६ ढाला
दूसरी ढाल
कुधर्मों का स्वरुप
रागादिक भाव-हिंसा समेत,दर्वित,त्रस,थावर मरण खेत
ते क्रिया तिन्हे जानहु कुधर्म,सरधे तिन्हे जीव लहैं अशर्म
याकु गृहीत मिथ्यात्व जान,अब सुन गृहीत जो है अज्ञान.
शब्दार्थ
१.रागादिक-राग,द्वेष,इर्ष्या और मोह
२.दर्वित-द्रव्य हिंसा
३.त्रस-त्रस जीवों की हिंसा
४.थावर-स्थावर जीवों की हिंसा
५.मरण-मृत्यु,हिंसा
६.खेत-स्थान
७.तिन्हे-इन क्रियायों को
८.लहै-प्राप्त करता है
९.अशर्म-दुःख
१०.याकु-इन कुदेव,कुगुरू और कुधर्म की पूजा,सेवा,श्रद्धा,हाथ जोड़ना,पूजना
११.गृहीत-उपदेश से ग्रहण किया हुआ
१२.मिथ्यात्व-झूठ
१३.अज्ञान-गृहीत मिथ्याज्ञान
भावार्थ
जो धर्म रागादिक भाव-हिंसा से लिप्त हैं,यानी की मोह-माया को उत्तम बताया,राग-द्वेष को उत्तम बताया है..या ग्रहण करने योग्य बताया है और द्रव्य हिंसा,त्रस जीवों की हिंसा,स्थावर जीवों की हिंसा में धर्म बताया है,और इन क्रियाओं में पुण्यार्जन बताया है,उत्तम कहा,एकेंद्रिया हिंसा का निषेद नहीं बताया है..और त्रस हिंसा निरंतर बताई गयी है...तथा किसी को दुःख-देना,पीड़ा पहुचना,कष्ट पहुँचाने में धर्म बताया है,यानी की हिंसा में धर्म बताया है,जैसे लड़ाई अदि करना,झगड़ना,इर्ष्या करना...यह सब क्रियाएँ जितनी भी हैं यह सब कुधर्म हैं..मिथ्या धर्म है,खोटा धर्म है..अगर देखा जाए तोह जो धर्म पंचेंद्रिया हिंसा में धर्म बताते हैं...उन्हें तोह धर्म का दर्जा ही नहीं दिया जाना चाहिए..अथार्थ यह जितनी भी भाव हिंसा,द्रव्य हिंसा,थावर हिंसा से परिपूर्ण क्रियाएं है वेह सब कुधर्म है..और इन कुधर्मों पर विश्वास रखने वाला जीव,श्रद्धा रखने वाला जीव,हाथ जोड़ने वाला जीव सिर्फ दुःख को ही प्राप्त करता है..और अनंत काल तक दर्शन मोहनिया कर्म का ही बंध करता है..और तरह-तरह के जन्म-मरण के दुखों को भोगता है...इन कुदेवों,कुधर्म,और कुगुरू का श्रद्धान करना,सेवा करना,हाथ-जोड़ना अदि यह क्रियाएं हैं,यह गृहीत मिथ्यात्व है..और यह अत्यंत दुःख को प्राप्त करने वाली हैं..इसलिए इनसे बचो..अब गृहीत मिथ्याज्ञान का वर्णन करते हैं.(अगले श्लोक में).
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-पुष्पा बैनाडा जी
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमों सदा देत हूँ ढोक.
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