६ ढाला
दूसरी ढाल
अग्रहीत मिथ्यादर्शन और जीव तत्व का स्वरुप
जीवादि प्रयोजनभूत तत्व,सार्धे तिन माहि विपर्ययत्व
चेतन का है उपयोग रूप,बिन मूरति चिनमूरति अनूप.
(इस दोहे में पहली पंक्ति में SHARDHE शब्द सही से प्रिंट नहीं हो पा रहा है,क्षमा करें )
शब्दार्थ
१.जीवादि-जीव अदि सात तत्व (जीव,अजीव,आश्रव,बांध,संवर,निर्जरा और मोक्ष)
२.प्रयोजनभूत-सार भूत तत्व
३.सार्धे-श्रद्धां करता है
४.तिन-इनका
५.विपर्ययत्व-विपरीत,उल्टा
६.चेतन-जिसका स्वाभाव जानना और देखना है
७.उपयोग रूप-जीव का स्वाभाव उपयोग रूप है,जानना और देखना उपयोग मय है.
८.बिन मूर्ती-अमूर्तिक
९.चिन मूर्ती-चैतन्य स्वरुप
१०.अनूप-उपमा रहित है,वर्णन रहित है.
भावार्थ
कवि कहते हैं की जो यह जीवादि सात तत्व हैं यह प्रयोजन भूत तत्व हैं,यानी की सार भूत तत्व हैं,इनका उपयोगी स्वाभाव है,लेकिन इनमें यह जीव विपरीत श्रद्धां करने लगता है,और जीव अदि सात तत्वों को व्यर्थ का मानने लगता है,या मानता ही नहीं है...यही अगृहीत मिथ्यादर्शन है..चेतन जिसका स्वाभाव जानना और देखना है,यह उपयोग मय हैं,इसके ज्ञान और दर्शन हर समय उपयोग में लगे होते हैं,यह चेतन अमूर्तिक है,यानी की कोई स्वरुप नहीं है,और यह चेतन चैन्तान्य मय है,आनंद मय है,और इस जीव तत्व की उपमा नहीं है,यानी की यह अनुपम है,अवर्णनीय है,इसमें रंग गंध तोह है नहीं इसलिए इसका वर्णन नहीं कर सकते हैं...यही सच्चा श्रद्धां है जीव तत्व का.
रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-पुष्प बैनाडा जी.
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
जैनधर्म खुद मिथ्या और काल्पनिक बातों का ढ़ेर है।।
ReplyDeleteजैन धर्म क्या है तुम जानते भी हो। बेकार की बकवास कर रहे हो।इतिहास, भूगोल पढने जैन विज्ञान पढो। इतिहास, भूगोल अपने आप हजम हो जाएगा।
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