Saturday, June 11, 2011

6 dhaala-teesri dhaal-aath prakaar ke mad

६ ढाला

तीसरी ढाल

आठ प्रकार के मद

पिता भूप वा मातुल नृप जो होय,न तो मद ठाने
मद न रूप को,मद न ज्ञान को,धन-बल को मद भाने
तप को मद न मद जु प्रभुता को करै न सो निज जाने
मद धारे तोह यह दोष वसु समकित को मल ठाने.

SHABDARTH
१.भूप-राजा
२.पिता-पित्र पक्ष से
३.मातुल-माँ के पक्ष से
४.ठाने-धारण करे
५.रूप को -शरीर का,सुन्दर काय का
६.भाने-नहीं करना
७.जु-और
८.निज जाने-आत्मा स्वरुप को जानता है
९.न-नहीं
१०.वसु-आठ
११.समकित-सम्यक दर्शन को
१२.मल-मलिन
१३.थाने-कर देते हैं

भावार्थ
आठ प्रकार के मद बताये जा रहे हैं...अगर पित्र पक्ष से या माता के पक्ष से कोई राजा हो,या कोई नृप हो,अमीर हो....तोह इस बात का मद करना जाति कहलाता है..इसे नहीं करना चाहिए..न ही रूप का,यानि की नश्वर शरीर का..पुद्गल काय का मद रूप मद कहलाता है..अपने ज्ञान का मद करना ज्ञान मद,धन-संपत्ति,सम्पदा का मद धन मद..और शरीर की ताकत..और सामर्थ्य का मद.....बल मद कहलाता है..अपनी त्याग-तपस्या-संयम अदि का मद तप मद कहलाता है..और अपनी प्रभुता का,ऐश्वर्य का,अपने प्रभाव का(मेरे बिना यह नहीं हो सकता,वह नहीं हो सकता)..यह मद प्रभुता का मद कहलाता है...जो इन आठों प्रकार के मद को त्यागता है..वह अपने आत्मा स्वरुप को जान सकता है..अन्यथा नहीं..अगर मद को कोई जीव धारण करता है..तोह यह आठ प्रकार के मद सम्बन्धी दोष सम्यक्त्व को मलिन कर देते हैं....अतः ऐसे आठ प्रकार के मद को त्यागो.

रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय (६ ढाला,संपादक-श्री रतन लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक




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