Saturday, June 4, 2011

6 DHAALA-TEESRI DHAAL- NIKAL PARMATMA KA SWAROOP AUR KAVI KA SANDESH

६ ढाला

तीसरी ढाल

निकल परमात्मा का स्वरुप और कवि का सन्देश

ज्ञान शरीरी त्रिविध कर्म-मल वर्जित सिद्ध महंता
ते हैं निकल अमल परमातम भोगें शर्म अनंता
बहिरातमता हेय जानि तज अंतरात्म हूजै
परमातम को ध्याय निरंतर,जो नित आनंद पूजै.

शब्दार्थ
१.त्रिविध -तीन प्रकार के
२.मल-गंदगी
३.वर्जित-रहित
४.महंता-पूज्य
५.निकल-अ-शरीरी
६.अमल-निर्मल
७.शर्म-सुख
८.अनंत-जिसका अंत न हो
९.बहिरातमता-देह-जीव को एक गिनना
१०.हेय-त्याज्य
११.तज-त्याग कर
१२.हुजै-होना चाहिए
१३.निरंतर-लगातार
१४.नित-रोज
१५.पूजै-प्राप्त करता है

भावार्थ
सकल परमात्मा जीव के बारे में हमने जान लिया,पिछले श्लोक में..अब निकल परमात्मा वह हैं जिनका ज्ञान ही शरीर हैं...और जिन्होंने तीनों प्रकार के कर्म-मलों(राग-द्वेष,मोह,माया अदि भाव कर्म, मोहिनीय,वेदनीय,आयु अदि द्रव्य कर्म,वैभव धन संपत्ति अदि नो कर्म) को ख़त्म कर्म दिया है...ऐसे सिद्ध भगवन हम सब के लिए पूजनीय हैं..सिद्ध परमेष्ठी ही निकल और मल रहित परमात्मा हैं..जो अनंत काल तक सुख भोगते हैं..और वह सुख आकुलता से रहित है..हमें भी आकुलता रहित पद को पाना चाहिए..इसलिए हमें बहिरातमता,जो सबसे बड़ा आकुलता,राग,द्वेष और दुःख का कारण है..उसे तोह त्यागने योग्य समझ कर त्यागना चाहिए...और अंतरात्मा बनना चाहिए..और परमात्मा की ओर लक्ष्य करना चाहिए ..जो जीव ऐसा श्रद्धान करते हैं..वह रोज आनंद को प्राप्त करते हैं..और एक दिन परमात्मा के पद पर विराजित हो जाते हैं

रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय ( ६ ढाला,संपादक-पंडित रतन लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.

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