Tuesday, August 2, 2011

vaanar vansh ki utpatti

<<<<"श्री पदम् पुराण की कथाएँ">>>>>
इस पोस्ट को पढने से पहले यह ध्यान रखें की आप शारीरक और मानसिक दोनों रूप से शुद्ध हैं या नहीं (मतलब मन में किसी प्रकार को कोई गुस्सा वगरह न हो,और हाथ-मूंह-धुले हुए हों...???.....

.अविनय न हो इस बात का ध्यान रखें..

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मंगलाचरण-अरिहंतों को नमस्कार,सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार,सारे साधू को नमस्कार
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कल हमने जाना रावण के वंश से सम्बंधित...लेकिन !!!!!!!!!!!!

अब हमें यह जानना है की जो हनुमान जी थे,सुग्रीव जी अदि थे...यह सब वानर वंश के थे...नाकि कोई वानर थे..........यह बात रावण के वंश की उत्पत्ति के बाद जानना इसलिए जरूरी है..क्योंकि राक्षश वंश का वानर वंश से एक सम्बन्ध था........इसलिए हमें यहाँ यह भी जानना होगा की यह वानर वंश इसका नाम क्यों पड़ा???...और क्यों इस वंश को वानर वंश कहते हैं...इन्ही सब बातों के लिए हमें नीचे पढना होगा.


वानर वंश की उत्पत्ति

विजयार्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी में मेघपुर नाम के नगर में अतीन्द्र नाम का राजा राज्य करता था..रानी का नाम श्रीमती था..और पुत्र का नाम श्रीकंठ था..और एक पुत्री थी..उसी विद्याधर प्रदेश में रत्न पुर के राजा(पुषोत्तर) ने अतीन्द्र राजा से पुत्री की याचना की..राजा ने कहा की वह तोह लंका के राजा को ही देंगे..राजा बहुत क्रोधित हुआ..एक बार श्रीकंठ सुमेरु पर्वत पर विमान से जिनालय के दर्शन करने जा रहा था..उसको मधुरमय आवाज सुनाई दी..आवाज रतनपुर के राजा की पुत्री (पदमाभा) की थी.श्रीकंठ जैसा शास्त्रकों का ज्ञाता मोहित हो गया..और वह भी मोहित हो गयी भाग गया..रत्न पुर के राजा पहले ही क्रोध में था..अब आक्रमण श्रीकंठ पर ही कर दिया..श्रीकंठ लंका के राजा कीर्तिधवल की शरण में गया...कीर्तिधवल ने रक्षा की ..और कहा आप निश्चिंत रहे ..युद्ध शुरू होता इससे पहले..भागी हुई पुत्री ने ही पिता से कहा की यह मुझे भगा के नहीं लाये ..मैं ही आईं हूँ..और बातें बताएं..जिससे लड़ाई शांत हुई....अब कीर्तिधवल ने श्रीकंठ से कहा की आपके विजयार्ध पर्वत पर कई दुश्मन है..इसलिए आप यही रहिये..श्रीकंठ राजा ने मंत्री से कोई जगह पूछी तोह उन्होंने बताया कि इस राक्षस द्वीप से २०० योजन दूर लवण समुद्र में वानर द्वीप है..वहां कि असीम सुन्दरता के बारे में बताया...जिसे सुनकर राजा श्रीकंठ को जगह भा गयी और वह रतनपुर के राजा कि पुत्री के साथ वहां आ गया..वहां हर प्रकार के फल थे..राजा ने वहां किहिकुंद नाम के पर्वत पे किहिकुंद नगर बसाया..
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राजा ने वहां बंदरों कि क्रियाओं को देखा मंत्री से बंदरों को लेकर आने को कहा..उनको केले अदि फल खिलाये..और उन बंदरों के चित्र बनवा कर राजमहल में लगवाए ..एक बार राजा ने इन्द्र को अन्य देवों के पास नन्दीश्वर दीप कि वंदना हेतु जाते देखा तोह वह भी विमान लेकर चल पड़ा..मानुषोत्तर पर्वत से आगे न जा सका क्योंकि वहां मानुषोत्तर पर्वत के उस पार मनुष्य नहीं जा सकते हैं..इससे दुखी हुआ..और उसे एह्साह हुआ कि मैं इस पर्याय पर जितना घमंड करता था..सब व्यर्थ था..ऐसी विद्या का क्या फायदा कि चैत्यालय कि वंदना भी नहीं कर सकता..अब कुछ ऐसा करूँ कि नन्दीश्वर दीप कि वंदना करने जा सकूँ..इसलिए सारा परिग्रह राज्य त्याग कर मुनि हुए..और राज्य पुत्र व्रजकंठ को दिया..व्रजकंठ ने एक वृद्ध से पिता का पूर्व भव सुना(क्योंकि उस वृद्ध ने मुनिराज से सुना था).और उन्होंने बताया कि दो भाई थे महाजन..एक श्रावक व्रत पालता था..दूसरा कुव्यसनी था..छोटा वाला लुट गया..जब बड़े बाले ने मदद करी..और श्रावक व्रत का उपदेश दिया.जिससे बड़ा वाला इन्द्र हुआ और छोटा वाला राजा श्रीकंठ..जब इन्द्र श्रीकंठ राजा के ऊपर से निकल रहा था..तब उसे जाती स्मरण हो गया था..इस कारण विरक्त हो गया..वृद्ध कि इतनी बातें सुनकर वह भी विरक्त हो गए.और पुत्र को राज्य दिया..इसी प्रकार पुत्र भी विरक्त हुआ और पुत्र अमरप्रभ को दिया..अमरप्रभ ने विवाह किया ..और राज महल में रानी को लाया..रानी बंदरों के चित्र देखकर बेहोश हो गयी..तब अमरप्रभ राजा कोर्धित हुआ..और चित्र हटाने के लिए कहा..तब मंत्री ने रोका और श्रीकंठ राजा का यहाँ आने का और वानरों से मिलने का पूरा घटना का वर्णन किया..jisse वह शांत हुआ..और कहा अगर ऐसा बात है तोह इन वन्दरों के चित्रों को मुकुट पे लगाया जाए..और इन वानरों के चित्र झंडो पर,ध्वजोंपर लगाये जाएं..ऐसा ही हुआ..राजा अमर प्रभ विजयार्ध पर्वत जीतने निकला वह सबसे जीत गया..और हर जगह वानरों के चित्र वाले झंडे लगे..और इस तरह से जो वंश हुआ वह वानर वंश hua ........
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राजा अमरप्रभ ने भी विरक्ति को धारण किया..राजा अमरप्रभ भगवन वासुपूज्य के समय में थे..उसी वानर वंश में कई राजा हुए..एक राजा महोदधि हुए..रानी विद्युतप्रकाश...उस समय लंका के राजा विद्युत केश हुए..राजा विद्युत को वैराग्य देख राजा महोदधि भी मुनि हो गए..राजा विद्युत केश को वैराग्य ऐसे हुए की उन्ही की एक रानी प्रमद नाम नाम के बाग़ में टहल रही थीं..तभी बंदरों ने उन्हें नोंच दिया..जिससे खून बहने लगा...राजा विद्युत केश ने बन्दर को मारा और वह बन्दर चारणऋद्धि धारी मुनि के चरणों में गिर गया..मुनि ने नमोकार मंत्र सुनाया जिससे वह बन्दर भवन-वासी देवों की पर्याय में उदधिकुमार प्रजाति का देव हुआ..पूर्व का ज्ञात हो-कर राजा पर बार किया (राजे के सिपाही भी अन्य बंदरों को कष्ट दे रहे थे)...खतरनाक-खतरनाक बंदरों को महा-विकराल बंदरों को दिखाया..जिससे राजा भयभीत हो गया..और देव माया को पहचाना..उसने माफ़ी मांगी और देव ने विभूति के बारे में बताया..जिससे देव सरल हुआ..और मुनि तपोधन के पास गए..मुनि ने कहा की पास में ही गुरु हैं ..उनसे उपदेश सुनिए..गुरु के मौजूद होते हुए..मैं कैसे उपदेश दे सकता हूँ.आचारंग से भंग कहलाऊंगा..वह मुनि के पास गए..मुनि ने अहिंसा धर्म का उपदेश हुआ..मिथ्या-दर्शन,मिथ्याज्ञान और मिथ्यचरित्र का उपदेश दिया..कहा की संसार में दो ही धर्म हैं एक श्रावक धर्म और एक मुनि धर्म इसके अलावा और कोई धर्म मानने वाला जीव मोह में जलता है..नरक के दुखों के उपदेश दिए..उसके बाद दोनों ने मुनि से पूर्व भव पूछे.
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.मुनि ने कहा की एक श्रावस्ती नगरी में एक मंत्री था..वह विरक्त हो कर मुनि हुआ..और काशी नगरी में एक पारधी था..एक बार मुनि-विहार करते करते काशी नगरी पहुंचे..तोह पारधी ने उनकी बड़ी अवमाना करी..मुनि तप कर रहे थे..तब भी उन्होंने सोचा की इस पापी पारधी को एक मुक्का दे दूँ..उन्होंने ऐसा कर दिया जिससे जो वह ८वे स्वर्ग में देव होने वाले थे..अगले भव में ज्योतिष देव हुए..और वहां से चयकर विद्युत केश विद्याधर हुए..और पाई पारधी प्रमाद नाम के बाग़ में बन्दर हुआ..अपने पूर्व भव सुनकर राजा विरक्त हुए ..जिनकी कथा सुनकर महोदधि राजा विरक्त हुए...महोदधि राजा को लंका का भार भी मिल चुका था(क्योंकि अब वह राज्य विद्युत केश के बाद उन्हें ही संभालना था)...पूरे महल में रोवन-धोवन मच गयी..अश्रुं बहने लगे..सब ने रोका..रानियाँ चरण पड़ गयी..युवराज ने रूका..लेकिन वह नहीं रुके..और पुत्र प्रतिचंद्र को राज्य देकर मुनि बनकर सिद्ध्पद को प्राप्त हुए..प्रतिचंद्र पुत्र भी किहिकुंद को राज्य देकर और मुनि हुए....किहिकुंद राजा ने युवराज के साथ काफी समय राज्य किया..उसी समय विज्यर्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में अश्निवेग नाम का राजा था..पुत्र का नाम विजय सिंह था...वहां अदित्यानगर के राजा ने पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर रचाया..बड़े बड़े विद्याधर राजाओं के पुत्र आये..राजा ने सबके बारे में पुत्री को बताया..लेकिन पुत्री ने किहिकुंद राजा के गले में माला डाली..जिसे देखकर विजय सिंह को क्रोध आया और कहा वानरवंशी विद्याधर यहाँ पर कहाँ से आये...? यह तोह विजयार्ध पर्वत के विद्याधरों के लिए था.....और उन्हें बन्दर कहकर..पेड़ पर लटकने वाले और विचित्र आकृति के कहकर क्रोध दिलाया....जिससे उनमें युद्ध शुरू हुआ...दोनों वानर-वंशी और विजय सिंह की सेना..में युद्ध हुआ...लंका के राजा सुकेश ने भी वानर वंशी की सहायता की..बहुत ज्यादा युद्ध हुआ..उनमें से अंधक के विजय सिंह को मार दिया..पुत्र के म्रत्यु की खबर सुन पिता राजा अश्निवेग मूर्छित हो गया..फिर मूर्छा से निकला तोह क्रोध में लड़ने आया..वानर द्वीप में आक्रमण किया..काफी समय युद्ध हुआ..अन्धक की हत्या हो गयी..और किहिकुंद बेहोश हो गया..जब होश आया तोह भाई की बात सुनकर शोकमग्न हो गया..और तरह-तरह की विचार धाराएं शुरू कर दिन..तब सबने समझाया..लेकिन शोक ख़त्म नहीं हुआ..तब रानी श्रीमाला को देख कर शोक रहित हुआ..
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.राजा सुकेश ने कहा की हमारा यहाँ रहना सही नहीं है पाताल लंका सुरक्षित जगह है वहां रहेंगे...तब वह वहां सुरक्षित रहने लगे.. तब उस समय राजा अशनिवेग तोह बादलों को देखकर विरक्त हो गया ..और पुत्र सहस्त्रार को राज्य दे दिया.. विरक्ति से पहले अशनिवेग ने ने लंका में निर्बाध नियुक्त कर दिया जो लंका पे नजर रखने लगा..और इस क्षण के इन्तजार में था..की कब वह पातळ लंका से लंका में आये कब्ज़ा करने और कब हमला बोला जाए..उसके दर से अन्य राक्षस अदि भी छुपे रहते the राजा किह्कुंध पाताल लंका में ही रह रहे थे एक बार राजा किहिकुंद रानी के साथ सुमेरु पर्वत के जिनालयों के दर्शन कर लौट रहे थे..तब देवकुरुभोग्भूमी के सामान एक वन देखा..वह अच्छा लगा और उन्होंने वहां किह्कंध नगर बसाया...राजा किकुंध के यहाँ दो पुत्र हुए १.सूर्यरज २.रक्ष रज और पुत्री सूर्य कमला ..मेघपुर नगर के पुत्र मृगारिदमन उस पर मोहित हो गया..राजा ने विवाह करा दिया...लौटते समय वह भी कर्ण पर्वत पर कर्णकुंडल नगर वसा के रहने लगा..उधर राजा सुकेश के यहाँ तीन पुत्र हुए.१माली २.सुमाली ३.माल्यवान तीनो की क्रियाएं देव जैसी थीं..क्रीडा करते देख..एकबार पिता ने कहा की तुम किह्कंध नगर जाकर क्रीडा करो..लेकिन दक्षिण समुद्र की तरफ मत जाना..पुत्र ने कारण पुछा..बहुत पूछने पर पुराणी युद्ध अदि की कथा सुनाई...माली-सुमाली दुखी हुए..और वचन दिया की लंका को वापिस जीत कर लायेंगे..उन्होंने निर्बाध को हरा दिया..और पिता अदि को बुलाकर उसी लंका में रहने लगे..माली का विवाह हेमपुर नगर की राज पुत्री चन्द्रावती से हुआ..सुमाली का विवाह प्रज्ञकूटनगर की राज्य पुत्री प्रज्ञसंज्ञा से हुआ..और माल्यवान का विवाह कनकपुर नगर की राज्य पुत्री कंकावली से माल्यवान का विवाह हुआ..राजा सुकेश पुत्रों को राज्य सौंप कर महा मुनि होकर सिद्ध पद को प्राप्त हुए..और संसार के झगडे-लड़ियों से मुक्त हुए..और अविनाशी,अकल रूप को प्राप्त हुए..इसलिए इस मोह नींद से जागना चाहिए..और आत्मा स्वरुप में लीं रहना चाहिए.
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बहुत बड़े टॉपिक को कम शब्दों में लिखा है..और कोई भाषा सम्बंधित गलती हो या कुछ सवाल जवाब अदि हो तोह पूछे

1 comment:

  1. bhagwan shri ram ko keval gyan kb hua tha ye batao?
    hanuman n kin muniraj se deeksha li thi ?

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