श्री राम चन्द्र बलभद्र के पूर्व जन्मों का बहुत ही संक्षेप में कथन
राम चन्द्र जी बलभद्र के भाव से नौ भव पहले धन-दत्त सेठ थे...जिन्हें एक बार चलते -चलते प्यास लगी तोह मुनि के पास बैठे और पानी माँगा,रात्री हो रही थी..श्रावक ने मन किया की रात्री पानी-पीना भी पाप है,मांसाहार का दोष है..तुम चाहे प्यास सहन करो,पानी मत पीना..ऐसा कहकर उन्होंने पानी नहीं पिया...श्रद्धा भाव से अनुव्रती श्रावक हुए और अगले भव में पहले स्वर्ग में इन्द्र हुए,फिर उसके बाद पदम्-रूचि सेठ हुए..जिन्होंने मरते हुए बैल को नमोकार मंत्र सुनाया,वहां से चेकर समाधी मरण कर दुसरे स्वर्ग में देव हुए,फिर वहां से चय पश्चिम विदेह में रजा नन्दीश्वर के नयनानन्द नाम का पुत्र हुआ...विकत तप करके महेंद्र स्वर्ग प्राप्त किया ..वहां से चय कर मेरु पर्वत के पश्चिम दिग्भाग में स्तिथ क्षेमपूरी नगरी में श्री चन्द्र नाम का प्रसिद्द राज-पुत्र हुआ..उसने समिधिगुप्त मुनिराज के उपदेश सुनकर उनसे दीक्षा ले-ली ..वहां से चय कर पांचवे स्वर्ग में इन्द्र हुए....उनके वैभव को सौधर्म इन्द्र भी देखते थे..इतनी विभूति की ब्रहस्पति भी १०० वर्ष में नहीं कह सकता था..और वहां से चय करके श्री राम-चन्द्र बलभद्र हुए..जिसके बाद वह मोक्ष को प्राप्त हुए
सीता के जन्म से एक जन्म पहले सीता जी एक स्त्री थीं..जिन्होंने एक मुनि का अपवाद किया था..एक मुनि गाँव में आये थे..और उनकी बहन भी आर्यिका थीं..आर्यिका मुनि के साथ शास्त्र चर्चा कर रही थीं..लेकिन उस स्त्री ने उन मुनि का अपवाद कर दिया की "उन्होंने मुनि-महाराज को आर्यिका माता जी के साथ देखा"...जिससे यह बात पूरे गाँव में फैली...मुनि ने नियम लिया जब तक अपवाद दूर न हो वह आहार नहीं लेंगे...देवों ने जाकर स्त्री को सजा दी..उसने सबके सामने गलती मानी..जिससे मुनि का अपवाद दूर हुआ...उसी अपवाद के कारण सीता सती को अपवाद सहना पड़ा था अयोध्या के लोगों का और श्री राम चन्द्र बलभद्र ने उन्हें अयोध्या से निकाल कर रख दिया था..
लव-अंकुश पिछले जन्म में प्रियंकर-हितंकर नाम के राजा-रति वर्धन नाम के राजा के पुत्र थे..यह प्रियंकर हितंकर तोह लव-कुश हुए...और राजा-रतिवर्धन सिद्धार्थ क्षुल्लक हुए..जिन्होंने उन दोनों को पढाया था..
लक्ष्मण और रावण की दुश्मनी कई भावों से चली आ रही थी..जिस पर्याय में लक्ष्मण जन्म लेते उसी पर्याय में लक्ष्मण जन्म लेते..और उसी पर्याय में सीता का जीव जन्म लेता..और दोनों सीता को लेकर लड़ते
राम चन्द्र बलभद्र जी की ८००० रानिय थीं..जिनमें से सीता पटरानी थी
लक्ष्मण की १६००० रानियाँ थीं..जिनमें विशल्य अदि उनकी कई पटरानियाँ थीं.
हनुमान की १८००० रानियाँ थी.
श्री राम के पुत्र लव-अंकुश थे
राम चन्द्र जी बलभद्र के भाव से नौ भव पहले धन-दत्त सेठ थे...जिन्हें एक बार चलते -चलते प्यास लगी तोह मुनि के पास बैठे और पानी माँगा,रात्री हो रही थी..श्रावक ने मन किया की रात्री पानी-पीना भी पाप है,मांसाहार का दोष है..तुम चाहे प्यास सहन करो,पानी मत पीना..ऐसा कहकर उन्होंने पानी नहीं पिया...श्रद्धा भाव से अनुव्रती श्रावक हुए और अगले भव में पहले स्वर्ग में इन्द्र हुए,फिर उसके बाद पदम्-रूचि सेठ हुए..जिन्होंने मरते हुए बैल को नमोकार मंत्र सुनाया,वहां से चेकर समाधी मरण कर दुसरे स्वर्ग में देव हुए,फिर वहां से चय पश्चिम विदेह में रजा नन्दीश्वर के नयनानन्द नाम का पुत्र हुआ...विकत तप करके महेंद्र स्वर्ग प्राप्त किया ..वहां से चय कर मेरु पर्वत के पश्चिम दिग्भाग में स्तिथ क्षेमपूरी नगरी में श्री चन्द्र नाम का प्रसिद्द राज-पुत्र हुआ..उसने समिधिगुप्त मुनिराज के उपदेश सुनकर उनसे दीक्षा ले-ली ..वहां से चय कर पांचवे स्वर्ग में इन्द्र हुए....उनके वैभव को सौधर्म इन्द्र भी देखते थे..इतनी विभूति की ब्रहस्पति भी १०० वर्ष में नहीं कह सकता था..और वहां से चय करके श्री राम-चन्द्र बलभद्र हुए..जिसके बाद वह मोक्ष को प्राप्त हुए
सीता के जन्म से एक जन्म पहले सीता जी एक स्त्री थीं..जिन्होंने एक मुनि का अपवाद किया था..एक मुनि गाँव में आये थे..और उनकी बहन भी आर्यिका थीं..आर्यिका मुनि के साथ शास्त्र चर्चा कर रही थीं..लेकिन उस स्त्री ने उन मुनि का अपवाद कर दिया की "उन्होंने मुनि-महाराज को आर्यिका माता जी के साथ देखा"...जिससे यह बात पूरे गाँव में फैली...मुनि ने नियम लिया जब तक अपवाद दूर न हो वह आहार नहीं लेंगे...देवों ने जाकर स्त्री को सजा दी..उसने सबके सामने गलती मानी..जिससे मुनि का अपवाद दूर हुआ...उसी अपवाद के कारण सीता सती को अपवाद सहना पड़ा था अयोध्या के लोगों का और श्री राम चन्द्र बलभद्र ने उन्हें अयोध्या से निकाल कर रख दिया था..
लव-अंकुश पिछले जन्म में प्रियंकर-हितंकर नाम के राजा-रति वर्धन नाम के राजा के पुत्र थे..यह प्रियंकर हितंकर तोह लव-कुश हुए...और राजा-रतिवर्धन सिद्धार्थ क्षुल्लक हुए..जिन्होंने उन दोनों को पढाया था..
लक्ष्मण और रावण की दुश्मनी कई भावों से चली आ रही थी..जिस पर्याय में लक्ष्मण जन्म लेते उसी पर्याय में लक्ष्मण जन्म लेते..और उसी पर्याय में सीता का जीव जन्म लेता..और दोनों सीता को लेकर लड़ते
राम चन्द्र बलभद्र जी की ८००० रानिय थीं..जिनमें से सीता पटरानी थी
लक्ष्मण की १६००० रानियाँ थीं..जिनमें विशल्य अदि उनकी कई पटरानियाँ थीं.
हनुमान की १८००० रानियाँ थी.
श्री राम के पुत्र लव-अंकुश थे
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