राम लक्ष्मण की वन गमन की कथाएँ-कपिल ब्रह्मण की कथा
राम-लक्ष्मण आगे की तरफ वनों में जाते हैं,नंदन वन सामान अनेक वनों को देखते हुए...तोह बीच में सीता को प्यास-वेदना सताती है वह कहती हैं की जिस प्रकार अनंत भव से घबराया हुआ प्राणी सम्यक दर्शन चाहता है.उसी प्रकार प्यास से घबराई हुई मैं पानी चाहती हूँ...राम कहते हैं की थोडा धैर्य धरो आगे जाकर एक कुटिया है..उसमें पानी मिल जाएगा..उस कुटिया में एक कपिल ब्राह्मण निवास कर रहा होता है...जिसकी सफ़ेद दाढ़ी,कटु वचन बोलने वाला,सर पे चुटिया होती है...राम-लक्ष्मण को देखकर स्त्री पे क्रोधित होता है..और कहता है की इनको पानी क्यों दिया...यहाँ पे हम रहते हैं..तुने मुझसे पूछे बिना इन्हें कैसे बैठाया..इस बात को सुनकर राम-लक्ष्मण क्रोधित होते हैं और खड़े होते हैं..तोह अन्य लोग उन्हें रोकते हैं और कपिल ब्रह्मण से कहते हैं की यह महा-पुरुष लगते हैं...इनके साथ ऐसा व्यवहार मत करो...कुछ देर के लिए तुम्हारा क्या चला जाएगा..लेकिन वह राम-लक्ष्मण को जबरदस्ती निकाल देता है..तब लक्ष्मण उन्हेंpoojt उल्टा पटक देते हैं..लेकिन दयालु राम चन्द्र के कहने पर शांत होते हैं...वह आगे वन की और चलते हैं...वन में एक वृक्ष की कोटर में एक यक्ष निवास कर रहा होता है...तोह वह राम-लक्ष्मण को देखकर आश्चर्य में पड़ता है और स्वामी को बताता है...यक्ष अवधि ज्ञान से जान-जाता है की यह बलभद्र और नारायण हैं,शलाका पुरुष है..इसलिए उनके लिए एक अति सुन्दर नगरी वन में ही बसता है..जिसको राम-पूरी के नाम से जानते हैं...वहां बड़ा विशाल महल बनाया जाता है,अति सुन्दर सेवक-सुंदरी...एक बार कपिल ब्रह्मण वन में लकड़ी काटने आता है,तोह वहां इतनी बड़ी नगरी को देखा आश्चर्य चकित होता है और कहता है की मैं यहाँ इतने समय से यहाँ आ रहा हूँ..क्या मुझे चक्कर आ रहे हैं,सपना देख रहा हूँ..या और कुछ..वह नगरी के द्वार पे प्रवेश करता है यक्ष से पूछता है वह कहते हैं की यह श्री राम की नगरी है,यहाँ अनु-व्रती श्रावक सामायिक पूजा करते हैं,जिन मंदिर हैं..यहाँ ऐसे ही कोई नहीं आ सकता..इसलिए कपिल ब्रह्मण नगरी में प्रवेश के लोभ में मुनि के उपदेश सुनता है जिससे उसे अनु-व्रत के बारे में पता चले...लेकिन उसका जीवन पूरा बदल जाता है..जिन धर्म में अटूट श्रद्धा हो जाती है...वह कहता है मैं अज्ञानी व्यंतर,ज्योतिषों को पूजता था,,जिनमें धर्म नहीं था,किसी को दुःख देने में मैंने आनंद माना..कठोर वचन बोला,मिथ्या क्रियाएं करता..मैं कहाँ मोह में खोया था..यह मुनिसुव्रत नाथ भगवान का धर्मं धन्य है..अब मैं संसार से बचूंगा..अब उसमें नगरी में जाने का बड़ा आश्चर्य नहीं होता है...और वापिस कुटिया में जाता है...और स्त्री को पूरी कथा कहता है जिससे स्त्री में भी जिन धर्मं के प्रति अटूट श्रद्धा जम जाती है...और वह भी मुनि के पास जाकर श्राविका वन जाती है...एक बार उनकी इच्छा उस नगर में जाने की होती है...तोह वह महल के पास आते हैं तोह लक्ष्मण को देखते हैं और कहते हैं की मुझ अज्ञानी ने इनका अपमान किया..वह उनसे भाग रहे होते हैं...तोह लक्ष्मण के द्वारा कहने पर सैनिको द्वारा बुलवाए जाते हैं....वह उनसे क्षमा मांगते हैं...और व्रत धारण करने की कथा कहते हैं..जिससे राम लक्ष्मण उनका सम्मान करते हैं...धन-राशि खाने पीने का सामान देते हैं....कपिल ब्रह्मण कुटिया में आता है और सोचता है की इन्होने इतना सम्मान किया और मैंने इनको कुटिया से निकाल दिया था..धिक्कार है मुझको...और जिनेश्वरी दीक्षा ले लेते हैं..यह हुई कपिल मुनि की कथा...
लिखने का आधार-पदम् पुराण
अल्प बुद्धि और प्रमाद के कारण भूलों के लिए क्षमा और सुधार कर पढ़ें.
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