Friday, June 1, 2012

6 dhaala-paanchvi dhaal-aashrav bhaavna ka lakshan

६ ढाला

पांचवी ढाल

आश्रव भावना का लक्षण

जो योगं की चपलाई,ताते है आश्रव भाई

आश्रव दुखकार घनेरे,बुधिजन तिन्हे निरवेरे


शब्दार्थ

१.योग-मन वचन और काय का योग

२.चपलाई-चंचलता

३.ताते-इससे

४.आश्रव-कर्मों का आना

५.भाई-हे भव्य जीव

६.घनेरे-बहुत ज्यादा दुखदायी है

७.बुधिजन-ज्ञानी लोग,समझदार log

८.तिन्हे-आश्रव को

९.निरवेरे -दूर रहते हैं,त्याग करते हैं

भावार्थ


७.आश्रव भावना
मन-वचन और काय के निमित्त से आत्मा mein हलन-चलन-कम्पन रूप चंचलता को आश्रव कहते हैं..आश्रव से कर्म आते हैं..यह आश्रव बहुत दुःख दाई है..क्योंकि इसकी वजह से आत्मा के प्रदेश कर्मों से बंधते हैं..जिससे आत्मा का अनंत सुख वाला स्वाभाव ढक जाता है,ज्ञान दर्शन स्वाभाव ढक जाता है..इसलिए बुद्धिमान पुरुष इस आश्रव से दूर रहने के प्रयत्न में लगे रहते हैं..इससे मुक्त होने की चाह रखते हैं..मिथ्यादर्शन,अविरत और कषाय और प्रमाद के साथ आत्मा में परवर्ती नहीं करते हैं..और कम करते हैं.ऐसा चिंतन करना आश्रव भावना है.


रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)


जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.


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