मै अनंत काल से मदिरा पिये हे जिसके कारण हमे अपनी आत्मा का भला सोंचने की शक्ति ही नही है,जब यह सद्गुरू के मार्गदर्शन मै यह उतरना चालु होगी तब मै समझ पावुंगा मै अज्ञान या मिथ्या मे समझता हू कि बलि देने से देव आब प्रसन्न होंगे.और जिसकी बलि दी जावेगी वह सीधा देव की शरण मे जाकर मुक्त हो जावेगा लेकिन मे भी तो मुक्ति चाहता हू फिर मे अपनी आत्म बलि क्यो नही देता?बस यही प्रश्न झकझोर देता है लेकिन मोह के कारण एसा नही कर पाता.तब या तो वह नशा बना रहता या उतर जाता.जब उतर जाता तो अन्य नशे भी परेशान करते है.अब कुदेव कुगुरू पीछा नही छोडते.वे लक्ष्मी सरस्वती भेरूजी अन्य देवो की पूजा का बोलते है यह भी अच्छा है इन देवो को कुछ धन खर्च कर अपार धन क्यो ना लेलू.यह लालसा ही रहती.बस होता यही है कि मेरा पैसा इनके पास जाता जाता है और कब कंगाल हो जाता हू पता ही नही चलता तब उन्ही गुरू से बिना धन के पूजा अर्चना के लिये कहता हू तो जिन हीन नज़रो से देखा जाता कि यह नशा भी उतर जाता.नही उतरता तो उनकी गुलामी करता उनकी चिलम भरता रहता हू.यदि उतर गया तो फिर जैन धर्म के रक्षक देवो का नम्बर आता.जिनेंद्र देव को तो मानता पर उनके सेवक या गुलामो को अधिक मानता और हिम्मत नही होती कि उनसे कुछ कहू मन मे तो चोर बैठा है.चपरासी से निवेदन करता की मेरा काम कर दे जब कि काम तो अधिकारी को करना तो चपरासी की चापलुसी करता.शायद वह रिकमण्ड कर दे.हिम्मत नही कि साहब से कुछ बोल सकू.मन मे चोर जो बैठा है. किसी तरह सहब से निवेदन करता तो वे कहत कि अभी क़्वालिफिकेशन नही हुई काम नही होगा.तब निराश हो जाता.अपनी कमियो को दूर करने के बजाय कमियो सहित जोड तोड से काम करवाना चाहता.रिश्वत देता लेकिन काम नही बनता.तब यह नशा भी उतर जाता.और सद्गुरू विराजमान सकल परमेष्टी की शरण मे जाता.डगमगाता हुआ आगे बदता.वे श्राव्क धर्म का पालन करवाते कडवी दवाई पिलाते हमेशा तो मीठी दवाई पी हिम्मत नही पडती मज़बूर होकर वह भी पी लेता हू धिरे धिरे कडवी दवाई पीनेकी आदत हो जाती.इस दवाई से पता चलता हे नशा बहुत कुछ उतर जाता पूरा नही.जब खबर मिलती कि भाई या बहन माता पिता बिमार हे तो बैचैन हो जाता.यही तो परीक्षा है मोह कम करने की.तब सद गुरू सलाह देते कि ये माता पिता तो इस जन्म के है पिछले जन्मो के कितने माता पिताओ को रूलाया है.उनके आंसु भी पोछे है क्या.कुछ नशा कम होता है.वे ही मोह मिथ्यात्व को कम करते.तपाना जारी है.नशा टूट रहा है.विशुध्दि हो गयी तो सम्यक दर्शन हो जाता.लेकिन सफर यही खत्म नही होता तपाना जारी है सम्यक ज्ञान देते.चारित्र का पालन करवाते.जब पूरी तरह से चारित्र का पालन करता हू योग्यता को देख दिक्षा देते .धिरे धिरे योग्यता देख ध्यान करवाते.अनेक बार असफल होता तो थोडी देर के लिये ध्यान लग जाता.इसका अभ्यास होने पर यह बहुत अच्छा लगता तो फिर इसमे लगन लग जाती.अच्छी प्रेक्टिस होने पर जम रम जाता हू तो धिरे सेमुझे आत्मा गुरू के पास छोड देते कि यह आपका शिष्य हे इसे सम्भालो अब आगे की मोक्ष यात्रा करवाओ.यहा मोह मदिरा को छोड बाकी मदिरा के नशे का पूरा लोप हो जाता.अब स्वाअत्मा गुरू सम्भाल लेते.और आगे की यातरा करवाते.अब मुझे समझ मे आता हू कि कितनी खराब मदिराये मे पीये हुए था
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