Saturday, June 25, 2011

6 dhaala-chauthi dhaal-achauryanu,brahmcharyanu,parigrah pramaan aur dig vrat ka swaroop.

६ ढाला

चौथी ढाल

अचौर्याणु,ब्रह्मचार्याणु,परिग्रह प्रमाण और दिग व्रत का स्वरुप

जल मृतिका बिन और कुछ न गहै अदत्ता
निज स्त्री बिन सकल स्त्री सों रहे विरत्ता
अपनी शक्ति विचारपरिग्रह थोड़ा राखो
दस-दिश गमन प्रमाण ठान,तसु सीम न नाखो
शब्दार्थ
१.जल-पानी
२.मृतिका-मिटटी
३.बिन-जल और मिटटी को छोड़कर
४.गहै-ग्रहण करे
५.अदत्ता-बिना दिए हुए
६.निज स्त्री-विवाहित स्त्री
७.सकल-सारी
८.सों-से
९.विरत्ता-विरक्त रहना
१०.विचार-चिंतन करके
११.थोड़ा-कम
१२.राखो-कम रखों
१३.दश-दिश गमन-दशों दिशाओं में गमन
१४.प्रमाण-सीमा बनके
१५.तसु-उस सीमा
१६.न-नहीं
१७.नाखो-उलंघन

भावार्थ
३.अचौर्याणु व्रत का धारी श्रावक चोरी का सर्वथा के लिए त्याग तोह करेगा ही...और कहीं भी जाएगा.तोह वहां कि जल और मिटटी के अलावा बिना दिए और कुछ ग्रहण नहीं करेगा...और जल,मिटटी भी तब ग्रहण करेगा..जब तक वह जल और मिटटी सार्वजनिक ......नहीं होगी..किसी कि चीज बिना पूछे नहीं लेगा...और बिना दिए नहीं लेगा.

४.ब्रह्मचार्याणु व्रत का धारी श्रावक जिस स्त्री से उसने सांसारिक बंधन बांधा है..उसके अलावा अन्य स्त्रियों से विरक्त रहेगा..और अश्लील गाने,सिनेमा,पिक्चर और गाली अदि नहीं देगा..और न ही अश्लील बात करेगा

५.परिग्रह प्रमाण व्रत का धारी श्रावक अपनी शक्ति के हिसाब से परिग्रह कि सीमा बना लेगा..और उस सीमा के अंतर्ग्रत थोडा ही परिग्रह रखेगा..इसका मतलब यह नहीं है कि परिग्रह कम रखना है..मतलब यह है कि एक सीमा बनानी है...जैसे कि मेरे पे दो पेन हैं और ज्यादातर मान लीजिये दो पेन ही रहते हैं..तब भी मैं परिग्रह प्रमाण बना सकता हूँ (अभी तक नहीं बनाया है).

६.दिग व्रत के अंतर्ग्रत श्रावक अपने आने जाने कि,गमनागमन कि सीमा जीवन पर्यंत के लिए बनता है..जैसे के इस जगह से आगे नहीं जाऊंगा..और इस तरह का दशों दिशायों का जीवन पर्यंत परिमाण बना लेता है..और उस जगह से आई हुई वस्तुओं अदि भी ग्रहण नहीं करता

रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)



जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.




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