Saturday, June 4, 2011

6 DHAALA-TEESRI DHAAL-AJEEV,DHARM AUR ADHARMA DRAVYA KA SWAROOP.



६ ढाला
तीसरी ढाल
अजीव,धर्म और अधर्म द्रव्य का स्वरुप
चेतनता बिन सो अजीव है,पंच भेद ताके हैं
पुद्गल पंच वरन-रस गंध दो,फरस वसु जाके हैं
जिय पुद्गल को चलन सहाई,धर्म द्रव्य अनुरूपी
तिष्ठत होय अधर्म सहाई,जिन बिन मूर्ती निरूपि
शब्दार्थ
१.बिन-नहीं
२.अजीव-जिसका स्वाभाव जानना और देखना नहीं है
३.ताके-जिसके
४.वरन-वर्ण
५.रस-स्वाद
६.फरस-स्पर्श
७.वसु-आठ
९.जिय-जीव
१०.सहाई-सहायक होता है
११.अनुरूपी-अमूर्तिक
१२.तिष्ठत-बैठने में
१३.जिन-श्री जिनेन्द्र भगवान
१४.बिन मूर्ती-अमूर्तिक
१५.निरूपि-बिना रूप का

भावार्थ
जिस द्रव्य में चेतनता नहीं है,जानने और देखने की शक्ति नहीं है वह अजीव द्रव्य है..और अजीव तत्व है....यह अजीव द्रव्य पांच प्रकार का बताया गया है,जिसमें से पहला भेद "पुद्गल" है..पुद्गल वह है जिसमें पांच प्रकार के वर्ण(कृष्ण,नील,रक्त,पित्त और शुक्ल),पांच प्रकार के रस (टिकता,कटुका,कषैला,अम्ल और मधुरा),दो प्रकार की गंध (सुगंध और दुर्गन्ध),और आठ प्रकार के स्पर्श(कठोर,कोमल,गुरु,लघु,शीत,उष्ण,स्निघ्द और रुक्ष) पाए जाते हैं.दूसरा भेद धर्म द्रव्य है...धर्म द्रव्य वह है जो जीव और पुद्गल को चलने में सहाई होता है..यह द्रव्य अमूर्तिक है...तथा तीसरा भेद अधर्म द्रव्य है..जो जीव और पुद्गल को एक ही जगह रोके रहता है......श्री जिनेन्द्र देव ने इस अधर्म द्रव्य को अमूर्तिक और बिना रूप का बताया है..इसका यथार्थ विश्वास(श्रद्धां)  करना चाहिए.

अजीव द्रव्य के चौथे और पांचवे भेद के बारे में अगले श्लोक में जानेंगे.

रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय (६ ढाला,संपादक पंडित रतन लाल बैनाडा जी,और डॉ शीतल चंद जैन)
आभार-चिंतन संघवी जी.

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढ़ोक.

द्रव्य और तत्व में अंतर यह है की "अगर हमसे पुछा जाए की इस पोस्ट को पढने वाले जीव द्रव्य कितने हैं तोह जवाब होगा की "एक ,दो तीन,दस,सौ,हजार"..लेकिन पुछा जाए की आत्म  तत्व कितने हैं तोह जवाब होगा "एक".

धर्म और अधर्म द्रव्य के बारे में ज्यादा अच्छे से जानने के लिए इस लिंक को खोलें:-

जय जिनेन्द्र

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