राम लक्ष्मण की वन-गमन की कथाएँ....
बालिखिल्य की कथा
राम लक्ष्मण सीता के साथ नल कुंवर नगर के सरोवर के किनारे पहुँचते हैं,वहां कल्यान्माला नाम की राजकुमारी राजकुमार के भेष में हाथी पे बैठकर सरोवर की किनारे पहुँचती है तोह लक्ष्मण को देख मोहित हो जाती है,उनको सेनापति द्वारा बुलाती है..और हाथ पकड़ कर भोजन अदि के लिए ले जाती है,तब लक्ष्मण कहते हैं की मेरे गुरु,भ्राता और भावज अभी सरोवर के किनारे हैं,उनके भोजन करने के बाद ही मैं भोजन करूँगा,इसलिए उनको भी उनके पास बुला-लेते हैं...महल में सुबुद्धि मंत्री उनका स्वागत करते हैं...उनको तरह-तरह के मिष्ठान मोदक अदि परोसे जाते हैं...और उन्हें महल में ले जाकर सिंहासन में बैठकर अर्घ भी चढ़ाये जाते हैं,पुनः मंत्री सेवकों को आदेश देते हैं की इस कमरे में कोई भी न आये..जो आएगा उसको मार दिया जाएगा..ऐसा कहकर कमरे में कल्यान्माला राजकुमारी असली रूप में आ जाती है...उनको इस तरह से देखकर लक्ष्मण काम-असक्त हो जाते हैं.और नजरे घुमाते रहते हैं,राजकुमारी सीता के पास आ कर बैठती है..और अपना वृतांत कहती है:-मेरे पिता बालिखिल्य,सब जीवों पर दया करने वाला,जिन धर्म का सेवक उनके राज्य पे मलेच्छ राजा ने आक्रमण कर दिया...सब कुछ क्षीण कर ले गए...मेरा पिता सिन्होदर का सेवक उसने आगया दी की बालिखिल्य का पुत्र राज्य करेगा,लेकिन मैं पापिनी पुत्री हुई..लेकिन सुबुद्धि मंत्री ने मुझे राजकुमार कहकर राज्य दिया..और उत्सव मनाया..और राज्याभिषेक करवाया,मेरा पिता मलेच्छ रजा के कब्जे में है,जो भी सामिग्री राज्य में उत्पन्न होती है,मलेच्छ छीन ले जाते हैं...राम-लक्ष्मण उनकी मदद का उपाय करते हैं,रात्री में ही गुप्त रूप से निकल-जाते हैं..,,,रास्ते में अनेक-नगर पड़ते हैं उनको पार करते हुए मलेच्छ सैनिक दिखाई देते हैं तोह राम-लक्ष्मण को देख आक्रमण करते हैं...लक्ष्मण एक क्षण में ही सबको परस्त करते हैं,बहुत से तोह लक्ष्मण के धनुष को देखकर ही दर कर भाग जाते हैं...मलेच्छ राजा रौद्रभूत राम लक्ष्मण के चरणों में आ गिरता है...रौद्र-भूत कहता है की मैं एक अग्निहोत्री ब्रह्मण का पुत्र...दूत कला में प्रवीण,चोरी करना सीख गया,मुझे सूली पे चढ़ने की सजा मिली,तोह एक व्यक्ति ने बचा लिया...मैं शुभ कर्म के उदय से मलेच्छों का राजा हुआ...अब मैं आप जैसे महा-पुरुषों को देखकर झुका हूँ,मुझे क्षमा कीजिये...आप जो आगया देंगे वोह ही होगा,राम कहते हैं की तू बालिखिल्य को राज्य वापिस दे दो,और मंत्री बन जाओ...ऐसा ही होता है बालिखिल्या को राज्य दे दिया जाता है...राजा सिन्होदर भी आश्चर्य में पड़ जाते हैं...धर्म के प्रभाव से सब संभव है...कहने मात्र से ही सब संभव है......
लिखने का आधार-शास्त्र श्री पदम् पुराण
प्रमाद के कारण और अल्प बुद्धि के कारण की हुईं भूल को क्षमा करें....
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