"ब्रम्हा"तीन लोक का निर्माता और उसके कारनामे (विपरीत मिथ्या) bhav sangrah dwara
जो तीन लोक निर्माता है वह "ब्रम्हा" स्वर्ग का राज्य पाने के लिये
जब वह घोर तपश्चरण कर रहा था तब इन्द्र को भी अपने राज्य की चिंता हुई और उसने उसका तपश्चरण भ्रष्ट करने के लिये तिलोत्तमा नाम की अप्सरा भेजी,वह तिलोत्तमा उस ब्रम्हा के सामने आकर नाच(डान्स) करने लगी ,जिसका मन कामसेवन आसक्त हो रहा और राग के रससे रसिक हो रहा है ऐसा वह ब्रम्हा उस नाच को देखता देखता अपने तपश्चरण से भ्रष्ट हो गया
ब्रम्हा को आसक्त देखकर वह तिलोत्तमा उसके बगल मे नाच करने लगी ,तब उस नाच को देखने के लिये बगल मे भी मुख बना लिया जब वह तिलोत्तमा पीठ पिछे नाच करने लगी,तब ब्रम्हाने उधर भी एक मुख बना लिया,जब वह दुसरे बगल मे नाच करने लगी तब उधर चौथा मुख बना लिया ,इस प्रकार ब्रम्हाने चार मुख बना लिये
परंतु जब वह तिलोत्तमा उपर आकाश मे नाच करने लगी तब ब्रम्हाने उपर एक मुख बना लिया
इस प्रकार उस ब्रम्हाने अपना प्रभुत्व, देवपना बडपन,तपश्चरण छोड दिया ,आसक्ति होकर जिस मार्ग से वह तिलोत्तमा चलने लगी उसी मार्ग से उसके पिछे पीछे चलने लगा
ब्रम्हा को इस कामाशक्ति को देखकर देवलोग हंसने लगे तब ब्रम्हा क्रोधीत होकर अपने गधे वाले मुख से उन देवो को भक्षण करने का उद्यम किया ,यह सब देखकर सब देव लोक महादेव की शरण मे गये तब महादेव ने अपने हाथ से ब्रम्हा का उपर का गधेका मस्तक काट डाला
तब वह ब्रम्हा उस तिलोत्तमा के विरह से संतप्त होकर पिछे लौट आया
एक निर्जन वनमे चला गया
यहा पर उसने रीछीनी देखी और उस रीछीनी को अपने मनमे तिलोत्तमा मानकर कामदेव के वशीभुत होकर उस रीछीनी के साथ संभोग करने लगा
ब्रम्हा के संभोग से रीछिनी से को पुत्र हुआ ,उसा का नाम जंबु था ,जो इस संसार मे प्रसिध्द है ,वह समस्त रिछो का अधिपती था और रामचंद्र का सेवक था
आचार्य कहते है कि देखो जो ब्रम्हा तीन लोक निर्माता है वह सुंदर तिलोत्तमा जैसी स्त्री नही बना सकता था
फिर घ्रुणीत राछीनी के साथ संभोग क्यु किया
जो तप भ्रष्ट,वासनायुक्त ,सभोग,देव को मारता है स्त्री पर मोहित होता है
अपने कुकर्म के कारण नीच हो जाता है
जो अपना उध्दार नही कर सकता वह निर्माता और भगवान कैसे हौ सकता
जो तीन लोक निर्माता है वह "ब्रम्हा" स्वर्ग का राज्य पाने के लिये
जब वह घोर तपश्चरण कर रहा था तब इन्द्र को भी अपने राज्य की चिंता हुई और उसने उसका तपश्चरण भ्रष्ट करने के लिये तिलोत्तमा नाम की अप्सरा भेजी,वह तिलोत्तमा उस ब्रम्हा के सामने आकर नाच(डान्स) करने लगी ,जिसका मन कामसेवन आसक्त हो रहा और राग के रससे रसिक हो रहा है ऐसा वह ब्रम्हा उस नाच को देखता देखता अपने तपश्चरण से भ्रष्ट हो गया
ब्रम्हा को आसक्त देखकर वह तिलोत्तमा उसके बगल मे नाच करने लगी ,तब उस नाच को देखने के लिये बगल मे भी मुख बना लिया जब वह तिलोत्तमा पीठ पिछे नाच करने लगी,तब ब्रम्हाने उधर भी एक मुख बना लिया,जब वह दुसरे बगल मे नाच करने लगी तब उधर चौथा मुख बना लिया ,इस प्रकार ब्रम्हाने चार मुख बना लिये
परंतु जब वह तिलोत्तमा उपर आकाश मे नाच करने लगी तब ब्रम्हाने उपर एक मुख बना लिया
इस प्रकार उस ब्रम्हाने अपना प्रभुत्व, देवपना बडपन,तपश्चरण छोड दिया ,आसक्ति होकर जिस मार्ग से वह तिलोत्तमा चलने लगी उसी मार्ग से उसके पिछे पीछे चलने लगा
ब्रम्हा को इस कामाशक्ति को देखकर देवलोग हंसने लगे तब ब्रम्हा क्रोधीत होकर अपने गधे वाले मुख से उन देवो को भक्षण करने का उद्यम किया ,यह सब देखकर सब देव लोक महादेव की शरण मे गये तब महादेव ने अपने हाथ से ब्रम्हा का उपर का गधेका मस्तक काट डाला
तब वह ब्रम्हा उस तिलोत्तमा के विरह से संतप्त होकर पिछे लौट आया
एक निर्जन वनमे चला गया
यहा पर उसने रीछीनी देखी और उस रीछीनी को अपने मनमे तिलोत्तमा मानकर कामदेव के वशीभुत होकर उस रीछीनी के साथ संभोग करने लगा
ब्रम्हा के संभोग से रीछिनी से को पुत्र हुआ ,उसा का नाम जंबु था ,जो इस संसार मे प्रसिध्द है ,वह समस्त रिछो का अधिपती था और रामचंद्र का सेवक था
आचार्य कहते है कि देखो जो ब्रम्हा तीन लोक निर्माता है वह सुंदर तिलोत्तमा जैसी स्त्री नही बना सकता था
फिर घ्रुणीत राछीनी के साथ संभोग क्यु किया
जो तप भ्रष्ट,वासनायुक्त ,सभोग,देव को मारता है स्त्री पर मोहित होता है
अपने कुकर्म के कारण नीच हो जाता है
जो अपना उध्दार नही कर सकता वह निर्माता और भगवान कैसे हौ सकता
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