सम्यकदर्शन(श्रृध्दान) होने के लिये निम्न योग्यता जरूरी हे जिन्हे लब्धि कहते हे.क्षयोपशम लब्धि:1)ज्ञानावरणी आदि घातिया कर्मो का क्षयोपशम (कम होना)2)विशुध्दि लब्धि:आत्मा मे विकार उत्पन्न करने वाले कलुषित भावो का अभाव होने से परिणामो मे निर्मलता आना विशुध्दि लब्धि है. 3).सर्वज्ञ भाषित सन्मार्ग प्राप्ति के क्रम से उत्पन्न हुए भेद अभेद रूप... रत्नत्रय आराधक परम गुरू के उपदेश की प्राप्ति होना देशना लब्धि है.4).मिथ्यादर्शन आदि आठ कर्मो दर्शन मोहनीय की 70,चारित्र मोहनीय की 40,नाम कर्म की 20,गोत्र कर्म की 20,ज्ञानावरन की 30,दर्शनावरण की30 वेदनीय की 30,अंतराय की 30 और आयु कर्म की 33 कोदा कोदी सागर प्रमाण हे.जब यह कर्मो की सता घटकर एक कोदा कोडी सागर से कम यानी अंत: कोडाकोडी सागर रह जावे(अर्ध्द पुदगल परावर्तन काल)तब प्रायोग्य लब्धि की योग्यता होती है. यानी आधा मोक्षमार्ग तय कर लिया है लेकिन फिर भी मिथ्या अज्ञान दिशा से विचलित कर सकते है.5).करण लब्धि:ये चार लब्धिया तो यह जीव अनेक बार प्राप्त कर चुका है अध:करण, अपूर्व करण ,अनिवृतीकरण,तीन परिणामो के प्राप्त होने पर तीन परिणामो विशेष की प्राप्ति होने पर तत्काल सम्यक दर्शन होता है.सम्यक दर्शन के के घाति तीन मूढता(देव मूढता,समय मूढता,लोक मूढता),आठ मद(जाति,कुल,एश्वर्य,रूप,ज्ञान,तप,बल,शिल्प अभिमान या मद),6 अनायतन यानिमिथ्या दर्शन ,मिथ्या दर्शन की आराधना,मिथ्याज्ञान व मिथ्या ज्ञान की आराधना,मिथ्याचारित्र व मिथ्याचारित्र की आराधना.और आठ शंका या यानि प्रगाढ विश्वास नही होना.प्रगाढ विश्वास नही होने से भय होते है.इअह लोक भय,परलोक भय,वेदना भय,मरण भय,अरक्षा भया,अगुप्ति भय यानी हमारी गुप्त बाते लोगो के ज्ञान मे तो नही आ जावेगी.ये सभी भय शंका के होने से होते है
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