Wednesday, November 2, 2011

अंजना सती की कथा

आदित्य पुर नगर में एक प्रहलाद नाम के राजा राज्य करते थे..उनके यहाँ पुत्र हुआ जिसका नाम उन्होंने पवंजय रखा..महेंद्रपुर नगर में राजा महेंद्र,रानी ह्रदयवेगा उनके यहाँ पुत्री हुई जिसका नाम अंजना रखा...तब अंजना यौवन हुईं...तोह राजा महेंद्र ने सभा बुलाई और मंत्रिओं से विवाह के प्रस्ताव पूछे...तब कोई रावण-राजा का प्रस्ताव देते है,कोई इन्द्रजीत का,कोई कहीं का...और एक मंत्री विद्युत प्रभ नाम के राजकुमार का..लेकिन उनका प्रस्ताव इसलिए ठुकरा दिया जाता है क्योंकि वह १८ वर्ष की उम्र में दिगम्बरी दीक्षा लेने वाले होते हैं...अंत में पवंजय का प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है...दोनों राजाओं में बातचीत होती हैं...पवंजय को अंजना को देखने का मन होता है..इसलिए मित्र प्रहलाद के साथ महेंद्र नगर में अंजना को देखते हैं...अंजना के सामने कोई सखी दुसरे राजकुमार विद्युत प्रभ की तारीफ़ कर रही होती है..सो अंजना भी अनुमोदन कर देती है..यह बात सुनकर और देखकर पवंजय क्रोधित होते हैं..लेकिन मित्र द्वारा क्रोध से शांत होकर..अंजना से बदला लेने के भाव सजा लेते हैं..पहले वह अंजना से विवाह ही न करने की बात करते अं...फिर किसी तरह उन्हें मनाया जाता है.लेकिन बदले के भाव नहीं बदलते हैं..उनका विवाह होता है..पवंजय विवाह के बाद बदला लेते हैं....न उनसे बात करते..न पास आकर बैठते..अगर अंजना सामने आये तोह मूह फेर लेते...और दूर ही रहते...एक बार पवंजय को राजा रावण की आज्ञा से रावण की सहायता के लिए राजा वरुण से युद्ध के लिए आना पड़ा...तब अंजना के लाख रोकने पर वह नहीं माने...वहां पे जाकर हंस-हंसिनी के जोड़े का वियोग देखकर दुखी हुए..और अपनी गलती का आस करने आगे...तोह चुपके से जाना से मिलने आये...अंजना के साथ बातें की....और पेट में गर्भ हुआ..और चले गए....इधर अंजना की आस अंजना के पेट में गर्भ जानकर,उनकी किसी भी बात को,न पवंजय के आने की बात को मानते हुए...उन्हें अंजना को सखी बसंत-तिलिका के साथ निकाल दिया राज्य से...अंजना पिता के पास इन तोह उन्होंने भी निकाल दिया,अंजना अब घनघोर वन में भटकती हैं...जहाँ योद्धा भी जाने से दरें...ऐसे वन में शेर-योद्धा अदि भी में दरें..अंजना की प्रसूति का समय निकट था..तोह वह गुफा के आस आती हैं.गुफा में मुनिराज को देखकर उपदेश सुनती हैं पूर्व भाव के विषय में सुनती हैं की उन्होंने पूर्व जन्म में जिनेन्द्र भगवन की प्रतिमा को आर निकाल दिया था...वोह भी कुछ क्षण के लिए...फिर संयमश्री माता जी के समझाने पर मानी,व्रत धारण किये....इसलिए वह कुयोनियों में भटकने से बच गयीं...और अंजना हुईं....अपने पूर्व भव के बारे में जानकर अति दुखी होती hain ....तब मुनिराज वन से विहार कर जाते हैं...अंजना और वसंत-तिलिका के सामने शेर आता है..तोह उनकी गन्धर्व देव रक्षा करते हैं...जो की शुभ कर्म के उदय से ही होता है...,प्रसूति में बालक का जन्म होता है...उसमें अत्यंत रौशनी होती है...,वातावरण सुगन्धित हो जाता है...तभी एक चमकती हुआ विमान आकाश-मार्ग से वन में उतरता है..जो की अंजना के मामा होते हैं...अंजना मामा को न पहचान-पाती हैं..लेकिन काफी समझाने पर उर प्रमाण देने पर पहचानती हैं...अंजना के मामा,उन्हें हनुरूह नगर ले जाते रास्ते में बालक विमान से गिर जाता ...जिससे पत्थर टूट-जाता है,बालक का नाम -श्रीशैल रखा जाता है...हनुरूह नगर में आने के कारण बालक का नाम हनुमान रखा जाता है....उधर जब पवंजय युद्ध से लौट कर आते हैं,अंजना को न पाकर अति दुखी होते हैं,ससुराल भी जाते हैं वहां भी अंजना नहीं होती है..अंत में हर-वन में नगर में ढूंढते हैं..अंजना नहीं मिलती हैं..तब वह एक वन में पेड़ के नीचे मौन होकर बैठ जाते हैं.मित्र प्रहस्त राजा को सारी घटना सुनाता है...जिससेपु रे राज्य में, रानी के यहाँ हाहाकार होता है,पुरे विज्यार्ध पर्वत में दूत भेजे जाते हैं..दूत हनुरूह नगर भी जाते हैं..इसलिए वहां अंजना को पाकर अंजना के मामाजी भी पवंजय को लेने और अंजना का विश्वास दिलाने के लिए जाते हैं....वन में पवंजय किसे से कुछ नहीं बोलते हैं.लेकिन तब अंजना के मामाजी अंजना के वहां होने की और पुत्र की बात सुनते हैं तोह सीधे हनुरूह नगर में जाते हैं..और वहां अंजना और पवंजय का मिलन होता है..यही है अंजना सती की कथा.

अब प्रश्न आपसे यह है की
१.हम इस कहानी से क्या-क्या शिक्षा ले सकते हैं?,२.अंजना को यहाँ पर सती क्यों कहा गया?..

No comments:

Post a Comment