६ ढाला
तीसरी ढाल
दर्शन के बिना ज्ञान चरित्र का मिथ्यापना..और कवि का संबोधन.
मोक्ष महल की परथम सीढ़ी या बिन ज्ञान चरित्रा
सम्यकता न लहैं सो दर्शन धरो भव्य पवित्रा
दौल समझ सुन चेत सयाने,काल वृथा मत खोवै
यह नर भव फिर मिलन कठिन है जो सम्यक नहीं होवै.
शब्दार्थ
१.परथम-प्रथम,पहली
२.सीढ़ी-पहला कदम
३.या-इसके बिना
४.ज्ञान,चरित्रा-सम्यक ज्ञान और सम्यक ज्ञान.
५.सो-इसलिए
६.दर्शन-सम्यक दर्शन
७.भव्य-मोक्ष के इच्छुक
८.पवित्रा-पवित्रा दर्शन को
९.समझ-जान ले
१०.सुन-सुन ले
११.चेत-जग जा,बेहोसी से हाथ जा
१२.सयाने-बुद्धिमान
१३.वृथा-व्यर्थ में
१४.खोवै-बर्बाद मत कर
१६.नर भव-यह मनुष्य पर्याय
१७.सम्यक-सम्यक दर्शन
भावार्थ
सम्यक दर्शन मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी है...पहला कदम है..यानी की आकुलता रहित अवस्था को प्राप्त करने के लिए जो पहला पुरुषार्थ है..वह सम्यक दर्शन ही है..और इस सम्यक दर्शन के बिना ज्ञान और चरित्रा में सच्चा पण नहीं रहता है..या सच्चाई नहीं रहती है..इसलिए सबमें पहले से पहला..सबमें बड़ा सा बड़ा..और सबमें बड़ी सी बड़ी उपलब्धि इस पवित्र सम्यक दर्शन के अलावा और कोई चीज नहीं है..इसलिए इस पवित्र सम्यक दर्शन को हमें धारण करना चाहिए...अब कवि अपने आप से कहते हैं की "हे दौलत राम अब तू समझ जा...सुन ले..और जाग जा,मोह,नींद से जाग जा और इस अनुपम काल को व्यर्थ में मत खो...क्योंकि अगर एक बार यह दुर्लभ अवसर चला गया...तोह यह नर भव फिर से मिलना बहुत कठिन है.
हमें भी इस सम्यक दर्शन को धारण करना चाहिए..क्योंकि एक तरफ तीनों लोकों का राज हो..और दूसरी तरफ सम्यक दर्शन तोह इस सम्यक दर्शन के आगे तीनो लोक का राज भी छोटा पद जाता है..क्योंकि यह राज,सम्पदा आयु पूरी होने के साथ ही गायब हो जाती है,अपनी नहीं रहती है..लेकिन सम्यक दर्शन अतुल्य,निराकुल..अनंत सुख प्राप्त करता है.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय (६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
तीसरी ढाल पूरी हुई.
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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