Monday, June 6, 2011

6 DHAALA-TEESRI DHAAL-AKAASH DRAVYA,KAAL DRAVYA AUR ASHRAV TATVA KA VARNAN

६ ढाला

तीसरी ढाल

आकाश,काल द्रव्य का वर्णन और आश्रव तत्व का स्वरुप

सकल द्रव्यों का वास जास में सो आकाश पिछानो
नियत वर्तना निशि दिन सों,व्यवहार काल परिमानो
यों अजीव,अब आश्रव सुनिए मन वच काय त्रियोगा
मिथ्या,अविरत अरु कषय,परमाद सहित उपयोगा



शब्दार्थ
१.सकल-सारे
२.जास-जिसमें
३.सों-वह
४.पिछानो-जानना कहिये
५.नियत-निश्चय
६.वर्तना-खुद और दुसरे को पलटाने वाला
७.निशि-रात
८.परिमानो-मन्ना चाहिए
९.यों-इस प्रकार
१०.आश्रव-कर्मों का आत्मा में मिल जाना
११.त्रियोगा-तीनों के योग से
१२.मिथ्या-मिथ्या-दर्शन
१३.अरु-और
१४.अविरत-बिना व्रत धारण किये
१५.कषय-क्रोध,मान,माया,लोभ
१६.परमाद-आलस्य
१७.उपयोगा-प्रवर्ती करना

भावार्थ
जहाँ अन्य द्रव्यों का निवास है...या जीव,अजीव,पुद्गल,धर्म और अधर्म द्रव्यों का निवास जिस द्रव्य में है वह आकाश द्रव्य है..अब सवाल यह आता है की आकाश द्रव्य इतने सारे द्रव्यों को एक साथ कैसे रखता होगा..तोह इसके बारे में कहा गया है की जिस प्रकार "एक कटोरी भर पानी में मिटटी दाल दो,तोह वह भी  आ जायेगी,चीनी दाल दो तोह वह भी आ-जाएगी,कांच के टुकड़े ड़ाल दो तोह  वह भी समां जायेंगे"उसी प्रकार यह आकाश द्रव्य अन्य सारे द्रव्यों को अपने में समाहित कर लेता है....अब काल द्रव्य के बारे में जानते हैं...काल द्रव्य दो प्रकार से कहा गया है "निश्चय काल" वह है जो अपने परिवर्तन के साथ अन्य द्रव्यों को पलटता है...या जो द्रव्य खुद भी पलटता है और अन्य द्रव्यों को भी पलटने में सहाई होता है..वह निश्चय काल,घडी,घंटा,दिन रात,एक घंटा,आज कल..यह सब व्यवहार काल है..ऐसा जानना चाहिए.इस प्रकार से अजीव तत्व का वर्णन ख़त्म हुआ..अब आश्रव के बारे में जानते हैं...मन-वचन और काय तीनों के योग से मिथ्या-दर्शन(गृहीत और आग्रहित),अविरत (बिना व्रत धारण किये),कषाय(क्रोध,मान,माया और लोभ) तथा प्रमाद(काम,विकार) के साथ आत्मा की प्रवर्ती को आश्रव कहते है.

रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय (६ ढाला,संपादक-श्री रतन लाला बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)

(अगर व्याकरण से सम्बंधित कोई गलती हो,या अन्य कोई गलती हो तोह जरूर बताएं)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढ़ोक.

No comments:

Post a Comment