Monday, May 2, 2011

CHEHDHALA-MANGLACHARAN

पढने से पहले निवेदन - कृपया मुहं हाथ साफ़ करके शुद्ध वस्त्र पहनकर,सरल परिणाम रखकर ( कषाय अदि न रखते हुए) पढ़ें.जिनवाणी को जिनवाणी की तरह ही पढ़ें,ऐसे पढ़ें जैसे की आप शास्त्र पढ़ रहे हों,दोहे याद करने की कोशिश करें,कृपया अनुवाद से ज्यादा दोहे को शब्दों से समझें,शुद्धता का ध्यान रहे,ध्यान रखें कि हम को शादी,ब्याह,उलटे सीधे चुटकुले,कमेंट्स,शारीरिक सामिग्रियाँ तोह बहुत मिल जाती हैं,लेकिन आत्मा कल्याणक कि सामिग्री सिर्फ और सिर्फ सतिशाया पुण्य के उदय से ही मिल सकती है,इसीलिए विनय का ध्यान रखें.
६ ढाला

भूमिका
यह ग्रन्थ श्री दौलत राम जी के द्वारा लिखा हुआ है,हम इस ग्रन्थ को लघु समय सार कह सकते हैं,श्री दौलत राम जी एक गृहस्थ थे,उनके पास विलक्षण प्रतिभा थी,एक हाथ से वेह चित्र बनाते थे,और दुसरे हाथ से लिखा करते थे.यह ग्रन्थ किसी व्यक्ति विशेष की कहानी नहीं है,यह ग्रन्थ हमारी अपनी कहानी है,इस जीव की अपनी कहानी है,इसलिए इसको पढने वालें इससे बोझ समझ कर न पढ़े,मन में ऐसे भाव लायें जैसे की यह हमारी अपनी ही गाथा है,और किसी अन्य की कहानी नहीं है,इसमें जितनी भी दुःख भरी बातें बतायीं हैं,यह हमारा ही पुराना इतिहास है,इसलिए भावों की प्रधानता जरूरी है.

६ ढाला का अर्थ
जिस प्रकार कोई योद्धा शत्रु के बार से बचने के लिए ढाल का प्रयोग करता है,उसी प्रकार यह ६ ढाला,जीव को कर्म रुपी शत्रु से बचाती है,कषय रुपी शत्रुओं से बचाती है,एक ढाल की तरह काम करती है,इस ग्रन्थ के ६ खंड हैं,इसीलिए इस ग्रन्थ को ६ ढाला के रूप से जाना जाता है.

मंगलाचरण   

तीन भुवन में सार,वीतराग विज्ञानता
शिव स्वरुप,शिवकार,नमहू त्रियोग सम्हारिके. 

  शब्दार्थ
१.भुवन-लोक
२.सार-उत्तम वस्तु
३.वीतराग-विशेष,राग द्वेष से रहित,शाश्वत और सुख दाई
४.विज्ञान -केवल ज्ञान.
५.शिवस्वरूप -सच्चा आनंद देने वाला.
६.शिव कार -मोक्ष को प्राप्त करने वाला.
७.त्रियोग-मन योग,वचन  योग और काय योग.
८.सम्हारिके-तीनो योगों की एकाग्रता से.( मन गुप्ती,वचन गुप्ती और काय गुप्ती).

भावार्थ
तीनो लोकों में ( उर्ध्व लोक,मध्य लोक और अधो लोक) में अगर कोई उत्तम वस्तु है,सबसे अच्छी वस्तु है तोह वह वीतराग विज्ञान है,विशेष विज्ञानं है,केवल ज्ञान है.विज्ञान तो एक लौकिक भी है,लेकिन वेह इन्द्रियों से आनंद देने वाला है,यह लौकिक विज्ञान तोह तत्वार्थ सूत्र नामक ग्रन्थ के चैप्टर ५ "पुद्गल" में ही समाहित है,लेकिन जो वीतराग विज्ञान है,वीतराग विज्ञानं यानि की राग और द्वेष से दूर.यह वीतराग विज्ञानं ही सच्चे सुख  को (शिव कार) यानि की मोक्ष की प्राप्ति करने वाला है,और शिव स्वरुप है,यानि की सच्चे आनंद को देने वाला है,ऐसे वीतराग विज्ञान को मैं मन,वचन और काय के योग की एकाग्रता से प्रणाम करता हूँ,मन वचन और काय योग का अर्थ है जैसा मन में चल रहा है,वैसा ही वचन में,और वैसा ही तन में,किसी भी प्रकार का किसी के भी प्रति  राग-द्वेष अदि भाव नहीं है.हम इन पंक्तियों को दुसरे अर्थ में ऐसे भी समझ सकते हैं की जब तक हमारे अन्दर मन वचन काय का योग नहीं आएगा,जब तक हम जीव वीतराग विज्ञान को नहीं जान सकते हैं.

लिखने का आधार-जो कुछ भी मैंने ६ ढाला क्लास्सेस में सुना है,वेह मैंने पोस्ट किया है.

जा वाणी के ज्ञान से,सूझे लोकालोक
जा वाणी मस्तक नमो सदा देत ही धोक.


No comments:

Post a Comment