ATTENTION..........सावधान........ नहीं तोह बहुत काम की चीज पढने से रह जायेगी
<<<<<<<धर्म-धर्म -धर्म....बचपन से ही मंदिर,शास्त्र-चिंतन....और त्याग....शुरू कर दें क्या...यह तोह बूढ़े लोगों का काम है...>>>>>>>>>>>
ऐसी सोच रखने वाले....!!!!!!!!!!
PLZ.. इसे जरूर पढ़िए...और अपने विचारों में परिवर्तन लाइए........
:::::::हम सोचते हैं की धर्म तोह बूढ़े लोगों का काम है लेकिन सच में ऐसा नहीं है;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
------बूढ़े लोगों का काम इसलिए कहा जाता है की मृत्यु निकट आ गयी है.....मरने वाले हैं कुछ सालों में कुछ धर्म ध्यान ही कर लें तोह अच्छी आयु मिल जायेगी...वगरह वगरह.. इन बातों को सोचते hain.
लेकिन आज के समय में जरूरी नहीं है की व्यक्ति बुढापे में ही मरे...मृत्यु तोह जवानी में भी हो जाती है...यह कुछ नयी बात नहीं है..अखबार देखेंगे तोह जवान-जवान मृत्यु बहुत मिल जाती हैं...
जब मौत जवानी में मौत आ सकती है...जवानी में बेमारी आ सकती है ,जवानी में चश्मा लग जाता है,जवानी में बाल सफ़ेद हो जाते हैं...तोह धर्म भी जवानी में क्यों नहीं हो सकता..या जवानी में नहीं लगना चाहिए धर्म में.. ऐसा क्यों सोचा जाता है?????????
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परम पूज्य मुनि श्री १०८ क्षमा सागर जी महाराज कहते हैं..."धर्म आउट ऑफ़ डेट नहीं...धर्म तोह अभी भी UP TO DATE है"------बूढ़े लोगों का काम इसलिए कहा जाता है की मृत्यु निकट आ गयी है.....मरने वाले हैं कुछ सालों में कुछ धर्म ध्यान ही कर लें तोह अच्छी आयु मिल जायेगी...वगरह वगरह.. इन बातों को सोचते hain.
लेकिन आज के समय में जरूरी नहीं है की व्यक्ति बुढापे में ही मरे...मृत्यु तोह जवानी में भी हो जाती है...यह कुछ नयी बात नहीं है..अखबार देखेंगे तोह जवान-जवान मृत्यु बहुत मिल जाती हैं...
जब मौत जवानी में मौत आ सकती है...जवानी में बेमारी आ सकती है ,जवानी में चश्मा लग जाता है,जवानी में बाल सफ़ेद हो जाते हैं...तोह धर्म भी जवानी में क्यों नहीं हो सकता..या जवानी में नहीं लगना चाहिए धर्म में.. ऐसा क्यों सोचा जाता है?????????
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हम देखते हैं आजकल ELEVENTH और TWELTH के सिलेबस में MEDITATION के बारे में सिखाया जाता है..बड़ा आश्चर्य होता है.. .जैन धर्म में क्या हम जैनियों से सामायिक करने को नहीं कहा है? TWELTH क्लास की PHYSICAL EDUCATION में फ्य्सिकल फिटनेस के लिए एक पॉइंट लिखा है"ONE SHOULD GIVE RESPECT TO rELIGION"...बड़ा आश्चर्य होता है ....और लोग सोचते हैं की धर्म बूढों का काम है...
आज के डाक्टर कहते हैं "की सोने के ३-४ घंटे पहले कुछ गरिष्ठ मत लो.........अगर जैन धर्म के हिसाब से ५-६ घंटे पहले ही कुछ लेना छोड़ दोगे तोह क्या बिगड़ जाएगा...???
वैज्ञानिक अब पानी में ३६४५० जीव मानते हैं...जैन धर्म तोह अनादी काल से कह रहा है...की जल-छाना हुआ जीव रक्षा के लिए ,उबला हुआ जल्कायिक जीवों की रक्षा के लिए पीना चाहिए...
लेकिन हम दुष्ट मानने को तैयार ही कहाँ है??..
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और देखें... अभी पापा का DIABETES का ऑपरेशन हुआ तोह DIABETES को नोर्मल रखने के लिए "क्या खाएं..क्या न खाएं" में लिखा हुआ था "ROOT-VEGETABLE SHOULD NOT BE EATEN" ....कंदमूल का त्याग...
("जो काम बड़े-बड़े नशा मुक्ति
शिविर नहीं कर सकते हैं...वह काम हलकी सी धार्मिक आस्था कर गयी...जब
गणचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज के अजमेर चातुर्मास के दौरान एक
व्यक्ति जिसको ४५ साल पुरानी शराब की लत थी...वह आचार्य श्री के दर्शन करने
से श्रद्धा भाव जागते ही छूट गयी...और उन व्यक्ति ने शराब पीना छोड़
दिया....यह काम शायद दुनिया का सबसे बड़ा विज्ञानिक भी नहीं कर सकता
था.....नमोस्तु ऐसे महाराज जी को")
पहले वैज्ञानिक लोग पेड़-पौधों में जीव नहीं मानते थे...लेकिन जगदीश चंद वसु ने सिद्ध किया की इनमें भी जीव है..
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और देखें...............
लोग कहते हैं विज्ञान तोह कुछ कहता है...विज्ञान तोह स्वर्ग-नरक मानता ही नहीं..तोह इसका जवाब तोह यह है की विज्ञान सत्य थोड़ी है..विज्ञान तोह सत्य की खोज में किये गए प्रयास हैं...विज्ञान तोह शोध और अनुसंधान के नाम पर किये गए प्रयास हैं...और विज्ञान तोह अपने दिए हुए सिद्धांत बदलता रहता है...पहले कुछ बताता था..आज कुछ बताता है.पहले अनु-अनु ही अनु कहता था...फिर एलेक्ट्रों की खोज की पहले कहा एलेक्ट्रों नुक्लयूस के चारो और घूमता है...अब कहते हैं की एलेक्ट्रों ओर्बितल में होता है..कितने सिद्धांत आये,कितने बदल गए...कितने गलत साबित हो गए...विज्ञान सत्य का नाम नहीं है..सत्य की खोज में किये हुए शोध है...और वह सही हो भी सकते हैं और नहीं भी...दोनों की बारम्बार संभावना हैं...और दूसरी बात विज्ञान निराकुलता नहीं दे सकता है...चाहे कितने भी नए-नए अनुसंधान नयी चीजों का आविष्कार कर ले..लगता जरूर है की सुधार हुआ...लेकिन पहले भी उतना ही था...अब भी उतना ही है...बस पहले भौतिक -वाद नहीं था,अब भौतिक वाद ज्यादा है...पहले लोगों को चलने में देर होती थी...लेकिन अब गाडी है तोह भी उसका खर्चा,रास्ते में पंचर हो जाए,घर में रखने के लिए जगह,चोरी का दर,संभालने की चिंता,बीमारियाँ बढ़ गयीं.....और सुखी गाडी वाला भी नहीं है.....पहले टी.वि पे आता नहीं था तोह पहले भी चोरियां और अपराध होते हैं और अब क्या टी.वि पे दिखाने लग गए तोह क्या चोरी-अपराध कम होगये...अगर देखा जाए तोह अपराध बढ़ जरूर गए होंगे..लेकिन होगा वैसे का वैसा ही...लेकिन धर्म निराकुल सुख को देने वाला है...
पहले वैज्ञानिक लोग पेड़-पौधों में जीव नहीं मानते थे...लेकिन जगदीश चंद वसु ने सिद्ध किया की इनमें भी जीव है..
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और देखें...............
लोग कहते हैं विज्ञान तोह कुछ कहता है...विज्ञान तोह स्वर्ग-नरक मानता ही नहीं..तोह इसका जवाब तोह यह है की विज्ञान सत्य थोड़ी है..विज्ञान तोह सत्य की खोज में किये गए प्रयास हैं...विज्ञान तोह शोध और अनुसंधान के नाम पर किये गए प्रयास हैं...और विज्ञान तोह अपने दिए हुए सिद्धांत बदलता रहता है...पहले कुछ बताता था..आज कुछ बताता है.पहले अनु-अनु ही अनु कहता था...फिर एलेक्ट्रों की खोज की पहले कहा एलेक्ट्रों नुक्लयूस के चारो और घूमता है...अब कहते हैं की एलेक्ट्रों ओर्बितल में होता है..कितने सिद्धांत आये,कितने बदल गए...कितने गलत साबित हो गए...विज्ञान सत्य का नाम नहीं है..सत्य की खोज में किये हुए शोध है...और वह सही हो भी सकते हैं और नहीं भी...दोनों की बारम्बार संभावना हैं...और दूसरी बात विज्ञान निराकुलता नहीं दे सकता है...चाहे कितने भी नए-नए अनुसंधान नयी चीजों का आविष्कार कर ले..लगता जरूर है की सुधार हुआ...लेकिन पहले भी उतना ही था...अब भी उतना ही है...बस पहले भौतिक -वाद नहीं था,अब भौतिक वाद ज्यादा है...पहले लोगों को चलने में देर होती थी...लेकिन अब गाडी है तोह भी उसका खर्चा,रास्ते में पंचर हो जाए,घर में रखने के लिए जगह,चोरी का दर,संभालने की चिंता,बीमारियाँ बढ़ गयीं.....और सुखी गाडी वाला भी नहीं है.....पहले टी.वि पे आता नहीं था तोह पहले भी चोरियां और अपराध होते हैं और अब क्या टी.वि पे दिखाने लग गए तोह क्या चोरी-अपराध कम होगये...अगर देखा जाए तोह अपराध बढ़ जरूर गए होंगे..लेकिन होगा वैसे का वैसा ही...लेकिन धर्म निराकुल सुख को देने वाला है...
संसार में जितना भी सुख दिखाई देता है.वह सभी धर्म का फल है..जितना भी दुःख
है वह अधर्म का फल है...कोई अमीर है..तोह धर्म का फल है..लेकिन अमीर होने
के बाबजूद भी अगर वह रोग-ग्रस्त है...तोह यह अधर्म का फल है..न की धर्म
का..संसार में जिस प्रकार अँधा-आँख के बिना देखने की,लंगड़ा पैर के बिना
चलने की ,गूंगा मुंह के बिना बोलने की...उसी प्रकार यह जीव धर्म के बिना
सुखी रहने की चेष्टा करता है..लेकिन सुखी नहीं रहता है...धर्म के सामान
संसार में सुख को देने वाली कोई ची नहीं है..कल्पव्रक्ष से कुछ मांगोगे तोह
मिलेगा...लेकिन धर्म तोह बिना मांगे बिना चिंतन करे सकल सुख को देने वाला
है...देखो उस मेंढक को जो श्री महावीर स्वामी के सम्वोशरण में गया था कमल
की पंखुड़ी दवा कर...क्या उसने भगवन से कुछ चाह था की मुझे स्वर्ग मिले,या
मुझे सुख मिले...सिर्फ भक्ति थी...और सिर्फ उस भक्ति का फल ही यह था की वह
स्वर्ग में देव हुआ...जरा सोचूं क्या श्रद्धा भक्ति रखने से भी कोई देव हो
सकता है..जरा विचार तोह करूँ की क्या सुख नहीं मिलते होंगे उस स्वर्ग
में,कौन सी अप्सराएं नहीं होती होंगी,यहाँ तक की भूख-प्यास की वेदना भी
नहीं है,न शत्रुओं के संकट,न हथियार रखने की जरूरत,न कोई ग्रहण लगाये,न कोई
साधे-साती लगाये...शुभ लेश्या वाले परिणाम होते हैं...धर्म इतना सुख-दाई
है...वाह!!.....वोह धर्म है क्या ...वोह धर्म है अहिंसा धर्म,दया धर्म
,सम्यक-दर्शन,सम्यक-ज्ञान,सम्यक चरित्र धर्म...जो उत्तम सुख को दे वह
धर्म.,निराकुल सुख को दे वह धर्म.
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और आगे चलते हैं ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
लोग कहते हैं आधुनिक युग में धर्म की बात करना ..यह तोह राम-महावीर के जमाने के बात है,..तोह इसका जवाब यह है की कोई भी चीज आधुनिक नहीं होती है...क्या चीनी को आधुनिक बनोगे,माना थैली बदल जायेगी,रखने की जगह अच्छी हो जायेगी,डिजाईन वाली हो जायेगी,पच्किंग अच्छी हो जाएगी...चीनी ही रहेगी....पानी क्या कभी आधुनिक होता है..थैली भले ही बदल-जाए,फिल्टर करने वाली मशीन आ जाएँ.पानी तोह पानी ही रहेगा...जो मूल-वास्तु है वोह तोह वैसी की वैसी रहती है...क्या झूठ बोलना पहले गलत था..तोह क्या अब गलत नहीं है...क्या अब झूठ बोलने वाले को परेशानी नहीं होतीं है क्या..क्या अभी भी चोरी करना गलत है क्या...या क्या आधुनिक तरह से रोया भी जाता है...अन्दर उमड़ने भाले भाव तोह आधुनिक नहीं हो जायेंगे,या प्यार आधुनिक हो जाएगा?...या पीड़ा आधुनिक हो जायेगी...अंग्रेजी बोलने वाला हो या हिंदी तब रोयेगा तोह दर्द तोह एक जैसा हो होगा...तोह हम क्यों आधुनिकता का बहाना दे-कर धर्म से बचते हैं....
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और आगे चलते हैं ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
लोग कहते हैं आधुनिक युग में धर्म की बात करना ..यह तोह राम-महावीर के जमाने के बात है,..तोह इसका जवाब यह है की कोई भी चीज आधुनिक नहीं होती है...क्या चीनी को आधुनिक बनोगे,माना थैली बदल जायेगी,रखने की जगह अच्छी हो जायेगी,डिजाईन वाली हो जायेगी,पच्किंग अच्छी हो जाएगी...चीनी ही रहेगी....पानी क्या कभी आधुनिक होता है..थैली भले ही बदल-जाए,फिल्टर करने वाली मशीन आ जाएँ.पानी तोह पानी ही रहेगा...जो मूल-वास्तु है वोह तोह वैसी की वैसी रहती है...क्या झूठ बोलना पहले गलत था..तोह क्या अब गलत नहीं है...क्या अब झूठ बोलने वाले को परेशानी नहीं होतीं है क्या..क्या अभी भी चोरी करना गलत है क्या...या क्या आधुनिक तरह से रोया भी जाता है...अन्दर उमड़ने भाले भाव तोह आधुनिक नहीं हो जायेंगे,या प्यार आधुनिक हो जाएगा?...या पीड़ा आधुनिक हो जायेगी...अंग्रेजी बोलने वाला हो या हिंदी तब रोयेगा तोह दर्द तोह एक जैसा हो होगा...तोह हम क्यों आधुनिकता का बहाना दे-कर धर्म से बचते हैं....
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(हम जरा सोचें और चिंतन करें...की यह बात आज के सन्दर्भ में सही है...हमको और नयी पीढ़ी को धार्मिक बनना और बनाना जरूरी है. )
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