Tuesday, June 7, 2011

6 DHAALA-TEESRI DHAAL-ASHRAV KA TYAAG KA UPDESH,BANDH,SAMVAR AUR NIRJARA TATVA KA SWAROOP.

६ ढाला

तीसरी ढाल

आश्रव को त्यागने का उपदेश,और बंध,संवर और निर्जरा तत्व का लक्षण

यह ही आतम को दुःख कारण,तातै इनको तजिए
जीव प्रदेश,बंधें विधिसों,सो बंधन कबहूँ न सजिये
शम,दमतैं जो कर्म न आवें,सो संवर आदरिये
तप बलतैं विधि झरन निर्जरा,ताहि सदा आचारिये

शब्दार्थ
१.यह-आश्रव
२.तातैं-इसलिए
३.तजिए-त्यागिये
४.विधिसों-कर्मों से
५.सो-उस
६.कबहूँ-कभी नहीं
७.सजिये-कभी ग्रहण मत कीजिये
८.शम-कषायों की मंदता
९.दम-इन्द्रियों पे विजय
१०.झरन-झरना
११.ताहि-उस निर्जरा
१२.आचारिये-आचारण करना चाहिए

भावार्थ
यह आश्रव...यानि की मिथ्यादर्शन(राग-द्वेष सहित),बिना व्रत धारण किये,कषायों और प्रमाद के साथ आत्मा में प्रवर्ती करना ही दुःख दाई है...यह ही दुःख को देने वाला है...बाहरी रूप से तोह दुःख का कारण है ही..लेकिन आत्मा में आने के लिए कर्मों का प्रवेश द्वार भी खुलता है..इसलिए इसको त्यागना चाहिए...जब कर्मों का प्रवेश द्वार खुल जाता है...तोह आत्मा के प्रदेशों में कर्म के पुद्गल परमाणु बंध जाते हैं यह ही बंध तत्व HAI...और ऐसे बंधन को कभी भी स्वीकार नहीं करना चाहिए..अगर हम संयम(इन्द्रियों पे विजय) और कषायों पे विजय प्राप्त करते हैं...तोह कर्मों का आना रुक जाता है...और कर्मों के परमाणु नहीं बंधते हैं...यह संवर है..और ऐसे संवर तत्व को ग्रहण करना चाहिए...तपस्या से,सम्यक-तप से कर्मों का एक देश (एक हिस्सा) झर जाना..जिससे आत्मा पे कर्म रुपी बोझ कम होता है..या कर्म हलके पड़ते हैं...वह निर्जरा तत्व है..कर्मों के कम होने से आत्मा का ज्ञान-दर्शन स्वाभाव बढ़ता है..और आकुलता में कमी आती है...ऐसे निर्जरा तत्व का आचरण करना चाहिए.

रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक श्री रतन लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)
(शब्द मेरे हैं..लिखने का आधार स्वाध्याय है)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो,सदा देत हूँ ढोक.


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