६ ढाला
पांचवी ढाल
संवर भावना के लक्षण
जिन पुण्य पाप नहीं कीना,आतम अनुभव चित दीना,
तिन्ही विधि आवत रोके,संवर लाही सुख अवलोके
शब्दार्थ
१.जिन-जिन्होंने
२.पुण्य-शुभ भाव,शुभ के फल में रति,शुभ कर्म
३.पाप-अशुभ भाव,अशुभ के फल में आरती,अशुभ कर्म
४.नहीं कीना-नहीं किया
५.आतम-आत्मा स्वरुप
६.चित-मन
७.दीना-लगाया
८.तिन्ही-उन्होंने
९.विधि-कर्मों
१०.आवत-आने से
११.रोके-रोक लिया
१२.संवर लाही-संवर को प्राप्त करके
१३.अवलोके-साक्षात्कार किया,प्राप्त किया
भावार्थ
८.संवर भावना
जिन्होंने पुण्य और पाप नहीं किया,शुभ और अशुभ कर्मों के फल में रति और अरति नहीं कि..शुभ और अशुभ भाव नहीं किये....और आत्मा के अनुभव में मन को लगाया..आत्मा स्वाभाव में लीं हुए..या लीं होने..वह आते हुए कर्मों को आत्मा के प्रदेशों में मिल जाने से रोक लेंगे..कर्मों के आश्रव द्वार को बंद करेंगे,बंध को रोक लेंगे...और संवर को प्राप्त करके आकुलता रहित सुख का साक्षात्कार करेंगे..ऐसी भावना भाना संवर भावना है.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला-संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला-संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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