Thursday, October 6, 2011

RAM-LAKSHMAN KI VAN GAMAN KI KATHAYEIN-RAAM GIRI KA PARDAPAN AUR JATYU PAKSHI KA VYAKHYAN


राम लक्ष्मण की वन-गमन की कथाएँ -राम गिरी का पर्दापण..जटायु पक्षी का व्याख्यान.
देश-भूषण और कुल भूषण मुनि केवली के उपदेश सुन कर वंशस्थल नगर का राजा सूर-प्रभ...और राम के बलभद्र और लक्ष्मण के नारायण होने की बात सुनता है..तोह अति प्रभावित होता है...वह राम- और लक्ष्मण को नगर में बुलाते हैं,महल में रहने का निवेदन करते हैं..लेकिन राम कहते हैं की यह भोग बहुत दुखदायी हैं..कर्म के उदय से भोगों से विरक्त नहीं हो रहा हूँ..कब इन भोगों से बचूं...राम लक्ष्मण वंशस्थल पर्वत पर ही विराजमान होते हैं,वहां उनके रहने की सुविधा,आहार देने की सुविधा,सुन्दर-सुगन्धित मिस्थान तैयार कराये जाते हैं,नृत्य के लिए अप्सराएं..नगर के लोग दर्शन करने आते हैं..तोह सब आकर्षित होते हैं...राम लक्ष्मण पर्वत पे जहाँ मुनियों के केवल ज्ञान हुआ...वहां कई जिनमन्दिर बनवाते हैं.,श्रंखला में...देखने में अति सुन्दर लगते हैं...और फिर वहां से चलते हुए दक्षिण दिशा के समुद्र की तरफ दंडक-वन की और चलते हैं.....

अनेकों देशों में विहार करते हुए दंडक वनों में पहुँचते हैं...कैसा है वन जहाँ देव भी जाने में घबराएं..अति सघन डरावने पशु-पक्षियों से भरा हुआ...वहां पे सीता आहार तैयार करती है...तोह मुनि को आहार-दान देने की भावना होती है...तोह वाहर खड़े होते हैं.....आकाश मार्ग से तीन ज्ञान के धारी गुप्ती और सुगुप्ती मुनि विचरण कर रहे होते हैं कैसे हैं मुनि?..एक महीने से उपवास है जिनका..ऐसे मुनि को नवधा भक्ति के साथ आहार कराया जाता है...उन मुनि के आहार को एक गिद्द-पक्षी पेड़ पर खड़े हो-कर देख रहा होता है...तोह आहार देखकर अत्यंत शुद्ध परिणाम होते हैं और जाती-स्मरण हो जाता है..जाति-स्मरण से पूर्व भावों को जानता है तोह पश्चाताप करता है की हाय मैंने दुर्लभ मनुष्य योनी को अज्ञानियों के कहने से बर्बाद कर दिया...ऐसा चिंतन करते हुए एकदम से गिर जाता है और मुनि के चरणों में गिर-जाता है..तब गिरने की आवाज से सीता-दर जाति हैं..तब लक्ष्मण कहते हैं इतना गंध पक्षी,हिंसक,जीवों को दुःख देने वाला पक्षी यहाँ पे?..ऐसा कहकर घिन्नते हैं...विशुद्ध परिणामों से गिद्द के मुनि चरणों में गिरने से अत्यंत सुन्दर कंचन सामान शारीर हो जाता है....तब श्री राम कहते हैं कि यह किस कारण ऊपर से गिरा...और क्यों इसका शरीर सुन्दर हो गया?...तब अवधि ज्ञान के धारी मुनि कहते हैं कि यह वन पहले वन नहीं था एक नगर था दंडक नगर,जिसमें घोष (गाय-वैलों के रहने का स्थान),करवट(जिसके पीछे पहाड़ हो)..अदि अनेक जगह थीं.......उस नगर का राजा दंडक था..जिसकी रानी मिथ्यादृष्टि मिथ्या शास्त्रों का सेवन करती...जिसको देखकर राजा भी इन्ही मिथ्या-शास्त्रों को मानने लगा...एक बार नगर में मुनि आये तोह उसने मुनि के ऊपर उपसर्ग किया उनके ऊपर सांप डाल दिया,कुछ दिन बाद राजा वापिस नगर घूमने के मतलब से आये..तोह मुनि के ऊपर से सांप हठा देखकर बोले कि यह सांप किसने हटाया..तब एक व्यक्ति कहता है कि यह सर्प मैंने हथाया है..इन मुनि के ऊपर कई दिनों तक उपसर्ग होता रहा...यह बात सुनकर राजा कि जिन धर्म के प्रति श्रद्धां बन-जाता है...लेकिन जो मिथ्यादृष्टि रानी क्रोधित होकर राजा को धर्म से हटाने के लिए..मिथ्या-गुरुओं को दिगंबर मुद्रा में महल में बुलाती है...और विकार भरी चेष्टाएं करवाती है..जिन्हें देखकर राजा क्रोधित हो जाता है..और वह नगर के सारे मुनियों को यन्त्र में पेलने का आदेश देता है...जिनमें से एक मुनि-राज रह-जाता हैं...जब वह यह बात सुनते हैं तोह समता भाव न रखकर क्रोधित हो जाते हैं...और क्रोध में पूरी अग्नि भस्म हो जाती है,सालों की समता को क्षमा को ख़त्म कर-देते हैं...और नगर जलकर दंडक वन-कहलाता है..राजा अनेक योनियों में भटकते हुए...आज यह गिद्ध हुआ....जिसने आहार देखके सरल परिणामी हो-कर जाती स्मरण हुआ.....मुनि-महाराज जटायु को श्रावक के व्रत का उपदेश देते हैं...जिन्हें वह पक्षी अंगीकार-करता है.....मुनि-राज के जाने के बाद गिद्ध पक्षी राम-सीता और लक्ष्मण का प्यारा हो जाता है...वह रोज उन्ही के हाथ से अन्न-अदि ग्रहण करता...उनके बालों को सीता-फेरती..उनका नाम जटायु रखा.

अल्प-बुद्धि और प्रमाद के कारण हुई भूलों के लिए क्षमा...लिखने का आधार शास्त्र श्री पदम् पुराण है.

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