Friday, March 23, 2012

मनुष्य-योनी-में-कितने-दुःख-है
हाय-हाय...बीमारिया,मधुमेह..कोई-इष्ट-वियोग-से-दुखी,कोई-अनिष्ट-संयोग-से-दुखी...कोई-गरीबी-के-कारण-दुखी,कोई,अमीरी-है,तोह-पैसा-चोरी-नहीं-हो-जाए-इस-बात-का-दुःख-है-बूढा-पण-आने-से-पहले-के-दुःख,चिंता-लग-जाती-है,हाय-मैं-सम्भोग,सुख,कैसे-भोगूँगा,..किसी-की-पत्नी-लड़ाकू,किसी-के-बैरी-भाई,कोई-बहार-से-दुखी-दीखता-है-कोई-अन्दर-से-दुखी-दीखता-है.........हाय-स्त्री-को-देखते-ही-काम-आस्ति-इतनी-आ-जाती-है,न-नींद-आये,न-चैन-मिले,...आकुलता-लगी-रहती,है,दुःख-रहता-है,देखे-बिना-ज़रा-सा-भी-चैन-नहीं-है,भोगने-से-पहले,भोगते-भोगते-....और-स्त्री-वियोग-के-इतने-दुःख-हैं...एक-मांस-मिटटी-शरीरी-पुद्गल-शारीर-को-देखकर-इतनी-आसक्ति-आ-जाती-है,एक-अचेतन,मिटटी,शारीर...जिसको-सागर-के-जल-से-सा-कार्लो,तोह-भी-शुद्ध-नहीं-हो-पाए...सिर्फ-वाहर-से-देखने-से-सुन्दर...वह-भी-सुन्दरता-क्षणभंगुर..जिसमें-अगर-हलकी-सी-परत-भी-हट-जाए-तोह-साड़ी-सच्चाई-दिख-जाए...लेकिन-यह-कितना-खतरनाक-नशा-है..यह-मोह-का-नशा...कितना-खतरनाक-है...की-अचेतन-पुद्गल-शारीर..जो-सिर्फ-वाहर-से-दिखने-वाली-क्षण-भंगुर-सुन्दरता-को-देखकर-कैसे-आसक्त-भाव-आ-जाते-हैं....यह-कैसा-राग-है...एक-चेतन-अचेतन-के-राग-में-इतना-अँधा--हो-जाता-है...की-इसे-सही-गलत-का-भी-भेद-नहीं-रहता..अच्चा..उसके-बाद-भी,बच्चा-होने-से-पहले-के-दुःख,फिर-प्रसूति-के-दुःख,लड़का-होगा,लड़की-होगी,इस-बात-की-चिंता,आकुलता,व्याकुलता,दुःख..तब-भी-ये-मोह.....कितना-खतरनाक-है...की-दुःख-है,जानता-है,सुख-नहीं........आकुलता,है,-फल-भी-आकुलता...धिक्कार-है-ऐसे-काम-भोग-को
जिसके-प्रति-एक-दर्शन-ज्ञान-स्वाभावि-चैन्तान्य-आत्मा-अचेतन-से-आसक्त-रहता-है...और-कितना-कर्म-बंध-होता-है..अनंत-संसार-का-कारण...........

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