण) चाहता है,अगर कल्याण नहीं चाहता है तोह मत सुन,और अगर कल्याण चाहता है तोह गुरु के उपदेशों को सुन,जो की यह है "इस जीव ने (हमने) अनंत काल से मोह रुपी-महा मदिरा पी रखी है,एक शराब पी रखी है,जिस प्रकार शराब के नशे में कोई शराबी अपने आप को भूल जाता है,वेह क्या कर रहा है उसे कुछ भी होश नहीं होता है,उसी प्रकार इस मोह रुपी शराब को इस जीव ने (हमने) अनादि काल से पी राखी है,कोई शराबी का नशा तोह आज है कल नहीं,लेकिन इस मोह रुपी महा मदिरा का नशा तोह ऐसा चदा हुआ है की उतर नहीं रहा है,इसलिए यह जीव (हम) अपने आत्मा स्वाभाव को भूलकर (भूल आपको),अनादि काल से व्यर्थ (वादी) में ही भ्रमण कर रहा है (भरमत अदि),विचरण कर रहा है,यह हमारी अपनी ही कहानी है,किसी अन्य की नहीं है,हम भी ऐसा ही कर रहे हैं.
६ ढाला ग्रन्थ की प्रमाणिकता और निगोद में जीव की दशा.
तास भ्रमण की है बहु कथा,पै कुछ कहूँ कही मुनि यथा
काल अनंत निगोद मंझार,बीत्यो एकेंद्रीय तन धार.
शब्दार्थ
१.तास-उस संसार में.
२.भ्रमण-भटकना.
३.बहु-बहुत सारी.
४.पै-मैं (यानी की कवि)
५.मुनि-निर्ग्रन्थ मुनि
६.कछु-थोडा सा ही
७.यथा-वैसा का वैसा,एक जैसा.
८.निगोद-एक ऐसी साधारण वनस्पति पर्याय जिसमें एक जीव में अनंत जीव विधमान होता है,यानी की एक जीव की गोद में अनंतानत जीव होतें हैं.
९.मंझार- चक्कर में फस के.
भावार्थ-
कवि कह रहे हैं कि इस संसार में तोह भटकने कि तोह बहुत कहानियां हैं,अनंतानत योनियाँ हैं ,लेकिन कवि इसमें इस कुछ कथाएँ ही कह पा रहे हैं कवि ने यह बात तोह कह दी की हम मोह-महा मद पिए हैं,लेकिन कवि पे इस बात का प्रमाण क्या है की यह सच है,इसलिए कवि ने कहा है की "पै कुछ कहूँ कही मुनि यथा" यानी की कवि ने जो भी कहा है,जितना भी कहा है,वेह सब मुनियों ने वैसा का वैसा बोला है (यथा) बोला है,अब कवि निगोद के बारे में बता रहे हैं कि इस जीव ने अनंत काल निगोद में बर्बाद कर दिया,निगोदिया जीव तोह ठसा-ठस भरा हुआ है,एक जीव कि गोद में अनंतानंत निगोदिया जीव हैं,और मैंने इस निगोद कि दुःख भरी योनी में अनंत काल बर्बाद कर दिए,आलू में कितने निगोदिया जीव हैं,अगर आलू में मौजूद जीव राइ जितने हो जायें तोह जम्बू द्वीप भर जाए,और मैं अपने मोह कि वजह से इस निगोद के दुःख को प्राप्त करता रहा,अनंत काल इस एकेंद्रीय तन के साथ ही व्यतीत कर दिया है,हमें अचार,पापड़,छोटी-छोटी मिर्ची,कच्चे आम,कच्चे फल,छोटी-छोटी पत्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए,क्योंकि इसमें अनंत जीव राशी है,हम भी इसी योनी में तोह होते हुए आयें हैं,इस मनुष्य योनी में कितना समय हुआ होगा,निगोद में तोह अनंत काल बर्बाद किया है,यह तोह हमारा पुराना पता है.
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोक लोक,सो वाणी मस्तक नमो,सदा देत हूँ धोक,
हे जिनवाणी भारती,तोहे जपूँ दिन रैन,जो तेरी शरण गए ते पावे सुख चैन.

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