भगवान अनंत-वीर्य केवली के समोवोशरण से हनुमान और विभीषण ने भी श्रावक के व्रत धारण किये..तब गौतम स्वामी हनुमान के गुणों का वर्णन करते हैं तब राजा श्रेणिक पूछते हैं की हे भगवान कौन है यह हनुमान,कहाँ से आये,किसके पुत्र हैं..तब गौतम स्वामी कहते हैं की १० योजन ऊँचे विज्यार्ध पर्वत में आदित्यपुर नगर में वायुकुमार नाम का राज पुत्र यौवन देखकर पिता को चिंता हुई..उधर भरत-क्षेत्र में समुद्र के दक्षिण में राजा महेंद्र द्वारा बसाया हुआ महेंद्र नगर ,रानी ह्रदय वेगा को पुत्री अंजना के लिए चिंता हुई..यह पुत्री पिता के लिए अत्यंत दुःख का कारण हो जाती है,राजा-महाराजा अत्यंत चिंतित रहते हैं तब राजा महेंद्र मंत्रियों से पूछते हैं तोह एक मंत्री कहते हैं की रावण से विवाह कर दो...तोह दुसरे मंत्री कहते हैं की रावण की कई रानियाँ है..और वह घमंडी हैं..उनसे विवाह करवाना सही नहीं है...तब प्रस्ताव आता है की इन्द्रजीत से विवाह कर दो..तब एक मंत्री कहते हैं की इन्द्रजीत और मेघनाथ में विवाद चलता रहता है..इसलिए इसमें सुख नहीं रहेगा..इस प्रकार तरह-तरह के प्रस्ताव आते हैं..कई मंत्री स्वयंवर का प्रस्ताव रखते हैं..वह भी नहीं भाता है....फिर एक प्रस्ताव आता है की राजकुमार विद्युत्-प्रभ से विवाह कराएं..लेकिन अन्य मंत्री कहते हैं की वह १८ वर्ष की उम्र में मुनि-दीक्षा लेकर केवल-ज्ञान को प्राप्त करेंगे..तब राजा प्रहलाद के पुत्र पवंजय का प्रस्ताव आता है..वह राजा को पसनद आता है..शीग्र ही वसंत ऋतू आ जाती है...इन्द्र अदि नन्दीश्वर द्वीप की वंदना जाते हैं..विद्याधर अदि कैलाश पर्वत की वंदना करने के लिए जाते हैं...ऐसा जानकार राजा महेंद्र भी कैलाश पर्वत की वंदना करने जाते हैं....उधर राजा प्रहलाद भी भरत-चक्रवती द्वारा बनवाये गए जिन मंदिर के दर्शन करने गए होते हैं..तोह वह पर्वत पर एक दुसरे से मिलते हैं..एक दुसरे से कुशल-मंगल पूछते हैं और राजा प्रहलाद पुत्र के विषय में चिंता व्यक्त करते हैं..तोह उधर राजा महेंद्र पुत्री अंजना के विषय में चिंता व्यक्त करते हैं...अतः पवंजय का विवाह अंजना के साथ तय हो जाता है.तब पवंजय को इस बारे में पता चलता है तोह वह काम आसक्त हो जाते हैं..पहले दिन देखने की चा दुसरे दिन भोगों की अभिलाषा ..तीसरे दिन पागल-पांति...चौथे दिन भोजन में स्वाद नहीं आ रहा छठे दिन सब व्यर्थ लगने लगा...लज्जा नहीं रही ..इस प्रकार काम की आग में जलते रहे...धिक्कार है ऐसे काम को..जो मोक्ष मार्ग से हमें दूर करता है..इस प्रकार पवंजय ने मित्र प्रहस्त को याद किया..तोह प्रहस्त भी आ गए..उनसे पूरा वृतांत कह कर..व्यथित होने लगे..तब मित्र प्रहस्त उन्हें विमान में बैठाकर अंजना के महल में ले आये..तोह रूप देखकर शांत हुए..और छुपकर देखने लगे..तब ही अंजना के पास एक सखी आती है और कहती है की धन्य हो तुम जो तुम्हे पवंजय जैसे पति मिले..पवंजय कहिये या वायुकुमार कहिये ..यह सुनकर प्रसान हुए..तभी दूसरी सखी मिश्रकेसी कहती है की तुम कितनी महा- मूर्ख हो जो विद्युत्-प्रभ को छोड़ कर पवंजय से विवाह कर रही हो..वह महा रूप वां ..महा सौम्यवान-उत्तम आचरण वाला है..और मुनि-दीक्षा लेके भौतिक सुखों से विरक्त होंगे ..इसलिए ऐसे उत्तम लोगों के साथ कुछ समय का आचरण ही अच्छा है..क्षुद्र लोगों के साथ हजार वर्ष का जीवन भी बेकार है..यह बात पवंजय सुनते हैं और तलवार निकालते हैं..तब मित्र प्रहस्त उन्हें रोक लेते हैं..पवंजय के मन में अंजना और दासी दोनों के लिए द्वेष भाव उत्पन्न हो जाते हैं..वह अंजना को भी दोष देते हैं क्योंकि वह उनकी निंदा सुन रही थी...तब वह राज्य से वापिस लौटते हैं क्रोधित होकर तब प्रजा अति अस्चर्या में पद की जाती है की ऐसी क्या गलती हो गयी जो कुमार वापिस लौट रहे हैं..कोई कुछ कहते हैं कोई कहते हैं की यह अभी स्त्री-सुख नहीं जाने हैं..ऐसे ही वचन कहते हैं..राजा प्रहलाद भी आश्चर्य-चकित होते हैं...राजा महेंद्र भी देखकर आते हैं..दोनों पवंजय को बुलाते हैं और आज्ञा देकर विवाह करवा देते हैं..पवंजय मन ही मन सोचते हैं की इसे विवाह के बाद दुःख-दूंगा..तब इसे पता-चलेगा...फिर यह और किसी से विवाह नहीं कर पाएगी.... . का और इस प्रकार पवंजय और अंजना का विवाह संपन्न होता है.
वस्तु के स्वाभाव को जाने बिना जो दूसरों की निंदा करते हैं..वह मूर्ख हैं क्योंकि वह वास्तविकता को नहीं जानते..और निंदा करने से ऐसे अवगुण उनके अन्दर भी आ जाते हैं
.. लिखने का आधार-श्री रविसेन आचार्य द्वारा विरचित शास्त्र श्री पदम् पुराण है..लिखने का आधार शास्त्र है..शब्द मेरे हैं ..शास्त्र में दिए गए विस्तार के वर्णन को कम शब्दों में लिखा है..कोई मिसप्रिंट हो तोह बताएं..
जय जिनेन्द्र.
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