६ ढाला
तीसरी ढाल
सम्यक दर्शन के २५ दोष और अष्ट गुण
वसुमद टारि निवारी त्रिशठता षट अनायतन त्यागो
शंकादिक वसु दोष बिन,संवेगादिक चित पागो
अष्ट अंग अरु दोष पच्चीसों,तिन संक्षेपहूँ कहिये
बिन जानतें दोष गुणन को,कैसे तजिए गहिये.
शब्दार्थ
१.वसु-आठ
२.मद-अभिमान,घमंड
३.टारि-छोड़ो
४.निवारी-त्याग करो
५.त्रिशठता-तीन मूढ़ता
६.षट-छह
७.अनायतन-जहाँ धर्म नहीं है
८.संवेगादिकसंवेग,प्रशं,अनुकम्पा और आस्तिक्य
९.अरु-और
१०.तिन-इनको
११.कहिये-कह रहे हैं
१२.बिन जानतें-बिना जाने
१३.तजिए-त्याग करे
१४.गहिये-ग्रहण करे
भावार्थ
आकुलता रहित मोक्ष सुख को प्राप्त करने के लिए,सम्यक धारण करना चाहिए...और सम्यक दर्शन को धारण करने के लिए..२५ दोषों का त्याग,और आठ गुणों को ग्रहण करना चाहिए..२५ दोष यह हैं..आठ प्रकार के मद,तीन प्रकार की मूढ़ता,६ प्रकार के अनायतन,शंका अदि आठ दोष..यह कुल मिलकर पच्चीस हैं...इन सबका त्याग करना चाहिए....और संवेग ( संसार से भीरुता),प्रशम(कषायों की मंदता),अनुकम्पा(सारे दुखी जीवों के प्रति दया),आस्तिक्य(स्वर्ग,नरक,आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करना)..इन सब गुणों को प्राप्त करना चाहिए.इन अष्ट अंग और पच्चीस दोहे कर वर्णन संक्षेप में कर रहे हैं..क्योंकि जब तक गुण-अवगुण के बारे में जानेंगे नहीं तब तक उनको ग्रहण करने की और त्यागने की कोई कैसे सोच सकता है.
रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय (६ ढाला,संपादक श्री रतन लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नामों सदा देत हूँ ढोक
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