Saturday, June 18, 2011


                                श्रावक के १२ प्रकार के व्रत
श्रावक के १२ व्रत कुछ इस प्रकार हैं
१.पांच अणु व्रत(अहिन्साणु,सत्याणु,अचौर्याणु,ब्रह्म्चार्याणु,परिग्रह परिमाण व्रत)
२.तीन गुण व्रत[देश व्रत,दिग व्रत और अनर्थ दंड व्रत (अप-ध्यान,पापोपदेश,प्रमाद-चर्या,हिंसा दान,दु-श्रुतः)]
३.चार शिक्षा व्रत (सामयिक,प्रोषाधोपवास,भोगोपभोग परिमाण और अतिथि संविभाग)

१.सत्याणु व्रत का लक्षण यह है की इस व्रत को धारण करने वाला जीव कभी भी ऐसे शब्द नहीं कहेगा..जो अन्य के प्राण के लिए घटक हो जायें..कष्ट दाई हो जायें,दूसरा किसी को चुभने वाले कठोर शब्द नहीं कहेगा..और तीसरा किसी की निंदा अदि नहीं करेगा..और न ही निंदनीय शब्द (जैसे गली-गलोंच) अदि नहीं कहेगा.

२.अहिन्साणु व्रत का लक्षण यह है की इस व्रत को धारण करने वाला जीव त्रस हिंसा का सर्वथा के लिए त्याग,बेफाल्तू में थावर जीवों की हिंसा नहीं करेगा (जैसे पंखा खुला छोड़ दिया,अग्नि जलती छोड़ दी,पानी वार्बाद करना अदि)..यानि की पंचेंद्रिया हिंसा का तोह सवाल ही नहीं उठता.

३.अचौर्याणु व्रत का धारी श्रावक चोरी का सर्वथा के लिए त्याग तोह करेगा ही...और कहीं भी जाएगा.तोह वहां कि जल और मिटटी के अलावा बिना दिए और कुछ ग्रहण नहीं करेगा...और जल,मिटटी भी तब ग्रहण करेगा..जब तक वह जल और मिटटी सार्वजनिक ......नहीं होगी..किसी कि चीज बिना पूछे नहीं लेगा...और बिना दिए नहीं लेगा.

४.ब्रह्मचार्याणु व्रत का धारी श्रावक जिस स्त्री से उसने सांसारिक बंधन बांधा है..उसके अलावा अन्य स्त्रियों से विरक्त रहेगा..और अश्लील गाने,सिनेमा,पिक्चर और गाली अदि नहीं देगा..और न ही अश्लील बात करेगा

५.परिग्रह प्रमाण व्रत का धारी श्रावक अपनी शक्ति के हिसाब से परिग्रह कि सीमा बना लेगा..और उस सीमा के अंतर्ग्रत थोडा ही परिग्रह रखेगा..इसका मतलब यह नहीं है कि परिग्रह कम रखना है..मतलब यह है कि एक सीमा बनानी है...जैसे कि मेरे पे दो पेन हैं और ज्यादातर मान लीजिये दो पेन ही रहते हैं..तब भी मैं परिग्रह प्रमाण बना सकता हूँ (अभी तक नहीं बनाया है).

६.दिग व्रत के अंतर्ग्रत श्रावक अपने आने जाने कि,गमनागमन कि सीमा जीवन पर्यंत के लिए बनता है..जैसे के इस जगह से आगे नहीं जाऊंगा..और इस तरह का दशों दिशायों का जीवन पर्यंत परिमाण बना लेता है..और उस जगह से आई हुई वस्तुओं अदि भी ग्रहण नहीं करता है
७.देश व्रत का धारी श्रावक दिग व्रत की तरह अपने आने जाने के सीमा तोह बना लेता है लेकिन उसका समय,घंटा घडी अदि का संकोच करता है...दिग व्रत जीवन-पर्यंत होता है..लेकिन यह देश व्रत-निश्चित समय के लिए बनाया जाता है..जैसे की अष्टमी,चतुर्दशी,या दशलक्षण व्रत,या रोहिणी  व्रत अदि दिनों में सीमा बना लेता है..या इसका और कम समय भी किया जा सकता है..जैसे की "जब तक प्रवचन सुन रहा हूँ,बिस्तर से नहीं उठूँगा,या कमरे से बाहार नहीं जाऊंगा.)
 ८.अनर्थ-दंड व्रत
अप ध्यान अनर्थदंड व्रत का धारी श्रावक किसी की धन-हानि,मान हानि,नुक्सान अदि के बारे में नहीं सोचता है..तथा किसी के जीत-हार अदि के बारे में नहीं सोचता है..यानि की जुआं,सट्टे अदि का काम नहीं करता है..न आनंद लेता है..इसके अंतर्ग्रत श्रावक कभी यह नहीं सोचता की एक जीते दूसरा हारे,या दूसरा जीते,पहला हारे..ऐसा नहीं है की इस व्रत का धारी श्रावक क्रिकेट अदि नहीं देखेगा,या कोई गेम नहीं खेलेगा,या और कुछ नहीं करेगा..बस जीत हार की भावना नहीं रखेगा.

पापोपदेश अनर्थ दंड व्रत का धारी श्रावक कोई भी ऐसा उपदेश नहीं देगा जिससे किसी प्रकार का पाप हो,चाहे हिंसा पाप हो,चोरी पाप हो,परिग्रह पाप हो,कुशील पाप हो या झूठ पाप हो..तथा खेती,व्यापार अदि करने का उपदेश नहीं देगा..क्योंकि इसमें हिंसा और पाप बहुत होता हैं...हिंसा का उपदेश नहीं देगा..और खुद भी ऐसे काम कम करेगा. उपदेश का मतलब सलाह,मशवरा अदि से भी हैं.

प्रमाद चर्या अनर्थ दंड व्रत का धारी श्रावक बेमतलब में,प्रमाद या अकारण जल कायिक,वायुकायिक,अग्नि कायिक,वनस्पति कायिक और पृथ्वी कायिक जीवों की विराधना नहीं करेगा,जैसे पानी बर्बाद नहीं करना,कुदाल से मिटटी नहीं खोदना,फूल,पट्टी अदि नहीं तोडना,प...ंखा अदि बेफाल्तू में नहीं चलाना.

हिंसा दान अनर्थ दंड व्रत का धारी श्रावक तलवार,दनुष,हल अदि हिंसा के उपकरण को न किसी को देगा,न दिलवाएगा,न रखने वालों की अनुमोदन करेगा और न ही खुद रखने में यश मानेगा.जैसे की बन्दुक अदि रखने का काम नहीं रखेगा,.या अन्य हिंसा के कारण अस्त्र-शस्त्र और वस्तुओं को नहीं रखेगा.

दु-श्रुतः अनर्थ दंड व्रत का धारी श्रावक कभी भी राग-द्वेष को उत्तपन करने वाली कथाएँ पढ़ेगा,न सुनेगा, न सुनाएगा..जैसे की सिनेमा अदि नहीं देखेगा,अशील कथा नहीं पढ़ेगा,झूठे शास्त्र नहीं पढ़ेगा.


चार शिक्षा व्रत

सामयिक व्रत को पालने वाला श्रावक हमेशा समता भाव से रहेगा,यानि की सुख और दुःख की घड़ियों में एक जैसा व्यवहार करेगा,और भुत की आपबीती,अच्छे,बुरी यादें और भविष्य के विकल्प नहीं बनाएगा....और हर दिन ४८ मिनट संधि काल के समय सामयिक करेगा.
प्रोषादोपवास व्रत को पालने वाला श्रावक  महीने की दो अष्टमी और दो चौदस वाले दिन...व्रत रखेगा..और कोई भी ऐसा काम नहीं करेगा जिसमें पाप का बंध हो...यानि की पाप को ताज कर प्रोषद रखेगा
भोगोपभोग परिमाण व्रत पालने वाला श्रावक  अपने भोगने की चीजें,न भोगने की चीजों का परिमाण बना लेगा,परिग्रह प्रमाण में जीव अपनी एक सीमा बनता है...लेकिन भोगोपभोग परिमाण व्रत में उस सीमा को और कम कर लेता है..और बाकि बची हुई चीजों से मोह-ममता का त्याग कर देता है.
अतिथि सम्भिभाग व्रत को पालने वाला जीव किन्ही मुनिराज,आर्यिका, ऐलक जी,क्षुल्लिका जी,क्षुल्लक जी.या किन्ही सुपात्र को भोजन खिलाकर खुद भोजन करेगा...जब तक वह जीव इनमें से किन्ही को भोजन न दे दे तब तक कुछ नहीं खायेगा.

श्रावक व्रत पालने का फल:-

जो मनुष्य श्रावक के १२ व्रतों को पालते हैं,वह भी पांच-पांच अतिचार को दूर करके,तथा जब आयु पूरी होने वाली हो शरीर की उस समय समाधी मरण को धारण करके,अथवा उसके दोषों को दूर करते हैं..इस श्रावक व्रत को पालने के परिणाम स्वरुप वह जीव १६ स्वर्ग तक के देवों में उत्त्पन्न होते हैं...और वहां से आयु पूरी करके मनुष्य आयु पाते हैं,और फिर मुनि होकर परम शिव पद,मोक्ष पद,निराकुल आनंद सुख को प्राप्त होते हैं.

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