Monday, June 27, 2011

6 dhaala-chauthi dhaal-desh vrat,apdhyan aur paapudesh anarth dand vrat ke swaroop

६ ढाला

चौथी ढाल

देश व्रत,अप्ध्यान और पापोपदेश अनर्थ दंड व्रत का स्वरुप
ताहू में फिर ग्राम गली गृह बाग़-बजारा
गमनागमन प्रमाण थान,अन सकल निवारा
काहू की धन-हानी,किसी जय-हार न चिन्ते
देय न उपदेश होय अघ वनज कृषिते

 शब्दार्थ
१.ताहू-फिर उसी
२.ग्राम-गाँव
३.गमनागमन-आने-जाने की
४.प्रमाण-सीमा
५.थान-बना के
६.अन-और
७.सकल-निवारा-बाकि जगह का त्याग
८.काहू की-किसी की
९.धन हानि-नुक्सान,पैसे का नुक्सान अदि
१०.जय-हार-जीत हार
११.चिन्ते-चिंता करना
१२.देय न-नहीं देना
१३.सो-ऐसा
१४.अघ-पाप
१५.वनज-व्यापार
१६.कृषितैं-खेती करने से

भावार्थ

.देश व्रत का धारी श्रावक दिग व्रत की तरह अपने आने जाने के सीमा तोह बना लेता है लेकिन उसका समय,घंटा घडी अदि का संकोच करता है...दिग व्रत जीवन-पर्यंत होता है..लेकिन यह देश व्रत-निश्चित समय के लिए बनाया जाता है..जैसे की अष्टमी,चतुर्दशी,या दशलक्षण व्रत,या रोहिणी  व्रत अदि दिनों में सीमा बना लेता है..या इसका और कम समय भी किया जा सकता है..जैसे की "जब तक प्रवचन सुन रहा हूँ,बिस्तर से नहीं उठूँगा,या कमरे से बाहार नहीं जाऊंगा.)
 ८.अनर्थ-दंड व्रत
अप ध्यान अनर्थदंड व्रत का धारी श्रावक किसी की धन-हानि,मान हानि,नुक्सान अदि के बारे में नहीं सोचता है..तथा किसी के जीत-हार अदि के बारे में नहीं सोचता है..यानि की जुआं,सट्टे अदि का काम नहीं करता है..न आनंद लेता है..इसके अंतर्ग्रत श्रावक कभी यह नहीं सोचता की एक जीते दूसरा हारे,या दूसरा जीते,पहला हारे..ऐसा नहीं है की इस व्रत का धारी श्रावक क्रिकेट अदि नहीं देखेगा,या कोई गेम नहीं खेलेगा,या और कुछ नहीं करेगा..बस जीत हार की भावना नहीं रखेगा.

पापोपदेश अनर्थ दंड व्रत का धारी श्रावक कोई भी ऐसा उपदेश नहीं देगा जिससे किसी प्रकार का पाप हो,चाहे हिंसा पाप हो,चोरी पाप हो,परिग्रह पाप हो,कुशील पाप हो या झूठ पाप हो..तथा खेती,व्यापार अदि करने का उपदेश नहीं देगा..क्योंकि इसमें हिंसा और पाप बहुत होता हैं...हिंसा का उपदेश नहीं देगा..और खुद भी ऐसे काम कम करेगा. उपदेश का मतलब सलाह,मशवरा अदि से भी हैं.

रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी.
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक

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