Wednesday, June 8, 2011

6 dhaala-teesri dhaal-moksh tatva ka swaroop aur vyavahar samyak darshan hone ka kaaran

६ ढाला
तीसरी ढाल

मोक्ष तत्व का स्वरुप और व्यवहार सम्यक-दर्शन का कारण

सकल कर्मतैं रहित अवस्था,सो शिव थिर सुखकारी
इही विधि जो सरधन तत्वन को,सो समकित  व्यवहारी
देव-जिनेन्द्र गुरु परिग्रह बिन धर्म दयाजुत सारो
येहु मान समकित को कारण,अष्ट अंग  जुत धारो


शब्दार्थ
१.सकल-सारे कर्म
२.कर्मतैं-कर्मों से
३.शिव-मोक्ष
४.थिर-स्थायी
५.इही-इस तरह से
६.सरधन-श्रद्धान करता है
७.तत्वन को-तत्वों का
८.समकित-सम्यक दृष्टी
९.व्यवहारी-व्यवहार से
१०.जिनेन्द्र-जिन्होंने इन्द्रियों को जीत लिया,१८ दोषों से रहित
११.दयाजुत-दया सहित,अहिंसा धर्म
१२.सारो-कारण
१३.येहू-इन तीनों को.
१४.अष्ट अंग-अष्ट गुणों
१५.धारो-धारण करो
भावार्थ
सारे कर्मों से (भाव कर्म,नो कर्म और द्रव्य कर्म) से रहित अवस्था ही मोक्ष है..जो स्थायी रूप से अनंत सुख को देने वाली है,शाश्वत सुख को देने वाली है..आकुलता रहित सुख को देने वाली है...यह ही मोक्ष तत्व का स्वरुप है..इस तरह से जो जिनेन्द्र देव द्वारा बताये गए सातों के सातों तत्वों का श्रद्धान करता है..वह व्यवहार सम्यक दृष्टी है.....वीतरागी भगवन (१८ दोषों से रहित,राग-द्वेष से रहित)..और अन्तरंग और बहिरंग परिग्रह से रहित वीतरागी गुरु तथा दयामय,अहिंसा मय वीतरागी धर्म..ही सारभूत हैं...सम्यक दर्शन के...अतः इन्ही को सम्यक्त्व होने का कारण मानना चाहिए.....और व्यवहार सम्यक-दर्शन को अष्ट अंग सहित धारण करना चाहिए..
रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय ( ६ ढाला,संपादक-श्री रतन लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.

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