हनुमान की जन्म कथा का वर्णन
अंजना में गर्भ के लक्षण प्रतीत हुए...तोह सारे लक्षण गर्भ के प्रतीत हो गए..अंजना को गर्भवती देखकर सासू-केतु मति..कोपित हुईं..अंजना ने पवंजय के आने का वृतांत सुनाया...अंगूठी आदि दिखाई नहीं मानी ..और क्रूर नाम के एक किन्नर के हाथों महेंद्र नगर (राजा महेंद्र-पिता अंजना के)..के पास भिजवा दिया...सखी वसंत तिलिका भी साथ में गयी..सो अंजना पिता के महल में पहुंची तोह सैनिकों ने ना पहचान कर मना कर दिया आने से (यह सब कर्मों का ही योग है)..तब पिता महेंद्र को इसका पता चला तोह पिता ने स्वागत कर के बुलाया..पुत्री को लज्जा-वान देखकर पिता अति कुपित हुए..और कोई भी विशष नहीं करने लगा की (अंजना के गर्भ में पवन-जय का ही पुत्र है)...तब पिता ने भी नगरी से बाहर निकाल दिया..सखी वसंत तिलिका ने समझाया भी..मंत्रियों ने रानी केतुमती की क्रूरता और नास्तिकता के बारे में भी बताया...लेकिन वह नहीं माने और अंजना दुखियारी ..रोते रोते वसंत तिलिका के साथ-वन के पास पहुंची..बार-बार अशुभ कर्मों को कोसती..याद करतीं की जो पिता गोदियों में खिलाते थे..वह आज इतना दुःख दे रहे हैं...ससुराल से और पिता के यहाँ से दोनों जगह से निकाल दिया अब कहाँ जून..तब अंजना दुर्जन वन में बसंत-तिलिका के साथ पहुँचती हैं..वन इतना भयानक की मन भी न सोचे जाने की तोह मनुष्य कैसे सोच लें..अंजना वन में चलतीं तोह कांटे चुभते तोह दुःख होता..लेकिन वह आगे बढती गयीं...वसंत-तिलिका ने कहा की तेरे प्रसव का समय अब निकट है तोह आगे गुफा है उसमें चल...अंजना को एक-कदम भी नहीं चला जा रहा था..तब भी वसंत-तिलिका उन्हें चला कर ले आयीं..गुफा के पास आती हैं तोह क्या देखती हैं की मुनिराज आत्मा-ध्यान में लीं..दुर्जन वन में निज-स्वरुप का ध्यान कर रहे हैं...अंजना और वसंत तिलिका उनकी स्तुति करती हैं..अंजना उनसे पूर्व भवों के बारे में पूछती हैं...तोह मुनि-राज कहते हैं की तुने पूर्व जन्म में जिनेन्द्र भगवन की प्रतिमा को एक क्षण के लिए जिनालय से बहार निकलवाया था..जिसके कारण इतना बड़ा कर्म बंधा..की तुझसे पति और परिवार दोनों दूर हुआ...जिसके कारण तोह दुःख भोग रही है...हे भव्ये यह पाप का उदय अब पूरा होने वाला है..अब पवंजय तुझे लेने आने वाले हैं...तेरे गर्भ में अति पुण्यशाली बालक है..जिसको देवता भी नहीं जीत पायेंगे...ऐसा कहकर मुनिराज उपदेश देते हैं..अंजना और सखी बार-बार प्रणाम करते हैं..स्तुति करती हैं और पाप कर्मों की निंदा करती है..मुनि के बैठने से गुफा भी पवित्र हो जाती है..मुनिराज निर्जन स्थान पर तप करते..कुछ समय ही वहां रहते उसके बाद वहां से चले जाते...हैं ..इसी प्रकार वह मुनिराज भी चले जाते हैं...अंजना की प्रसूति का समय आता है...तब वहां जंगले में एक भयंकर सिंह दोनों के पास आता है..दोनों कम्पायमान होती है,सखी बसंत-माला ऊपर निचे कूदती हैं....घबराते हैं..उनको देखकर गुफा में रह रहे एक देव-देवी को दया आती है..और वह देव सिंह का रूप बना कर अंजना को बचाते हैं..जब कर्मों का उदय आता है तोह सब कुछ हो जाता है..फिर वह गन्धर्व देव तरह-तरह से जिनेन्द्र भगवान् की वंदना करते हैं..अंजना के गर्भ से बच्चा बहार आता है..जो अति प्रकाशमान होता हैं..उसे देखकर अंजना अति प्रसन्न होती है..तब वहां पर एक बहुत बड़ी रौशनी चमकती है..और एक विमान जंगल में उतरता है..उस विमान में अंजना के मामा जी होते हैं,अंजना उन्हें पहचानती नहीं हैं..लेकिन उके द्वारा प्रमाण देने पर मान जाती हैं..वह अंजना को हनुरूह नगर में ले जा रहे होते हैं की रास्ते में अंजना की गोद में से विमान से पुत्र गिर जाता है...विमान में हा-हकार मच जाता है..नीचे जा कर देखते हैं..तोह पुत्र सो रहा होता है..और पत्थर टूट जाता है...इसलिए उस बालक का नाम श्री शैल रखते ते हैं...हनुरूह नगर में आने के कारण बालक का नाम हनुमान रखते हैं...अब हनुमान बिना पिता के माता अंजना के साथ हनुरूह नगर में रह रहे होते हैं...पवंजय राजा वरुण से युद्ध कर वापिस राज्य में पहुँचते हैं तोह अंजना को न पाकर व्याकुल होते हैं,मित्र प्रहस्त के साथ ससुराल भी जाते हैं..वहां भी नहीं मिलती..तोह वह हर जंगल नगरी में ढूंढते हैं लेकिन अंजना नहीं मिलती हैं..पवंजय आत्मा-घात का निश्चय लेते हैं..और प्रहस्त से घर में सन्देश भिजवाते हैं...घर में खबर सुन सब व्याकुल हो कर पवंजय के पास जाते हैं और पवंजय को वन में ढूंढते हैं (क्योंकि इतने समय में पवंजय मित्र की अनुपस्तिथि में जंगल में जाते हैं.....पवंजय के पिता अदि सारे लोग घबराकर उन्हें जंगले में उन्हें ढूंढते हैं..एक हाथी के माध्यम से वह पवंजय तक पहुँचते हैं...पवंजय अदि संक्लेषित भावों से बैठे होते हैं..किसी से mukh से बात भी नहीं करते..राजा हर नगर में दूत bhijwaate हैं खबर फैलाते हैं की अंजना ko doondha जाए दूध हनुरूह नगर भी जाता है..जहाँ अंजना के मामा जी रहते थे..यह बात सुनकर वह पवंजय के पास जाते हैं की विश्वास बंधाते हैं की अंजना हनुरूह नगर में पुत्र के साथ बड़े सुख से हैं...पुत्र की बात सुनकर खुश हो कर पवंजय शीग्र ही अंजना से मिलने जाते हैं..और अंजना के साथ रहते हैं...अंजना का पति से संयोग हो जाता है...
लिखने का आधार-शास्त्र श्री पदम् पुराण (अनुवाद आर्यिका श्री दक्षमती माता जी)..अल्प बुद्धि के कारण और प्रमाद के कारण कोई शब्द-अर्थ की भूल हो तोह सुधार कर पढ़ें...
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