Thursday, May 5, 2011

6 dhala-pehli dhaala-tras paryay ki durlabhta aur tras paryay ke dukh

६ ढाला

पहली ढाला

त्रस पर्याय की दुर्लभता और दुःख

दुर्लभ लहें जो चिंता मणि,त्यों पर्याय लहें त्रस त्रणी,
लट,पिपील,अलि अदि शरीरा,धर धर मरयो सही बहुपीरा.

शब्दार्थ

१.दुर्लभ-बड़ी मुश्किल से मिलने वाली चीज
२.लहें-लगे
३.चिंता मणि-एक अमूल्य मणि,बड़ी दुर्लभता से मिले
४.त्यों-वैसा
५.त्रस - दो,तीन और चार इन्द्रिय जीव.
६.पिपील-चीटीं
७.अलि-भौरां
८.धर-धर-बार बार
९.पीरा-दर्द
१०.बहु-बहुत

भावार्थ

जब यह जीव(हम) स्थावर योनी को पूरी करके,त्रस योनी में आता है,तोह उसे यह त्रस योनी भी चिंतामणि रत्न के समान अमूल्य लगती है,अतुल्य लगती है,क्योंकि त्रस योनी में निगोद और स्थावर की तुलना में तोह कम ही दुःख होता है,चिंतामणि रत्न जिस प्रकार बड़ी दुर्लभता से मिलता है,उसी प्रकार यह जीव त्रस योनी में भी बड़ी मुश्किल से पहुँचता है,यह जीव त्रस योनी में लट (दो इन्द्रिय-स्पर्शन और रसना),चीटीं(पिपील)(तीन इन्द्रिय) और भौरां(अलि)(४ इन्द्रिय) बनता है,और तरह तरह के दुखों को सहन करता है,हम इनके दुखों का अंदाजा अपने आस पास के वातावरण से लगा सकते हैं,यह मक्खी-मच्छर(४ इन्द्रिय)बेचारे कितने दुःख सहन करते हैं,हम लोग अपने स्वार्थ में इतने लीन हो जाते हैं की इन जीवों पे दया ही नहीं करते,यह पर्याय भी इस जीव (हम) को बड़ी दुर्लभता से मिलती है,और चीटीं अदि जीव भी भावी सिद्धात्माएं हैं,अभी मोक्ष नहीं पहुंचें तोह क्या हुआ,कभी तोह मोक्ष जायेंगे,वैसे भी हर जीव सुख चाहता है,तोह हम इन्हें दुखी क्यों रखें,त्रस योनी में यह जीव बार-बार मरता है बार-बार पैदा होता है ( धर-धर मरयो) और बहुत पीड़ा को सहन  करता है(सही बहुपीर),मृत्यु और जनम की पीड़ा सबसे ज्यादा होती है,और इस पीड़ा को हमने भी कभी त्रस योनियों में सहन किया है..लेकिन हम इस बात को भूल रहे हैं क्योंकि हमने मोहरूपी महा मदिरा जो पीलि है.

रचयिता-पंडित दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस.

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ धोक.



No comments:

Post a Comment