दीपक को देखें, एक ओर ज्योति जल रही है, दूसरी ओर धुआं निकल रहा है
ऐसा क्यों ?
जो जैसा खाता है वैसा ही निस्सरण होता है
प्रकाश अन्धकार को खाता है तो धुआं ही निकलेगा, अन्धकार ही निकलेगा
वैसे ही भोजन का हमारे शरीर और भावनाओं के साथ गहरा सम्बन्ध है
खाते समय यह न सोचे कि पेट की आग को बुझाना है
हजारों वर्ष पहले भी अध्यात्म के आचार्यों ने और मनीषियों ने भोजन के बारे में बहुत अनुसन्धान किये
ब्रह्मचर्य के साथ भोजन का सम्बन्ध
इन्द्रिय संयम के साथ भोजन का सम्बन्ध
विद्या और मेधा के साथ भोजन का सम्बन्ध
भोजन का शारीरिक, मानसिक, बौध्दिक और भावनात्मक स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध है
दुसरे शब्दों में इन सबका विकास भी भोजन से जुड़ा हुआ है
भोजन में कैलोरी कितनी, क्या क्या खाना चाहिए, मात्र कितनी होनी चाहिए ?
प्राचीन शब्द है परिमित भोजन, आज का शब्द है संतुलित भोजन
एक व्यक्ति के पूर्ण भोजन की मात्रा बताई गयी है ३२ कवल
३२ कवल से जितना कम खाया जाए वो ऊनोदरी है
चिकनाई का सन्दर्भ लें
संतुलित भोजन के हिसाब से १५० ग्राम चिकनाई की जरूरत है
एक दिन में एक स्वस्थ व्यक्ति को इससे ज्यादा चिकनाई नहीं खानी चाहिए
चाहे वो चिकनाई चुपड़े हुए फुलके में आये, साग में आये, दूध, दही या घी में आये
एक धार्मिक व्यक्ति को स्वास्थ्य के साथ-साथ संयम का प्रश्न भी मुख्य होता है
वो स्वाध्याय, ध्यान, चिंतन, मनन आदि करता है
शक्ति कम से कम कैसे व्यय हो ? आहार उनकी साधना में कहीं बाधक तो नहीं बनता
आहार का मतलब है बाहर से लेना, विवेक से लें
जो मन को निर्मल बनाना चाहता है वो यह जाने, कब-कब खाना है,कितना खाना है और क्या-क्या खाना है
न जाने कितने लोग शाकाहार को छोड़कर अंडे और मांसाहार में चले जाते हैं.
यह वृत्तियों पर भी असर डालते हैं शराब, तम्बाखू और जर्दा - यह सब भी स्वाभाव पर असर डालते हैं
इतना ही नहीं शारीरिक बीमारियाँ भी इनके प्रभाव से बढ़ रही है
शराब और तम्बाखू - इन दोनों का बहुधा कैंसर में योगदान होता है और भी कारण हो सकते हैं
जैसे जैसे जागरूकता बढ़ रही है, अनेक सरकारों ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबन्ध भी लगाए हैं
भोजन में चीनी का प्रयोग कम खतरनाक नहीं है
चीनी को मीठा ज़हर भी कहा जाता हैं
यह धीरे-धीरे मारती है, मीठे ढंग से मारती है
चाय पीने का मतलब है, चीनी का घोल ही पी जाना
सफ़ेद चीनी बिलकुल ही न खाएं, संभव न हो तो कम से कम खाएं
इस से स्वास्थ्य की सुरक्षा को बल मिलता है
दूसरी समस्या है नमक की ,
गुर्दे की बीमारी का प्रमुख कारण है नमक
यदि व्यक्ति एक कचौड़ी खाए तो कितना नमक उसके शरीर में जाएगा
जो व्यक्ति कचौड़ी, पकौड़ी और भुजिया खाता है फिर साग और दाल भी खाता है तो कितना नमक खाता होगा
स्वास्थय की दृष्टि से २ ग्राम नमक सही होता है
लोग गेहूं या बाजरे की रोटी में भी नमक डाल देते हैं
अपने स्वास्थ्य का खुद ही ध्यान रखना है तो चीनी और नमक के प्रयोग को कम करें
व्यक्ति को चाहिए कि भोजन और शरीर को लेकर प्रयोग भी करें और देखे कि क्या फर्क पड़ता है
उपवास, आयम्बिल, ऊनोदरी आदि प्रयोग करे
एक तरीका होता है २० ग्राम चावल, वह भी कच्चा चावल और कोरा पानी
दूसरा तरीका होता है, अधपका चावल १०० ग्राम और पानी
इस प्रयोग से अनेक लोगों ने भानकर बीमारियों को मिटाया है
लुधियाना में डाक्टर गोयल ने आयम्बिल का प्रयोग किया वे सुगर की बीमारी से पीड़ित थे
डाक्टर कहते हैं सुगर की बीमारी में चावल नहीं खाना चाहिए
डाक्टर गोयल ने दस दिन तक केवल चावल खाकर आयम्बिल किया
नतीजा - सुगर की बीमारी मिट गयी
आयम्बिल का प्रयोग,उपवास का प्रयोग, ऊनोदरी का प्रयोग ये शरीर के साथ साथ मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है
आहार और मौन
आहार करते समय मौन रहें, न हंसना चाहिए न बोलना चाहिए
क्योंकि आहार करना भी एक खतरनाक काम है
शरीर की विचित्र व्यवस्था है - आहार नली और श्वास नली - दोनों का ढक्कन एक है
जब हम खाते है,तब श्वास नली पर ढक्कन आ जाता है
जब नहीं खाते तब तब खुल जाता है
खाते हुए बातचीत करें, हंसे, उस समय अन्न का एक भी कण श्वास नली में चला जाए तो व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है
भारत का एक सेनापति जापान गया हुआ था भोजन के बातचीत करते हुए कुछ ऐसा ही हुआ और उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी
आहार और भावक्रिया
खाते समय केवल यही ध्यान रहे - मैं खा रहा हूं
तन्मना भुन्जीत - खाते समय आहार में ही मन रहे और किसी में मन न रहे
खाते समय दुकान, ऑफिस, कोई झगडा याद आये तो केवल खाना नहीं है
केवल खाना एक साधना है, इसका अर्थ है कोरा खाना और कुछ नहीं करना
न सोचना, न विचार, न कल्पना, न कोई योजना बनानी है
खाने की विधि
खाने की विधि है चबा-चबा कर खाना
यदि व्यक्ति खाते समय नहीं चबाये तो दांत का काम
बेचारी आंतों को करना पड़ता है
दांत का काम है पिसाई करना
यदि दान नहीं करें तो आंतों को करना पड़ता है
बिना चबाये खाना आंतों को बिगाड़ने का बड़ा अच्छा तरीका है
भोजन क्यों ?
१. शक्ति की वृध्धि
हम जो आहार करते है वह शक्ति की वृध्धि करने वाला है या नहीं ?
२. क्षति की पूर्ति
जो शक्ति क्षीण हुई है, उसकी पूर्ति हो
दिमाग को काम करना है,शरीर के अवयवों को काम करना है
३.विजातीय का निर्गम
व्यक्ति भोजन करता है और विजातीय मल संचित हो रहा है
खाने के साथ-साथ मलों का जमाव शुरू हो जाता है
मलों का उचित निस्सरण नहीं होगा तो धमनियां अकड़ेगी, लचीलापन कम होगा,
चेहरे पर झुर्रियां पड़ेगी, काम करने की शक्ति कम होने लगेगी
भोजन करते समय व्यक्ति सोचता नहीं है कि आज पेट साफ़ नहीं है तो भोजन नहीं करना है
कुछ लोगों कि भ्रांत धारणा है कि ज्यादा खायेंगे तो कब्ज़ नहीं होगी
जो खाया जाता है उसे पचाया जाय तो आंतें उसे निकाल देती है
अगर नहीं निकाल पाए तो कब्ज़ हो जाती है.
मलों का निर्गमन
हम मलों के निर्गमन पर ध्यान दें
पुरे शरीर से मलों की निर्गमन की प्रक्रिया है
पसीने से, गुर्दे से, मुंह से, नाक से आदि
इनसे भी जो सूक्ष्म मल होता है वोह धमनियों पर चिपक जाता है
मल के जमाव से एसिड जमा होता चला जाता है,
केल्सियम जमा होता चला जाता है
चूना जमें नहीं, धमनियां कठोर न बने, रक्त-संचार के पथ में बाधा न आये
इन सबके लिए मलों के निस्सारण पर ध्यान देना जरूरी है
जितना मलों का जमाव, उतने ही रोग
आरोग्य का मतलब विजातीय तत्वों का जमाव न होना
भोजन से लघुता : प्रसन्नता
स्वयं कसौटी करें कि भोजन के बाद शरीर में हल्कापन रहता है या भारीपन
भारीपन है तो संतुलित भोजन नहीं हुआ
शरीर टूटता रहता है, आलस्य सताता रहता है, सिर भारी रहता है
किसी काम में मन नहीं लगता
आहार मोहवश किया गया है
भोजन के प्रसन्नता है, चेतना में निर्मलता जागती है, भावों की शुद्धि रहती है
तो माने कि स्वस्थ भोजन किया है
ऐसा क्यों ?
जो जैसा खाता है वैसा ही निस्सरण होता है
प्रकाश अन्धकार को खाता है तो धुआं ही निकलेगा, अन्धकार ही निकलेगा
वैसे ही भोजन का हमारे शरीर और भावनाओं के साथ गहरा सम्बन्ध है
खाते समय यह न सोचे कि पेट की आग को बुझाना है
हजारों वर्ष पहले भी अध्यात्म के आचार्यों ने और मनीषियों ने भोजन के बारे में बहुत अनुसन्धान किये
ब्रह्मचर्य के साथ भोजन का सम्बन्ध
इन्द्रिय संयम के साथ भोजन का सम्बन्ध
विद्या और मेधा के साथ भोजन का सम्बन्ध
भोजन का शारीरिक, मानसिक, बौध्दिक और भावनात्मक स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध है
दुसरे शब्दों में इन सबका विकास भी भोजन से जुड़ा हुआ है
भोजन में कैलोरी कितनी, क्या क्या खाना चाहिए, मात्र कितनी होनी चाहिए ?
प्राचीन शब्द है परिमित भोजन, आज का शब्द है संतुलित भोजन
एक व्यक्ति के पूर्ण भोजन की मात्रा बताई गयी है ३२ कवल
३२ कवल से जितना कम खाया जाए वो ऊनोदरी है
चिकनाई का सन्दर्भ लें
संतुलित भोजन के हिसाब से १५० ग्राम चिकनाई की जरूरत है
एक दिन में एक स्वस्थ व्यक्ति को इससे ज्यादा चिकनाई नहीं खानी चाहिए
चाहे वो चिकनाई चुपड़े हुए फुलके में आये, साग में आये, दूध, दही या घी में आये
एक धार्मिक व्यक्ति को स्वास्थ्य के साथ-साथ संयम का प्रश्न भी मुख्य होता है
वो स्वाध्याय, ध्यान, चिंतन, मनन आदि करता है
शक्ति कम से कम कैसे व्यय हो ? आहार उनकी साधना में कहीं बाधक तो नहीं बनता
आहार का मतलब है बाहर से लेना, विवेक से लें
जो मन को निर्मल बनाना चाहता है वो यह जाने, कब-कब खाना है,कितना खाना है और क्या-क्या खाना है
न जाने कितने लोग शाकाहार को छोड़कर अंडे और मांसाहार में चले जाते हैं.
यह वृत्तियों पर भी असर डालते हैं शराब, तम्बाखू और जर्दा - यह सब भी स्वाभाव पर असर डालते हैं
इतना ही नहीं शारीरिक बीमारियाँ भी इनके प्रभाव से बढ़ रही है
शराब और तम्बाखू - इन दोनों का बहुधा कैंसर में योगदान होता है और भी कारण हो सकते हैं
जैसे जैसे जागरूकता बढ़ रही है, अनेक सरकारों ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबन्ध भी लगाए हैं
भोजन में चीनी का प्रयोग कम खतरनाक नहीं है
चीनी को मीठा ज़हर भी कहा जाता हैं
यह धीरे-धीरे मारती है, मीठे ढंग से मारती है
चाय पीने का मतलब है, चीनी का घोल ही पी जाना
सफ़ेद चीनी बिलकुल ही न खाएं, संभव न हो तो कम से कम खाएं
इस से स्वास्थ्य की सुरक्षा को बल मिलता है
दूसरी समस्या है नमक की ,
गुर्दे की बीमारी का प्रमुख कारण है नमक
यदि व्यक्ति एक कचौड़ी खाए तो कितना नमक उसके शरीर में जाएगा
जो व्यक्ति कचौड़ी, पकौड़ी और भुजिया खाता है फिर साग और दाल भी खाता है तो कितना नमक खाता होगा
स्वास्थय की दृष्टि से २ ग्राम नमक सही होता है
लोग गेहूं या बाजरे की रोटी में भी नमक डाल देते हैं
अपने स्वास्थ्य का खुद ही ध्यान रखना है तो चीनी और नमक के प्रयोग को कम करें
व्यक्ति को चाहिए कि भोजन और शरीर को लेकर प्रयोग भी करें और देखे कि क्या फर्क पड़ता है
उपवास, आयम्बिल, ऊनोदरी आदि प्रयोग करे
एक तरीका होता है २० ग्राम चावल, वह भी कच्चा चावल और कोरा पानी
दूसरा तरीका होता है, अधपका चावल १०० ग्राम और पानी
इस प्रयोग से अनेक लोगों ने भानकर बीमारियों को मिटाया है
लुधियाना में डाक्टर गोयल ने आयम्बिल का प्रयोग किया वे सुगर की बीमारी से पीड़ित थे
डाक्टर कहते हैं सुगर की बीमारी में चावल नहीं खाना चाहिए
डाक्टर गोयल ने दस दिन तक केवल चावल खाकर आयम्बिल किया
नतीजा - सुगर की बीमारी मिट गयी
आयम्बिल का प्रयोग,उपवास का प्रयोग, ऊनोदरी का प्रयोग ये शरीर के साथ साथ मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है
आहार और मौन
आहार करते समय मौन रहें, न हंसना चाहिए न बोलना चाहिए
क्योंकि आहार करना भी एक खतरनाक काम है
शरीर की विचित्र व्यवस्था है - आहार नली और श्वास नली - दोनों का ढक्कन एक है
जब हम खाते है,तब श्वास नली पर ढक्कन आ जाता है
जब नहीं खाते तब तब खुल जाता है
खाते हुए बातचीत करें, हंसे, उस समय अन्न का एक भी कण श्वास नली में चला जाए तो व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है
भारत का एक सेनापति जापान गया हुआ था भोजन के बातचीत करते हुए कुछ ऐसा ही हुआ और उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी
आहार और भावक्रिया
खाते समय केवल यही ध्यान रहे - मैं खा रहा हूं
तन्मना भुन्जीत - खाते समय आहार में ही मन रहे और किसी में मन न रहे
खाते समय दुकान, ऑफिस, कोई झगडा याद आये तो केवल खाना नहीं है
केवल खाना एक साधना है, इसका अर्थ है कोरा खाना और कुछ नहीं करना
न सोचना, न विचार, न कल्पना, न कोई योजना बनानी है
खाने की विधि
खाने की विधि है चबा-चबा कर खाना
यदि व्यक्ति खाते समय नहीं चबाये तो दांत का काम
बेचारी आंतों को करना पड़ता है
दांत का काम है पिसाई करना
यदि दान नहीं करें तो आंतों को करना पड़ता है
बिना चबाये खाना आंतों को बिगाड़ने का बड़ा अच्छा तरीका है
भोजन क्यों ?
१. शक्ति की वृध्धि
हम जो आहार करते है वह शक्ति की वृध्धि करने वाला है या नहीं ?
२. क्षति की पूर्ति
जो शक्ति क्षीण हुई है, उसकी पूर्ति हो
दिमाग को काम करना है,शरीर के अवयवों को काम करना है
३.विजातीय का निर्गम
व्यक्ति भोजन करता है और विजातीय मल संचित हो रहा है
खाने के साथ-साथ मलों का जमाव शुरू हो जाता है
मलों का उचित निस्सरण नहीं होगा तो धमनियां अकड़ेगी, लचीलापन कम होगा,
चेहरे पर झुर्रियां पड़ेगी, काम करने की शक्ति कम होने लगेगी
भोजन करते समय व्यक्ति सोचता नहीं है कि आज पेट साफ़ नहीं है तो भोजन नहीं करना है
कुछ लोगों कि भ्रांत धारणा है कि ज्यादा खायेंगे तो कब्ज़ नहीं होगी
जो खाया जाता है उसे पचाया जाय तो आंतें उसे निकाल देती है
अगर नहीं निकाल पाए तो कब्ज़ हो जाती है.
मलों का निर्गमन
हम मलों के निर्गमन पर ध्यान दें
पुरे शरीर से मलों की निर्गमन की प्रक्रिया है
पसीने से, गुर्दे से, मुंह से, नाक से आदि
इनसे भी जो सूक्ष्म मल होता है वोह धमनियों पर चिपक जाता है
मल के जमाव से एसिड जमा होता चला जाता है,
केल्सियम जमा होता चला जाता है
चूना जमें नहीं, धमनियां कठोर न बने, रक्त-संचार के पथ में बाधा न आये
इन सबके लिए मलों के निस्सारण पर ध्यान देना जरूरी है
जितना मलों का जमाव, उतने ही रोग
आरोग्य का मतलब विजातीय तत्वों का जमाव न होना
भोजन से लघुता : प्रसन्नता
स्वयं कसौटी करें कि भोजन के बाद शरीर में हल्कापन रहता है या भारीपन
भारीपन है तो संतुलित भोजन नहीं हुआ
शरीर टूटता रहता है, आलस्य सताता रहता है, सिर भारी रहता है
किसी काम में मन नहीं लगता
आहार मोहवश किया गया है
भोजन के प्रसन्नता है, चेतना में निर्मलता जागती है, भावों की शुद्धि रहती है
तो माने कि स्वस्थ भोजन किया है
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