६ ढाला
तीसरी ढाल
जीव के भेद,बहिरात्मा और उत्तम अंतरात्मा का स्वरुप
बहिरातम,अंतरात्म,परमातम जीव त्रिधा है
देह जीव को एक गिने बहिरातम तत्व मुधा है
उत्तम,मध्यं जघन्य त्रिविध के अंतरात्म ज्ञानी
द्विध संग बिन शुद्ध-उपयोगी मुनि उत्तम निज ध्यानी
शब्दार्थ
१.बहिरातम-शारीर-आत्मा को एक गिनने वाला
२.त्रिधा-तीन प्रकार
३.देह-शारीर
४.तत्व-मुधा-तत्वों का अजानकर,अज्ञानी और मिथ्यादृष्टि
५.त्रिविध-तीन प्रकार के
६.द्विध-अन्तरंग और बहिरंग परिग्रह
७.शुद्ध-उपयोगी-आत्मा स्वरुप को जानने वाले
८.निज-खुद को,आत्मा स्वरुप को
भावार्थ
जीव जिसका स्वाभाव जानना और देखना है..उसके तीन भेद बताएं हैं...एक बहिरात्मा,दूसरा अंतरात्मा,और तीसरा परमात्मा..बहिरात्मा वह जीव है जो आत्मा विशेष को नहीं मानता है..और अगर मानता भी है...जब भी देह-जीव को एक ही गिनता है,जैसे की शारीर के दर्द में अपना दर्द मानता है,शरीर के काटने में अपना काटना मानता है,शरीर के जलने में अपना जलना,शरीर की गर्मी में अपनी गर्मी..शरीर के आनंद की चीजों में ही अपना आनंद गिनता है..ऐसा श्रद्धान करने वाला जीव बहिरात्मा कहलाता है..और बहिरात्मपना अज्ञानी ही करता है..ज्ञानी नहीं करता है,मिथ्यादृष्टि ही करता है (तत्वों का अजानकर).दूसरा जो अंतरात्मा जीव होता हैं उसके तीन भेद बताएं हैं १.उत्तम २.माध्यम ३.जघन्य...उत्तम अंतरात्मा जीव शुद्ध-उपयोगी ,निर्ग्रन्थ यानि की अन्तरंग और बहिरंग परिग्रह से रहित,मुनिराज होते हैं..जो अपने आत्मा स्वाभाव में लीं रहते हैं.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय ( ६ ढाला,संपादक-श्री रतन लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक
No comments:
Post a Comment