६ ढाला
दूसरी ढाला
कुदेवों का स्वरुप
जे राग द्वेष मल करि मलिन,वनिता गदादिजुत चिन्ह चीन
ते हैं कुदेव तिनकू जो सेव,शठ करत न तिन भाव भ्रमण छेव.
शब्दार्थ
१.मल-गंध्गी
२,मलिन-सने हुए,गंधे हो रखे हैं
३.वनिता-स्त्री
४.गदादिजुत-गदा,तलवार अदि अस्त्र शस्त्र
५.चिन्ह-लक्षण
६.चीन-पहचाने जाते हैं
७.कुदेव-खोटे,झूठे देव
८.तिन्कू-इन कुदेवों की
९.सेव-सेवा करना,पूजा करना,श्रद्धान करना,अनुमोदन करना,हाथ जोड़ना
१०.शठ - मूर्ख
११.तिन-उसके
१२.भाव-भ्रमण-संसार के भ्रमण
१३.छेव-अंत
१४.न-नहीं
भावार्थ
जो देवी-देवता मन में तोह राग-द्वेष रुपी मैल मलिन हैं,जैसे अपनी पूजा करवाते हैं,क्रोधित हो जाते हैं,मानी हैं,मायाचारी हैं,छली हैं,कपटी हैं,धन संपत्ति अदि अपने पास रखे हें हैं,वस्त्रों को धारण किये हुए,पूजने वाले से क्रोध नहीं जताते हैं,न पूजने वालों से क्रोध जताते हैं,हिंसा अदि कार्यों को करवाते हैं (चाहे त्रस हिंसा हो,स्थावर हिंसा हो या अन्य भाव हिंसा)अपने आप को ज्ञानी,इश्वर,परम-ब्रह्मा बताते हैं..अथार्थ राग द्वेष रुपी मैल से मलिन हैं,मुद्रा भी क्रोध की है...,अपने साथ स्त्री को रखते हैं,गदा,तलवार,धनुष-तीर,अदि अस्त्र-शस्त्रों के नाम से पहचाने जाते हैं,अतः आचार्यों ने इन कुदेवों के सेवा करने वाले को "शठ(मूर्ख)" की संज्ञा दी है....अतः इनसे बचो.इन कुदेवों की सेवा करने वाले का संसार भ्रमण का अंत नहीं है.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस -श्रीमती पुष्पा बैनाडा जी ( आधार लिखने का ६ ढाला क्लास्सेस हैं,इस में बहुत सारे विचार मेरे खुद के हैं)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
जानवार अदि वाहन होते हैं..और कई प्रकार के हिंसा से मलिन हैं...अब हम खुद सोचें इन देवी-देवताओं का स्वरुप अगर सच्चा होता,निर्भय होता तोह हाथ में अस्त्र-शास्त्र क्यों रखे हैं?,क्या किसी से दर लग रहा है,या डराना चाह रहे हैं,अस्त्र-शास्त्र तोह कमजोर ही रखता है,वस्त्र क्यों पहने हैं? क्या ठण्ड लग रही है,या गर्मी लग रही है? या मोह-माया में पड़े हैं,यानि की शरीर से असाक्ति खुद इतना रखते हैं,और भक्तों से कहते हैं मोह-माया छोड़ो ,इन कुदेवों पे अगर कोई शक्ति होती तोह अस्त्र-शास्त्र क्यों रखते,एक देव का नाम (जो नहीं बताना चाहता) जो अन्य मतों में हमने सुना होगा...शनि देव की सादे-साती आ गयी तोह ७.५ साल तक पेड़ के नीचे छिपे रहे,डर के मारे,और इस बात का वर्णन उन धर्मों के शास्त्रों में है,खुदने किसी को वरदान दे दिया,अब जिसने वरदान लिया खुद इनके पीछे पड़ गया,और यह डर-कर भागते रहे..हमें यह बात समझ नहीं आती,एक वीतरागी भगवान हैं,न अस्त्र है,न वस्त्र,न डर है,न मोह है,न काम है,न माया है..१८ प्रकार के दोषों से रहित हैं,कहाँ कुदेव हैं जिन्हें राक्षसों द्वारा बंधन में भी जकड लिया,स्त्री,पुत्र अदि मोह-माया में रहते हैं..और खुद को इश्वर बताते हैं......,दूसरी बात इनको पूजने से दर्शन-मोहनिया कर्म का वंध न हो,ऐसा हो नहीं सकता,तीसरी बात इन कुदेवों के दर्शन करते ही हिंसा-नंदी रौद्र ध्यान उत्तपन हो जाता है,जो नरक गति का कारण है,चौथी बात जो देव खुद-गृहस्थी,स्त्री बच्चों के मोह में पड़े हैं,तोह उनमें और हममे अंतर ही क्या रहा,छठी बात इन देवों के निमित्त से कितने त्रस जीवों की,स्थावर जीवों की हिंसा होती है..इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है,आलू-अदि अभक्ष्य पदार्थ स्वीकार करते हैं,ग्रहण करते हैं,करवाते हैं..निश्चित ही खुद भी नरक गति का वंध करते हैं और करवाते हैं,सातवी बात-यह कुदेव बहुत ज्यादा हिंसक प्रवर्ती के होते हैं,क्रोधी और राक्षसों का बध करते हैं,मारने के बाद खून पी जाते हैं,फिर सबको आशीर्वाद देंगे,अपने आप को नरक गति का बंध करते हैं..और पूजने वाले को भी इसमें आनंद मनवा कर नरक ही ले जाने में निमित्त बनते हैं..इन देवों को आत्मा-अनात्म का ज्ञान ही नहीं होता,और क्षमा अदि १० धर्म तोह दूर-दूर तक मौजूद नहीं होते हैं...कर्म सिद्धांत का ज्ञान ही नहीं होता..और तत्वों से अज्ञानी होते हैं,तत्वों के अजानकार होते हैं,यानी की बहिरात्मा भी होते हैं..और साथ की साथ नील-लेश्या धारण करते हैं...अतः ऊपर लिखित किसी एक लक्षण को धारण करने वाले कुदेव हैं,उनके पूजने वाले मूर्ख,अज्ञानी का संसार परिभ्रमण का अंत नहीं है..अनंत काल तक मिथ्यात्व का पोषण ही करता रहता है..सम्यक दृष्टी जीव तोह इन देवों की हाथ अदि जोड़ना तोह बहुत दूर की बात है,मन-वचन-काय त्रियोग से प्रशंसा भी नहीं करते है,क्योंकि ऐसा करने से भी उसके सम्यक्त्व में दोष लग जाता है...अतः आचार्यों ने इन कुदेवों के सेवा करने वाले को "शठ(मूर्ख)" की संज्ञा दी है....अतः इनसे बचो.
बल्ब होल्डर में अगर कर्रेंट नहीं होता है..तोह उसमें कितनी भी पॉवर का बल्ब लगा लो,चाहे वह १००० वाट का बल्ब क्यों नहीं आ जाए...वह प्रकाश मान नहीं हो सकता,किसी ने आँखे बंद कर ली है तोह उसमें...कितनी भी नो का चस्मा लगवा लिया जाए..वह नहीं देख सकेगा..इसी तरह जब तक पाप का उदय नहीं आएगा...संसार की बड़े-बड़े ताकतवर शक्तिशाली देवता भी आ जायें दुःख देनें वह कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते,और जब तक पुण्य का उदय नहीं आये ,संसार के बड़े बड़े शक्तिशाली देवता भी कुछ देनें आ जायें..तोह वह उस जीव को जरा सी भी पुण्य सामिग्री प्रदान नहीं करा सकते..
यानी की सारा खेल शुभ और अशुभ का है..शुभ किस्से बंधेगा,शुभ परिणामों से,शुभ परिणाम कैसे होते हैं,कषाय रहित,सबका भला चाहने वाले,इर्ष्या से रहित..क्या ईर्ष्यालु को देखकर इर्ष्या रहित परिणाम आयेंगे,क्या कषाय करने वाले को देखकर कषाय रहित परिणाम हो सकते हैं,क्या रागी को देखकर शुभ भाव आयेंगे..,क्या किसी जीव को दुःख देने वाले को देखकर शुभ परिणाम आयेंगे..नहीं आयेंगे...तोह कभी रागी-द्वेषी,क्रोधी,मानी,माया,लोभ करने वाले को देखकर इर्ष्या वाले को पूजकर के शुभ परिणाम आयेंगे,और बिना शुभ परिणामों के शुभ कर्म बंधेंगे...इसलिए सरागी देवों को पूजकर पुण्य नहीं बंधता है...न बंध सकता.
यानी की सारा खेल शुभ और अशुभ का है..शुभ किस्से बंधेगा,शुभ परिणामों से,शुभ परिणाम कैसे होते हैं,कषाय रहित,सबका भला चाहने वाले,इर्ष्या से रहित..क्या ईर्ष्यालु को देखकर इर्ष्या रहित परिणाम आयेंगे,क्या कषाय करने वाले को देखकर कषाय रहित परिणाम हो सकते हैं,क्या रागी को देखकर शुभ भाव आयेंगे..,क्या किसी जीव को दुःख देने वाले को देखकर शुभ परिणाम आयेंगे..नहीं आयेंगे...तोह कभी रागी-द्वेषी,क्रोधी,मानी,माया,लोभ करने वाले को देखकर इर्ष्या वाले को पूजकर के शुभ परिणाम आयेंगे,और बिना शुभ परिणामों के शुभ कर्म बंधेंगे...इसलिए सरागी देवों को पूजकर पुण्य नहीं बंधता है...न बंध सकता.
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