६ ढाला
तीसरी ढाल
सच्चा सुख और द्विध मोक्ष मार्ग
आतम को हित है सुख,सो सुख आकुलता बिन कहिये
आकुलता शिवमाही न तातैं सो शिवमग लाग्यो चहिये
सम्यक दर्शन ज्ञान चरन शिवमग सो दुविध विचारो
जो सत्यारथ रूप सो निश्चय कारण सो व्यवहारो
शब्दार्थ
१.हित-भला
२.कहिये-कहना चहिये
३.सो-उस सुख को
४.शिव माहि-मोक्ष मार्ग
५.तातैं-इसलिए
६.लाग्यो-लगन होनी चहिये
७.शिवमग-मोक्ष मार्ग
८.दुविध-दो प्रकार से
९.विचारो-बताया गया है
१०.सत्यार्थ-वास्तविक रूप
११.निश्चय-निश्चय मोक्ष मार्ग
१२.व्यवहारो-व्यवहार मोक्ष मार्ग
भावार्थ
हम जीव हैं,आत्मा हैं...हम संसार में सुख चाहते हैं...हमारा भला सुख में ही है...और वह सुख आकुलता (चिंता,मोह,माया,राग,द्वेष) से रहित है..अथार्थ यही सच्चा सुख है..यह शास्वत सुख है...जिसके बाद कभी दुःख नहीं आता है...इन्द्रिय जन्य सुख तोह दुःख के सामान है..परन्तु आकुलता से रहित सुख ही असली या सच्चा सुख है...और यह सच्चे सुख की यानि की आकुलता से रहित अवस्था सिर्फ मोक्ष में ही है..अन्यथा कहीं नहीं हैं..इसलिए अगर यह जीव सुख चाहता है..तोह इस जीव को मोक्ष मार्ग पर चलना चाहिये और चलने की पूरी लगन होनी चाहिये...सम्यक दर्शन,सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र की एकता ही मोक्ष मार्ग है...जो दो प्रकार से बताई गयी है..पहली निश्चय मोक्ष मार्ग है-जो वास्तविक और सच्चा मोक्ष मार्ग है...और दूसरा व्यवहार मोक्ष मार्ग है..जो निश्चय मोक्ष मार्ग के लिए कारण है,सारभूत है..अत निश्चय मोक्ष मार्ग व्यवहार मोक्ष मार्ग के बिना नहीं मिल सकता है.
रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने का आधार-मेरा खुद का स्वाध्याय
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक
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