Saturday, October 29, 2011

वीतरागी सर्वज्ञ हितोपदेशी श्री जिनेन्द्र भगवान्,मोह तिमिर को नाश कर पाया केवल-ज्ञान.
.अष्ट कर्म को मेट कर पाया जिन्होंने शिवपुर धाम
..ऐसे परमात्मा को करता हूँ मन-वच काय से प्रणाम...वंदु आचार्यों को जो की ३६ गुणों से सुसज्जित है.
...सुर-नर-किन्नर इन्द्रों द्वारा सदैव ही जो पूजित है.
..उपाध्याय परमेष्ठी ११ अंग,१४ पूर्वों के ज्ञानी,कर्मों को नाश कर पायेंगे शिव राजधानी
,निज स्वरुप में लीन रहते निर्ग्रन्थ साधूमहाराज.नमन उन्हें मैं करता हूँ हाथ जोड़ के आज..
वीतराग सर्वज्ञ जिन की जो कहलाती दिव्य-ध्वनि
,गणधर महाराज के द्वारा प्रतिपादित भव्य जीवों ने जो सुनी.
..प्राणी मात्र कल्याण-कायक,सात तत्वों,६ द्रव्य का है जिसमें वखान...अनेकात-मय स्यादवाद युक्त,कहाँ तक करू गुण-गान.?...
श्री जिनेन्द्र भगवन के द्वारा प्रतिपादित जो धर्म है..जीव निराकुलता पाता जो मिटते अष्ट कर्म है.
..कषाय नाशनी,मोह विनाशनी   वीतरागता की छवि....अष्ट प्रातिहार्य से युक्त जिन मंदिर में है विरजी..
.ऐसे जिनालयों के दर्शन करने के भाव सदा मंगलकारी,सातिशय पुण्य का लाभ दिलाते,कट जाते जन्म-जन्मान्तर पाप भारी....
..ऐसे नव देवता हैं सदा मंगलकारी...राग-द्वेष को नाश कर ,पाता  है जीव सुख अति भारी...
क्यों न मैं भी इनका वंदन करके सुख भोगुन अविनाशी,मुक्ति नगर को पाउँगा...दुःख की न होगी  कोई राशि. 

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