६ ढाला
दूसरी ढाल
गृहीत मिथ्यादर्शन और कुगुरू का स्वरुप
जो कुगुरू,कुदेव,कुधर्म सेव पोषे चिर दर्शन-मोह एव,
अंतर रागादिक धरैं जेह,बहार धन अम्बर ते सनेह
धारे कुलिंग लही महत भाव ते कुगुरू जन्म-जल उपल नाव.
SHABDARTH
१.कुगुरू-खोटे गुरु
२.कुदेव-खोटे देवी-देवता
३.कुधर्मं-खोता धर्म,झूठा धर्म
४.पोषे-पुष्ट करता है,मजबूत या बलवान करता है
५.चिर-काफी लम्बे समय तक
६.दर्शन-मोह - दर्शन मोहनिया कर्म
७.एव-और
८.अंतर-अन्दर,मन में
९.धरैं-धारण करते हैं
१०.सनेह-प्रेम आसक्ति
११.कुलिंग-खोटा या झूठा वेष
१२.लही-रख्रे हैं
13.महत्-महंत पाना,साधू पाना,बड़प्पन
१४.उपल-पत्थर
भावार्थ
जो कुगुरू,कुदेव और कुधर्मं की सेवा करता है,चाहे धन के लिए,चाहे तन के लिए,चाहे स्त्री के लिए,चाहे किसी के कहने पर,चाहे अज्ञान वश...वह मनुष्य अपना नुक्सान खुद ही करता है..और अनंत काल तक दर्शन मोहिनीय कर्म की परत को अपनी आत्मा में और मजबूत करता है..और तरह तरह के दुखों को सहन करता है...यह कुगुरू,कु-देव और कुधर्म का सेवन बहुत दुःख दाई है..इनको पूजने से धन-संपत्ति अदि कुछ नहीं मिलती है..बस दर्शन मोहनिया कर्म की चादर आत्मा में मजबूत होने कें कारण,जो अन्य शुभ कर्म हैं..वह उसी समय अपना बहुत कम असर देकर निकल जाते हैं..और साथ की साथ अशुभ कर्मों का बंध होता है..लेकिन हम अज्ञानी जीव सोचते हैं की इन देवी-देवताओं ने,गुरु जी ने हमको बहुत कुछ दे दिया..लेकिन सच तोह यह है कि जिन शुभ कर्मों का फल यह जीव काफी अच्छी तरह से भोगता..उन शुभ कर्मों को अशुभ कर्मों कि बहुत होने या बहुमत बनने के कारण बहुत कम भोगता है..यानि कि इन कुदेव-धर्म-कुगुरू का श्रद्धान इस जीव को अनंत दुःख दाई है..इन का सेवन करना गृहीत मिथ्यादर्शन है.जो गुरु अन्दर मन में तोह राग और द्वेष के भाव रखते हैं,यानी कि किसी को आशीर्वाद तोह दुसरे को श्रांप दे रहे हैं...जो हाथ नहीं जोड़ रहा उससे गुस्सा हो रहे हैं,श्रांप दे रहे हैं...संसार के घात-प्रतिघात में लीं हैं..कुदेवों को पूजते हैं...वाहर वस्त्र पहने हुए हैं..और धन अदि से आसक्ति करते हैं...खोटे-खोटे वेशों को धारण करते हैं,जैसे माथे पे चन्दन लगा लिया,और अन्य खोटे-खोटे भावों को धारण करते हैं..अपना बड़प्पन दिखातें हैं..जैसे "जो मुझे पूजेगा वह सुखी रहेगा,अन्य दुखी रहेगा" ऐसे अपनी प्रशंसा खुद करते हैं......ऐसा श्रद्धान करने वाले कुगुरू हैं...और यह संसार रुपी सागर में पत्थर कि नाव के सामान हैं जो खुद तोह डूबती ही है,और अपने आश्रितों को भी डुबाती है..अतः इनसे बचना चाहिए.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-श्रीमती पुष्प बैनाडा जी
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-श्रीमती पुष्प बैनाडा जी
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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