६ ढाला
तीसरी ढाल
सम्यक दर्शन की महिमा और सम्यक दृष्टी का उत्त्पत्ति के स्थान
प्रथम नरक बिन षट भू ज्योतिष,वान,भवन षन्ड नारी
थावर विकलत्रय पशु में नहीं,उपजत संकित धारी
तीनो लोक,तिहु काल माहीं नहीं दर्शन सो सुखकारी
सकल धर्म का मूल यही,इस बिन करनी दुखकारी
शब्दार्थ
१.बिन-छोड़कर
२.षट-छह नरक
३.ज्योतिष-ज्योतिषी देव
४.वान-व्यंतर देव
५.भवन-भवन वासी
६.षन्ड-नपुंसक
७.नारी-औरत
८.थावर-स्थावर जीव
९.विकलत्रय-दो,तीन और ४ इन्द्रिय वाले जीव
१०.पशु-कर्म भूमि का पशु
११.उपजत-शरीर धारण नहीं करता है.
१२.समकित-सम्यक दर्शन की धारण करने वाला
१३.माहि-में
१४.दर्शन-सम्यक दर्शन
१५.सो-सामान
१६.सुखकारी-सुख को देने वाला,दुःख को दूर करने वाला
१७.सकल-सारे धर्मों
१८.मूल-सार
भावार्थ
सम्यक दर्शन को धारण करने वाला जीव..पहले नरक को छोड़कर नीचे के ६ नरकों में शरीर धारण नहीं करता है..ज्योतिषी देव नहीं होता,भवन वासी देव नहीं होता और व्यंतर देव नहीं होता है..यानि की उत्तम देव योनी में उत्त्पन्न होता है...नपुंसक नहीं होता और नारी नहीं होता..स्थावर(एकेंद्रिया) विकल त्रय जीवों में उत्त्पन्न नहीं होता और कर्म भूमियों का पशु नहीं होता है.इसीलिए सम्यक दर्शन..आत्मा के सच्चे श्रद्धान के सामान संसार में तीनो लोक में और तीनो काल में सम्यक दर्शन के सामान कोई सुख को देने वाली नहीं है...अतः यह सारे वीतराग धर्म का मूल है....इस बिन जितनी भी कथनी-करनी हैं वह सब दुख देने वाली हैं.
रचयिता-श्री दौलत राम जी कृत
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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