६ ढाला
तीसरी ढाल
अविरत सम्यक-दृष्टी की श्रेष्ठता और उदासीनता
दोष रहित,गुण सहित सुधि जे सम्यक दरश सजै है
चारित-मोह वश लेश न संजम,पै सुरनाथ जजे हैं
गेही पै गृह में न रचें ज्यों,जलतें भिन्न कमल है
नगरनारी को प्यार यथा कादे में हेम अमल है.
शब्दार्थ
१.दोष-२५ दोष
२.गुण-८ गुना
३.सुधि-बुद्धिमान पुरुष
४.जे-जो
५.सम्यक-दरश-सम्यक दर्शन
६.सजै-धारण किये हुए हैं
७.चारित-मोह-चरित्र मोहनिया कर्म के उदय से
८.लेश-जरा सा भी नहीं
९.संजम-संयम
१०.पै-तोह भी
११.सुरनाथ-एक-भाव-अवतारी सौधर्म इन्द्र
१२.जजे-पूजा करते हैं..प्रभावना करते हैं
१३.गेही-गृहस्थ
१४.पै-तोह भी
१६.गृह-घर
१७.रचें-लीं नहीं होते
१८.ज्यों-जिस प्रकार
१९.जलतें-पानी से
१२.भिन्न-कमल
१३.नगर-नारी-नगर वधु,वेश्या
१४.यथा-अस्थायी
१६.कादे-कीचड
१७.हेम-सुवर्ण
१८.अमल-निर्मल
भावार्थ
जो जीव २५ दोषों(आठ-मद,६ अनाय्तन,तीन मूढ़ता,८ शंका-अदि दोष) से रहित और अष्ट अंग(निशंकित,निकान्छित,निर्वचिकित्सा,अमूढ़-दृष्टी,उपगूहन,स्तिथिकरण,वात्सल्य और प्रभावना) सहित सम्यक दर्शन को धारण करते हैं..वह बुद्धिमान हैं..क्योंकि ऐसे दुर्लभ सम्यक-दर्शन को धारण करके..अगर उस जीव ने चरित्र मोहिनीय कर्म के वश में जरा भी संयम नहीं पाला है..तोह भी देवों के राजा सौधर्म इन्द्र भी उनकी पूजा करते हैं...पूजा से मतलब है विशेष रूप से प्रभावना करते हैं.गृहस्थी में भी रहते हुए भी घर में रचते नहीं हैं..ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पानी में कमल रहता है..लेकिन पानी से भिन्न रहता है..जिस प्रकार वेश्या का प्यार सिर्फ दिखावे का का होता है..और जिस प्रकार कीचड में भी सोना निर्मल.बिना मल के रहता है...उसी प्रकार अविरत सम्यक-दृष्टी जीव घर-गृहस्थी में उदासीन हो कर रहता है.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमों सदा देत हूँ ढोक
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