६ ढाला
दूसरी ढाल
मिथ्यादर्शन के प्रभाव से जीव की पर पदार्थ के प्रति आसक्ति और विचार
मैं सुखी,दुखी,मैं रंक,राव,मेरे गृह धन गोधन प्रभाव,
मेरे सुत तिय मैं सबलदीन,मैं सुभग,कुरूप,मूरख प्रवीन.
शब्दार्थ
१.रंक-गरीब
२.राव-राज
३.गोधन-गाय बैल
४.प्रभाव-बड़प्पन
५.सुत-पुत्र
६.तिय-स्त्री
७.सबल-ताकतवर
८.दीन-कमजोर
९.सुभग-सुन्दर
१०.कुरूप-बदसूरत
११.मूरख-बेबकूफ,अज्ञानी
१२.प्रवीन-बुद्धिमान
भावार्थ
यह जीव मिथ्या दर्शन के प्रभाव से और जीव तत्व का विपरीत श्रद्धान करने के कारण अपने आप को पर वस्तुओं के सदभाव में सुखी मानता है,और पर वस्तुओं के अभाव में दुखी मानता है,अपने आप को धनी मानता है,४ मंजिला घर,इमारत को अपना मानता है,गे भैंसों को अपना मानता है,जिस स्त्री से विवाह किया है उससे खुद का मानता है,स्त्री को मेरी स्त्री बोलता है,पुत्र को अपना पुत्र मानता है,पर वस्तुओं को अपना मानता है,अपने आप को ताकतवर और कमजोर मानता है,शरीर की सुन्दरता के कारण खुद को सुन्दर मानता है और शरीर की बदसूरतता के कारण खुद को बदसूरत मानता है,अपने आप को ज्ञानी मानता है,और अज्ञानी या मूरख मानता है....बल्कि सच तोह यह है की घर,मकान वगरह तोह पर पदार्थ हैं,इससे जीव के स्वाभाव में कोई अंतर नहीं पड़ता है,इन से जीव की चाल अलग है,न पुद्गल पदार्थ इस जीव को दुःख दे सकते हैं लेकिन यह जीव राग-द्वेष भावों के कारण पर पदार्थों में सुख और दुःख मानता है,और यह कहना चाहिए की यह राग और द्वेष ही जीव को दुखी करते हैं.ऐसा विपरीत श्रद्धान करके यह जीव व्यर्थ ही दुखी रहता है और शोकाकुल रहता है.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-श्रीमती पुष्पा बैनाडा जी
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
दूसरी ढाल
मिथ्यादर्शन के प्रभाव से जीव की पर पदार्थ के प्रति आसक्ति और विचार
मैं सुखी,दुखी,मैं रंक,राव,मेरे गृह धन गोधन प्रभाव,
मेरे सुत तिय मैं सबलदीन,मैं सुभग,कुरूप,मूरख प्रवीन.
शब्दार्थ
१.रंक-गरीब
२.राव-राज
३.गोधन-गाय बैल
४.प्रभाव-बड़प्पन
५.सुत-पुत्र
६.तिय-स्त्री
७.सबल-ताकतवर
८.दीन-कमजोर
९.सुभग-सुन्दर
१०.कुरूप-बदसूरत
११.मूरख-बेबकूफ,अज्ञानी
१२.प्रवीन-बुद्धिमान
भावार्थ
यह जीव मिथ्या दर्शन के प्रभाव से और जीव तत्व का विपरीत श्रद्धान करने के कारण अपने आप को पर वस्तुओं के सदभाव में सुखी मानता है,और पर वस्तुओं के अभाव में दुखी मानता है,अपने आप को धनी मानता है,४ मंजिला घर,इमारत को अपना मानता है,गे भैंसों को अपना मानता है,जिस स्त्री से विवाह किया है उससे खुद का मानता है,स्त्री को मेरी स्त्री बोलता है,पुत्र को अपना पुत्र मानता है,पर वस्तुओं को अपना मानता है,अपने आप को ताकतवर और कमजोर मानता है,शरीर की सुन्दरता के कारण खुद को सुन्दर मानता है और शरीर की बदसूरतता के कारण खुद को बदसूरत मानता है,अपने आप को ज्ञानी मानता है,और अज्ञानी या मूरख मानता है....बल्कि सच तोह यह है की घर,मकान वगरह तोह पर पदार्थ हैं,इससे जीव के स्वाभाव में कोई अंतर नहीं पड़ता है,इन से जीव की चाल अलग है,न पुद्गल पदार्थ इस जीव को दुःख दे सकते हैं लेकिन यह जीव राग-द्वेष भावों के कारण पर पदार्थों में सुख और दुःख मानता है,और यह कहना चाहिए की यह राग और द्वेष ही जीव को दुखी करते हैं.ऐसा विपरीत श्रद्धान करके यह जीव व्यर्थ ही दुखी रहता है और शोकाकुल रहता है.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-श्रीमती पुष्पा बैनाडा जी
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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