६ ढाला
तीसरी ढाल
मध्यम और जघन्य अंतरात्मा,सकल परमात्मा का स्वरुप
मध्यम अंतरात्म हैं जे,देश-व्रती अनागरी
जघन कहे अविरत समदृष्टि,तीनो शिवमगचारी
सकल-निकल परमातम दैविध तिनमें घाति निवारी
श्री अरिहंत सकल परमातम लोकालोक निहारी
शब्दार्थ
१.जे-वह हैं
२.देश-व्रती-श्रावकों के व्रत के धरी
३.अनागरी-मुनि
४.अविरत-बिना व्रत को धारण किये हुए
५.समदृष्टि-सम्यक दृष्टी
६.शिव-मग-चारी-मोक्ष मार्ग पर चलने वाले
७.सकल-स-शरीर
८.निकल-बिना शरीर के
९.दैविध-दो प्रकार के
१०.तिनमे-जिनमें से
११.घाति-४ घातिया कर्म
१२.निवारी-नाश करने वाले
१३.लोकालोक-लोककाश और अलोकाकाश
१४.निहारी-एक समय में देखने वाले
भावार्थ
अंतरात्मा के तीन भेद बताये थे..जिसमें उत्तम अंतरात्मा का वर्णन पिछले श्लोक में किया..अब मध्यम अंतरात्मा के बारे में जानते हैं... देश व्रत-यानि की श्रावक के व्रतों को धारण करने वाले जीव यानि की पंचम गुण-स्थान वर्ती जीव और अनागारी--व्रतों के धारी मुनि-महाराज मध्यम अंतरात्मा हैं..जो की ६-७ गुण स्थान में आते हैं...जघन्य अंतरात्मा अविरत सम्यक-दृष्टी जीव हैं (जिन्होंने सम्यक दर्शन होते हुए भी चरित्र मोहनिय के वश में लेश मात्र भी संयम धारण नहीं किया है)...वह जघन्य अंतरात्मा है..इन्हें अंतरात्मा की श्रेणी में इसलिए रखा गया है क्योंकि अविरत सम्यक दृष्टी जीव का अहम् ख़त्म हो गया होता है...लेकिन कषायों की तीव्रता के कारण व्रत धारण नहीं कर पाते हैं...इसलिए जघन्य अंतरात्मा कहलाते हैं..यह चौथे गुण-स्थान में आते हैं.अब परमात्मा के बारे में जानते हैं..परमात्मा जीव के दो भेद हैं १.सकल और २.निकल ...जिन्होंने४ घातिया कर्मों(DARSHANAVARNIYA ,GYANAVARNIYA ,मोहनिय और वेदनीय) का क्षय कर दिया है.....वह सकल परमात्मा हैं..वह श्री अरिहंत भगवन हैं..जो ४६ गुणों को धारण करते हैं...और लोक और अलोक(विश्व रूप)का अवलोकन कर एक समय में जानते हैं.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय ( ६ ढाला पुस्तक जिसके सम्पादक पंडित रतन लाल बैनाडा जी और डॉ शीतल जैन जी हैं)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक ,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक
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