Wednesday, March 28, 2012

BODHI-DURLABH-BHAAVNA

१.हमारे-पास-जितने-भी-विचार-हैं...उन्हें-इकठ्ठा-करें..और-उन-पर-चिंतन-करें..यह-विचार-जब-इकट्ठे-हो-कर-चिंतन-करते-हैं...तोह-बहुत-लाभ-दायक-हो-जाते-हैं...और-समय-पर-हमारे-समता-भाव-को-संभाले-रखते-हैं..की-हम-पुण्य-के-उदय-में-गाफिल-नहीं-हो-पाते-हैं,और-पाप-के-उदय-में-भी-समता-भाव-रखते-हैं.
२.एकत्व-भावना-सिखाती-है---की-हम-अपने-सुख-दुःख-को-स्वयं-भोगते-हैं..तोह-दुसरे-को-जिम्मेदार-क्यों-ठहराते-हैं?
३.अशुचि-भावना-सिखाती-है--शारीर-कितना-भी-अपवित्र-क्यों-न-हो..आत्मा-परम-पवित्र-है.
४.लोक-भावना-से-इश्वर-की-भगवत्ता-को-नहीं-नकारा-है,उनके-करता-धर्ता-पाने-को-नकारा-है.
५.इश्वर-में-लीं-होने-के-मायने-आत्मा-में-लीं-होना,इश्वर-को-पाने-के-मायने-स्वयं-को-पाना-है
६.बोधी-मात्र-मनुष्य-पर्याय-में-ही-मिल-सकती-है..इसलिए-मनुष्य-पर्याय-दुर्लभ-है.
७.दुर्लभता-तोह-केवल-ज्ञान-और-रत्नत्रय-की-प्राप्ति-में-है.

८.धर्म-की-बातों-को-सुनना-ज्यादा-दुर्लभ-नहीं-है..उसका-श्रद्धां-दुर्लभ-है...उसमें-भी-उसको-पालना-दुर्लभ-है
९.तमाम-जीवन-की-उपलब्धियों-उस-केवल-ज्ञान-के-आगे-व्यर्थ-हैं.
१०.बोधी-दुर्लभ-है..क्योंकि-हमने-अनंत-काल-से-नहीं-पाया,लेकिन-सुलभ-है-क्योंकि-हम-इसे-पा-सकते-हैं..जब-चाहो-तब-मिले-इसलिए-सुलभ-है..इसलिए-उत्साह-भी-नहीं-खोना

मुनि-श्री-१०८-क्षमा-सागर-जी.






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