Friday, July 22, 2011

6 dhaala-chathi dhaal-ratnatray adi anya dharma aur swaroopaacharan charitra ka varnan

६ ढाला
छठी ढाल
रत्नत्रय अदि अन्य धर्म
तप तपैं द्वादश धरें अरु  वृष दस रत्नत्रय सेवें सदा
मुनि साथ वा एकल विचरें हैं नहीं भाव सुख कदा
यों हैं सकल संजम चरित्र,सुनिए स्वरूपाचरण अब
जिस होत प्रकटी आपनी निधि,मिटे पर की प्रवर्ती सब

शब्दार्थ
1.तप तपैं द्वादश-बारह प्रकार के तप तपते हैं
२.अरु-और
३.वृष दस-दस धर्म
४.रत्नत्रय-सम्यक ज्ञान,सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र.
५.सेवें-धारण करते हैं
६.सदा-हमेशा
७.मुनि साथ-संघ के साधुओं के साथ
८.वा-या
९.एकल-अकेले ही.
१०.विचरें-विहार करते हैं
११.चहैं-चाहते नहीं हैं
१२.भाव सुख-सांसारिक,भौतिक सुख
१३,यों -इस प्रकार
१४.होत-होने से
१५.प्रकति-प्रकट होती है
१६.आपनी निधि-दर्शन ज्ञान स्वाभाव
१७.मिटे-मिट जाती है
१८.पर की-पर पदार्थों से
१९.प्रवर्ती-साड़ी निर्भरता

भावार्थ
वह मुनिराज बारह प्रकार के तपों को धारण करते हैं.(अन्तरंग और बहिरंग तप)...और १० धर्मों को धारण करते हैं..तथा सम्यक दर्शन,सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र को धारण करते हैं...मुनियों के साथ या एकल विहारी होकर विहार करते हैं..और भौतिक,इन्द्रियजन,अस्थायी सांसारिक सुखों से विरक्त होते हैं..और चाहते नहीं..इस प्रकार सकल संयम चरित्र का वर्णन हुआ...अब स्वरूपाचरण चरित्र का वर्णन कर रहे हैं..जिस के प्रकट होने से आत्मा की निधियां प्रकट होती हैं..और पर पदार्थों से हर प्रकार की प्रवर्ती मिट जाती  HAIN.

रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा कृत
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ श्री शीतल चंद जैन जी)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.



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