६ ढाला
तीसरी ढाल
६ अनायतन और तीन मूढ़ता
कुगुरू,कुदेव,कुवृष सेवक की नहीं प्रशंस उचरै है
जिन मुनि जिनश्रुत बिन,कुगुरूदिक तिन्हे न नमन करै है
शब्दार्थ
१.कुगुरू-खोटे गुरु
२.कुदेव-खोटे देवी-देवता
३.कुवृष- खोटा धर्म
४.प्रशंस-प्रशंसा,तारीफ़,अनुमोदना
५.उचरै-उच्चारण करना
६.जिन मुनि-निर्ग्रन्थ मुनि..वीतरागी गुरु
७.जिन श्रुत-सच्चे शास्त्र..जैन शास्त्र(निर्ग्रन्थ गुरु के द्वारा लिखे हुए शास्त्र)
८.बिन-छोडके
९.कुगुरुँदिक-कुगुरु,कुधर्म,कुशास्त्र
१०.तिन्हे-इन तीनों को
११.नमन-नमस्कार
१२.न-नहीं
भावार्थ
अनायतन-जहाँ धर्म नहीं है..यह ६ प्रकार के हैं..कुगुरू की प्रशंसा करना,कुदेवों की प्रशंसा करना..और कुधर्म की प्रशंसा करना...और इन तीनों के सेवक की प्रशंसा करना ६ अनायतन सम्बन्धी सम्यक्त्व के दोष हैं..इसलिए इससे बचना चाहिए..और वीतरागी गुरु..वीतरागी शास्त्र..वीतरागी भगवन के अलावा रागी-द्वेषी..कुदेव,कुधर्म और कुशास्त्र को नमस्कार करना..यह तीन मूढ़ता हैं..अतः इनसे बचना बचना चाहिए..यानि की हमें कुगुरू,कुदेव और कुधर्म और तीनों के सेवकों की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए...और कुगुरू,कुदेव..और कुधर्मं को कभी भी नमस्कार नहीं करना चाहिए..अगर नमस्कार कर देते हैं..तोह यह ६ अनायतन और तीन मूढ़ता सम्बंधित दोष सम्यक्त्व को मलिन कर देते हैं.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-श्री रतन लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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